राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार दौरान भी ट्रंप की मीडिया से तनातनी चलती रही थी। ट्रंप का मानना है कि मीडिया का एक वर्ग उनकी छवि को धूमिल करने के लिए फर्जी खबरें चला रहा है। ट्रंप ही नहीं दुनिया के तमाम नेताओं को वही खबरें ठीक लगती हैं, जो उनके हित में हों।
कोई मीडिया ग्रुप यदि फर्जी खबर दिखा या छाप रहा है तो उसका फैसला दर्शक और पाठक कर देंगे। कोई भी मीडिया ग्रुप फर्जी खबरें चलाकर अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता। आज के दौर में किसी सच खबर को छिपाना जितना कठिन है उतना ही कठिन किसी फर्जी खबर को सच साबित करना भी है।
लोकतंत्र में न्यायपालिका और कार्यपालिका के साथ-साथ मीडिया की अपनी भूमिका है। ट्रंप या कोई दूसरे नेता मीडिया की खबरें पसंद नहीं करते तो इसका ये मतलब नहीं कि वे मीडिया पर रोक लगा दें। दुनिया के दूसरे अनेक देशों में चुनी हुई सरकारों ने मीडिया की आवाज को कुचलने का प्रयास पहले भी किया है लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
सरकार और मीडिया साइकिल के दो पहियों की तरह से हैं। जिस तरह दोनों पहियों बिना साइकिल नहीं चल सकती, उसी तरह लोकतंत्र को चलाने के लिए भी दो पहियों की जरूरत है। ट्रंप को सत्ता में आए अभी चंद दिन ही हुए हैं और वे अनेक मोर्चों पर विवादों में घिरते जा रहे हैं।
ये सही है कि अमरीकी मतदाताओं ने ही ट्रंप को राष्ट्रपति बनाया है लेकिन अगले चार साल तक उन्हें अपने काम और व्यवहार से अपनी छवि बनानी होगी। ट्रंप जिस तरह काम कर रहे हैं उससे लगता नहीं कि वे अमरीका को और मजबूत बनाने में कामयाब हो पाएं।
ट्रंप को चाहिए कि वे लोकतंत्र की मर्यादाओं के अनुरूप व्यवहार करें ताकि लोकतंत्र और मजबूत बन सके।