लोकपाल आंदोलन के प्रणेता अन्ना हजारे ने इसे देश की जनता की जीत बताया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि लोकपाल बनने के बाद भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ मामलों की जांच हो पाएगी तथा सरकार से लेकर प्रशासन तक भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण तैयार होगा। पिनाकी चन्द्र घोष का लम्बा न्यायिक अनुभव है। वे कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी रहे हैं। 2017 को सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्ति के बाद वे मानवाधिकार आयोग के सदस्य थे। हालांकि खडग़े की अनुपस्थिति से उनकी नियुक्ति विवादों में भी पड़ सकती है। जनप्रतिनिधियों और लोकसेवकों के भ्रष्ट आचरण को कानून के दायरे में लाने के लिए लोकपाल नियुक्ति की मांग को चार दशक से भी ज्यादा हो चुके हैं। लेकिन किसी न किसी कारण से राजनीतिक दल और सरकारें इसको टालते रहे। आखिर 2013 में अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद संसद में लोकपाल कानून के मसौदे को मंजूरी मिली तथा 16 जनवरी 2014 को लोकपाल कानून अधिसूचित किया गया। इसके बाद भी पांच साल बीत गए, लोकपाल नियुक्त नहीं हुआ। आखिर उच्चतम न्यायालय के दखल के बाद 2017 में पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में सर्च कमेटी गठित की गई। कमेटी ने 10 नाम भी सुझा दिए, लेकिन राजनीति के चलते लोकपाल नियुक्त नहीं हो सका।
सुप्रीम कोर्ट ने फिर केन्द्र को चेताया और तत्काल लोकपाल नियुक्त करने के निर्देश दिए। लेकिन कमेटी की बैठक लगातार टाली जाती रही। अब आम चुनाव की आचार संहिता लागू होने के बाद सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों से घोष का नाम सामने आया है। नियुक्ति की घोषणा अभी भी नहीं हुई है। कांग्रेस का विरोध और आचार संहिता की मजबूरी आड़े आ रही है। लेकिन क्या सरकार दस दिन पूर्व नाम घोषित नहीं कर सकती थी? क्या चुनाव प्रक्रिया के दौरान घोष का नाम उछालने के पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य है? यह तो चयन समिति ही बेहतर बता सकती है। आज देश में चारों ओर भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक व्याप्त है। निरंकुश जनप्रतिनिधियों और लोकसेवकों पर प्रभावी कार्रवाई के लिए लोकपाल जैसे सिस्टम की तत्काल आवश्यकता है। चूंकि स्वयं प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई चयन पैनल के सदस्य हैं, उम्मीद की जानी चाहिए कि चुनाव बाद लोकपाल नियुक्ति की घोषणा हो जाएगी। सरकार चाहे कोई भी बने। स्वच्छ, निष्पक्ष और भ्रष्टाचार रहित शासन हर नागरिक चाहता है। भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा तो हालात बेकाबू होकर सरकार, न्यायालय और प्रशासन सभी की पकड़ से दूर हो जाएंगे। तब स्थिति गृहयुद्ध से कम नहीं होगी।