विश्व ओजोन दिवस उस महत्त्वपूर्ण महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समझौते की याद दिलाता हैं, जो मॉन्ट्रियल में वर्ष 1987 में 16 सितंबर को किया गया। पर्यावरण के क्षेत्र में आज यह सर्वाधिक सफल समझौतों में से एक हैं। यह समझौता ओजोन परत के निरन्तर हो रहे क्षय को रोकने के लिए किया गया था। ओजोन परत उस छाते के समान है, जो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों को रोक कर हमें उसके दुष्प्रभावों से बचाने का काम करता है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में उन रसायनों के प्रयोग को रोकने से संबंधित समझौता किया गया जो ओजोन परत में छिद्र के लिए उत्तरदायी माने गए थे। इनके कारण पृथ्वी तक पहुंचने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारे स्वास्थ्य पर तथा पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं।
त्वचा का कैंसर, आंखों में केटरेक्ट होना, रोग प्रतिरोधक क्षमता का क्षीण होना, इसके प्रमुख प्रभाव हैं जिनके कारण टीकों की उपयोगिता भी कम हो जाती हैं। ओजोन परत को क्षय करने वाले मानव निर्मित बहुउपयोगी रसायन हैं। इनमें क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, हेलोन, मिथाइल क्लोरोफार्म, कार्बन टेेट्रा क्लोराइड, मिथाइल ब्रोमाइड, हाइड्रोब्रोमोफ्लोरो कार्बन, हाइड्रोक्लोरो फ्लोरो कार्बन एवं ब्रोमोक्लोरोफ्लोरो मीथेन प्रमुख हैं। ये रासायनिक यौगिक घरेलू एयरकंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, रिटेल स्टोर रेफ्रिजरेशन यंत्रों एवं अन्य ठंडा करने वाले संयंत्रों में व्यापक रूप से काम में लिए जाते हैं।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत विश्व की मंशा थी कि लगभग सौ रसायनों का इस्तेमाल धीरे-धीरे समाप्त हो जाए। अब तक प्रशीतक के रूप में काम आने वाले क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, सीएफसी का उपयोग धीरे-धीरे बंद किया जा चुका है। अब उन रसायनों का उत्पादन एवं प्रयोग भी रोकना जरूरी है, जो ओजोन परत मे छेद के लिए तो नहीं, परंतु ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी है।
हमारे देश में सीएफसी के प्रतिस्थापी के रूप में हाइड्रोक्लोरोफ्लोरो कार्बन का प्रयोग प्रशीतक के रूप में सामान्य रूप से किया जाने लगा है। एचसीएफसी-22 मध्यम मात्रा में ओजोन परत का क्षय करने वाली गैस है जिसका उपयोग भी धीरे-धीरे बंद होना है। अब समय आ गया है जब ओजोन परत के क्षय को रोकने के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक ताप पर भी संपूर्ण विश्व सार्थक कदम उठाएं ताकि इसके दुष्प्रभावों से हमारी पीढिय़ों को बचाया जा सके।