यह देखा गया है कि एआइ तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए काफी खर्च करना होता है, जो सूक्ष्म एवं मझोले उद्योगों के लिए आज भी स्वप्न है। एआइ अनूठे समाधान तो प्रदान कर सकती है, किंतु कई बार यह भी देखा गया है कि ये समाधान मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं से परे होते हैं। एआइ अनूठे समाधान तो सुझा सकती है किंतु समय-समय पर इसे स्वयं के अद्यतन के लिए मानवीय निर्देशों की आवश्यकता पड़ती है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसके उपयोग से भविष्य में कई क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी समाप्त हो सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने एआइ के नैतिक प्रयोगों की रूपरेखा के लिए वर्ष 2019 के संयुक्त राष्ट्र बालकोष (यूनिसेफ) घोषणा पत्र में प्रथम बार चर्चा की थी। इसके सम्मिलित बिंदुओं में परस्पर आदर की भावना, मानवाधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रता, मानवीय मर्यादा, पारिस्थितिकी वहनीयता, विविधता एवं समावेशिता का संरक्षण इत्यादि प्रमुख हैं। हाल ही के दिनों में बैंक एवं क्रेडिट कार्ड प्रदाता जैसे व्यावसायिक संगठन जालसाजी एवं व्यावसायिक जोखिमों का पता करने में भी एआइ का भरपूर प्रयोग कर रहे हैं। भारी उद्योगों एवं ई-कॉमर्स कम्पनियों में भी इस तकनीक का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। इस तकनीक के उत्तरोत्तर प्रगति के साथ इसके दैनिक जीवन में अनेकानेक रूपों में प्रयोग होने की अपार संभावनाएं हैं। भारतीय रिजर्व बैंक एवं भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड जैसी संस्थाएं भी एआइ का उपयोग कर रही हैं। इसके अतिरिक्त म्यूच्यूअल फण्ड कम्पनियों में अपने बेहतर फण्ड मैनेजमेंट के लिए इस तकनीक का बहुतायत से इस्तेमाल हो रहा है। एआइ के प्रयोग ने लेखांकन एवं अंकेक्षण की कार्य प्रणालियों को स्वचालित कर दिया है। व्यावसायिक संगठनों के विलय एवं अधिग्रहण संबंधित समझौते भी एआइ की परिधि से अछूते नहीं रह गए हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में एआइ के प्रयोगों की असीम संभावनाएं हैं। कैंसर जैसी गंभीर व्याधियों के इलाज में यह तकनीक मील का पत्थर सिद्ध हो सकती है। जहां तक एआइ के संबंध में नियामक बनाने का प्रश्न है, बहुत कम राष्ट्रों ने इस ओर कदम बढ़ाए हैं। इस दिशा में पहल करते हुए अमरीका की सरकार ने एक कार्यकारी आदेश कुछ समय पूर्व निकाला है।
यूरोपियन संसद में एवं यूरोपियन परिषद में भी एआइ के प्रयोगों पर कानून बनाने पर निर्णय किया है। साथ ही साथ कुछ दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंच भी कदम उठा रहे हैं। कुछ समय पूर्व एआइ के सुरक्षित प्रयोगों को लेकर यूके ने एक बैठक का आयोजन किया था, जिसकी परिणति एक सार्थक घोषणा पत्र के रूप में हुई । उसके पश्चात भारत के आतिथ्य में एआइ पर अन्तराष्ट्रीय चिंतन बैठक का दिल्ली में आयोजन किया गया, जिसमें एआइ के संतुलित प्रयोगों द्वारा विश्व के उत्थान पर चर्चा की गई। साथ ही इससे सम्बंधित सभी आशंकाओं एवं चिंताओं पर भी सघन विचार-विमर्श हुआ। यहां यह रेखांकित करना उचित होगा कि चीन एवं अमरीका जैसे आर्थिक संपन्न राष्ट्रों से लेकर सभी दूसरी विकासशील एवं अद्र्ध विकसित अर्थव्यवस्थाएं एआइ के लाभकारी प्रयोगों एवं उसके दुष्परिणामों को लेकर भ्रम की स्थिति में हैं। भारत प्रारंभ से ही जहां एक ओर एआइ के आर्थिक लाभ एवं इसके नैतिक प्रयोगों का पक्षधर रहा है, वहीं दूसरी ओर इससे होने वाले नुकसान को रोकने के लिए उचित नियम बनाने के लिए कृतसंकल्प है । एआइ जनित डीप फेक, चैट जीपीटी, चैट बॉट्स आदि से जुड़े जोखिमों से भी सभी को सचेत होना होगा ।
एआइ ‘लॉजिकल रीजनिंग ‘ पर आधारित है। अत: समस्त फायदों एवं आशंकाओं के मध्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवश्यकता इस बात की है कि एआइ तकनीक से जुड़े उत्पाद नैतिक मूल्यों की सीमा का ध्यान रखते हुए काम करें। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान और सांस्कृतिक संगठन ‘यूनेस्को’ ने इस दिशा में एक नैतिक रूपरेखा सुझाकर वैज्ञानिक तार्किक शक्ति के इस नवाचार की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया है। इस लिहाज से ‘इथोलॉजी’ के नाम से शीघ्र ही एक नया विषय सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देखने को मिले तो आश्चर्य नहीं है।