निर्माणकाल के बाद से ही पाकिस्तान ने राजनीतिक माहौल में उथल-पुथल के अलावा कुछ नहीं देखा है। पाकिस्तानी सेना लगातार राष्ट्रीय राजनीति में दखल देती रही है। यह इसी तथ्य से उजागर होता है कि पाकिस्तान में सफल सैन्य तख्तापलट का इतिहास रहा है जो 1953, 1958, 1977 और 1999 में हुआ। अक्सर 1953 के तख्तापलट को संवैधानिक तख्तापलट कहा जाता है, क्योंकि इसने निर्वाचित सरकारों के खिलाफ अधिक खुले सैन्य हस्तक्षेप को बढ़ावा देने का नया तरीका प्रदान किया और ‘आवश्यकता के सिद्धांत’ के तहत उचित ठहराया गया। आज सत्तारूढ़ सरकार और परमाणु हथियारों पर पाकिस्तानी सेना का नियंत्रण है। राष्ट्रीय सुरक्षा और देशभक्ति पाकिस्तान के ‘डीप स्टेट’ द्वारा अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बहाने हैं। पाकिस्तान के जन्म से ही वहां कमजोर और अस्थिर सरकारें रही हैं, इसमें ‘डीप स्टेट’ की लगातार मौजूदगी भी रही है।
राजनीतिक दलों द्वारा भी इसी नाजुक स्थिति का समर्थन किया गया। अच्छा प्रशासन देने में उनकी अक्षमता के अलावा गहरे तक पैठ जमाए भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सत्ता के दुरुपयोग के चलते समाज के लिए आसान समाधान नहीं निकल सका, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ा। एक अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दा, जिसने पाकिस्तान में ‘डीप स्टेट’ का निरंतर समर्थन किया, वह है बड़ी ताकत की उपस्थिति अर्थात पड़ोसी देश चीन। चीन ने ‘डीप स्टेट’ की सांठगांठ से पाकिस्तान को कमजोर और अधीन रखने की रणनीति के रूप में देखा और फायदा उठाया, ताकि वह दीर्घकालीन अवधि में अपने हितों को बनाए रखे।
वर्ष 1948 में भारत के साथ युद्ध की शुरुआत, प्रांतों के भीतर आंतरिक कलह और भारत द्वारा विभाजन के पूर्व की स्थिति लाने की बढ़ती आशंकाओं ने पाकिस्तान के शासकों को अन्य संस्थानों की अपेक्षा रक्षा में भारी निवेश करने के लिए मजबूर किया। राज्य निर्माण की प्रक्रिया में नागरिक स्वतंत्रता और नागरिकों के अधिकारों की तुलना में राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई। पाकिस्तान अपने निर्माण के 74 साल बाद भी ‘डीप स्टेट’ की विरासत को जारी रखे है और हर उत्तरोत्तर सरकारों के साथ यह मजबूत होती जा रही है। फलता-फूलता ‘डीप स्टेट’ अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार नागरिक समाज की प्रगति और विकास के विपरीत है।