अब सामान्य दवा विक्रेताओं के लिए यह बड़ी जीत है, क्योंकि ऑनलाइन दवा कारोबार की वजह से सामान्य दवा बिक्री घटने लगी है। दवा उद्योग चूंकि संगठित और मजबूत है, इसलिए वह न्यायालयों को अपने पक्ष में मजबूर कर पाया। ऑनलाइन दवा कारोबार भी लाइसेंस लेकर ही हो रहा था, लेकिन ऑनलाइन दवा बिक्री से जुड़े खतरों को सही ढंग से अदालतों में पेश कर सामान्य दवा विक्रेताओं ने जो जीत हासिल की है, उससे अन्य उद्योगों को प्रेरणा मिलेगी। ऑनलाइन बाजार से वही उद्योग जीत पाएगा, जो संगठित होगा। जब सारी दुनिया ऑनलाइन हो रही है, तो कोई भी उद्योग ऑनलाइन होने से बच नहीं सकता। अब अन्य उद्योग भी दवा उद्योग की तरह संगठित हों और ऑनलाइन बाजार की अनावश्यक बढ़त-मनमानी-तानाशाही-अत्यधिक रियायत पर लगाम लगवाएं।
स्वागत है, धीमी गति से ही सही, केन्द्र सरकार समग्र ऑनलाइन बाजार की नीतियों को अंतिम रूप देने में लगी है। ई-बाजार से सामान्य बाजार को बचाना जरूरी है। यह पूरी दुनिया में हो रहा है कि जैसे-जैसे ई-बाजार फैल रहा है, वैसे-वैसे घरेलू सामान, स्टेशनरी, किताब और राशन की दुकानें बंद होती जा रही हैं। गलियों की छोटी-छोटी दुकानों को लाभ में चलाना अब टेढ़ी खीर है। एक चिंता यह भी है कि ई-विक्रेता हर उत्पाद की घर-पहुंच सुविधा के साथ तरह-तरह की रियायत, नकद वापसी, मुफ्त उपहार इत्यादि देकर बाजार को अपने कब्जे में करते चले जा रहे हैं। आशंका है, बड़ी ऑनलाइन कंपनियां घाटा उठाकर ऐसा कर रही हैं, क्योंकि उन्हें पता है, एक बार भारतीय गलियों की दुकानें बंद हो गईं, तो फिर मनमानी वसूली से उन्हें कोई रोक नहीं पाएगा। भारत में आज शायद ही कोई सामान्य विक्रेता ऐसा होगा, जो ई-बाजार के दबाव से ग्रस्त नहीं होगा। भारत में ऑनलाइन बाजार रहे, लेकिन उसका एकछत्र राज न हो। वह जरूरत से ज्यादा रियायत न दे सके, वह सामान्य खुदरा बाजार को स्थायी रूप से बिगाडऩे की साजिश न कर सके। भारतीय ग्राहकों के तात्कालिक हित को ही नहीं, बल्कि दीर्घकालिक हित को भी सुनिश्चित करना प्राथमिकता होनी चाहिए।
दरअसल, देश में इंटरनेट के प्रचार-प्रसार के बाद जो साइबर जरूरतें अनुभूत की जा रही हैं, उन सभी पर सरकार को गौर करना होगा। चीन इस मामले में बहुत आगे है, वह अपने देश और उसकी नीतियों को बचाने में लगा है। वहां बच्चों के वीडियो गेम खेलने का समय तय कर दिया गया है, जबकि भारत में वीडियो गेम का 6400 करोड़ रुपए का बाजार बेलगाम है। ऐसे में बच्चों और युवा पीढ़ी को किसी भी प्रकार के ई-शोषण से बचाने के लिए साइबर शिकंजा या सजगता आज समय की सबसे बड़ी मांग है।