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मौत भरोसे की!

रैली के आयोजक “आप”
नेताओं से लेकर अन्य सभी लोग पहले तमाशा देखते रहे और फिर मदद के लिए पुलिस को
पुकारते रहे और पुलिस दमकल को बुलाती रही

Apr 22, 2015 / 11:19 pm

शंकर शर्मा

Gajendra singh

Gajendra singh

राजस्थान में दौसा जिले के गजेन्द्र सिंह ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर “आप” की रैली में पेड़ से लटककर जीवन लीला समाप्त कर ली। इसमें कोई दो राय नहीं कि मुश्किलें इंसान को इतना तोड़ देती हैं कि उसे बचने का कोई रास्ता नहीं दिखता फिर भी आत्महत्या को किसी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता। आखिर उसका भी परिवार है।

माता-पिता, भाई-बहन और पत्नी-बच्चे हैं। उनकी भी तो उससे कुछ उम्मीदें होंगी? ऎसे में सबको साथ लेकर परिस्थितियों से लड़ने की बजाय अपनी जीवन लीला समाप्त करना तो उन्हें मझधार में छोड़ना ही है। ऎसा कदम किसी को कभी नहीं उठाना चाहिए। अब इसका दूसरा पहलू वो है जिसके लिए सम्बंधित लोगों की आलोचना नहीं जितनी निंदा की जाए, कम है। फिर चाहे वह दौसा का प्रशासन हो, केन्द्र और राज्य की सरकारें हों अथवा फिर वो भीड़ और पुलिस वाले हों जिनके सामने गजेन्द्र ने आत्महत्या की!

सवाल यह उठता है कि जिला प्रशासन से लेकर केन्द्र और राज्य सरकारें हर उस किसान में यह भरोसा पैदा क्यों नहीं कर पाई कि- हम हैं ना। चिंता मत करो। चाहे खराब फसल का मुआवजा दें या सहायता लेकिन इतनी दे देंगे कि कम से कम साल भर परिवार चलाने और अगली फसल की बुवाई में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। ऎसी खबरें पढ़कर दुख होता है कि सरकार ने वादा तो किया कुछ और मदद मिलती है कुछ।

वह भी “का वर्षा जब कृषि सुखाने” की तर्ज पर बुरा समय निकल जाने के बाद। अब भी समय है जब सरकार को अन्य सारे काम रोककर सर्वोच्च प्राथमिकता से किसान की मदद में जुट जाना चाहिए। उसे जैसे ही मदद मिलने लगेगी फिर वह क्यों तो मरने की सोचेगा और क्यों रैलियों में जाएगा? सरकार के बाद इस आत्महत्या के लिए उस जगह पर खड़े आम लोग और पुलिस वाले भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। ऎसा तो है नहीं कि गजेन्द्र के मन में विचार आया और जादू से फंदा बना लटक गया। इस बीच रैली के आयोजक “आप” नेताओं से लेकर अन्य सभी लोग पहले तमाशा देखते रहे फिर मदद के लिए पुलिस को पुकारते रहे और पुलिस दमकल को बुलाती रही।

केन्द्रीय गृहमंत्री ने इस मामले में जांच की घोषणा की है लेकिन जांच करेगी वही दिल्ली पुलिस जो स्वयं आरोपों के घेरे में है। यदि वास्तव में गृहमंत्री व्यथित हैं तो उन्हें उस जगह मौजूद तमाम लोगों, खासकर पुलिसकर्मियों पर आत्महत्या के लिए उकसाने अथवा उसमें सहयोग का मामला दर्ज करवाना चाहिए। यह सवाल किसी भी तरफ से राजनीति का नहीं है। फिर चाहे वह “आप” हो या भाजपा। सवाल व्यवस्था और मानवता का है तथा उसे उसी तरह डील करना चाहिए। तभी ऎसे हादसे रूकेंगे, अन्यथा तो श्मशानिया वैराग्य की तरह यह मामला भी आया गया हो जाएगा।

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