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लोकतंत्र को चाहिए राजनीतिक एवं प्रशासनिक सुधारों का नया मॉडल

सुधार के लिए जरूरी मॉडल को लागू करने के लिए राजनीति और प्रशासन के बारे में हमारे सोचने के तरीके में व्यापक बदलाव की जरूरत है। समय आ गया है कि लोगों को राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणालियों के केंद्र में रखा जाए।

Dec 19, 2023 / 11:51 pm

Nitin Kumar

फाइल फोटो

फाइल फोटो

डॉ. डी.पी. शर्मा
यूनाइटेड नेशंस से जुड़े अंतरराष्ट्रीय डिजिटल डिप्लोमेसी एक्सपर्ट एवं कंप्यूटर वैज्ञानिक
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आज दुनिया भर में लोकतंत्र विश्वास के संकट का सामना कर रहे हैं। इसका कारण है संस्थानों, राजनीतिक हस्तियों और लोकतांत्रिक निर्णयों का आधार बनने वाली प्रणालियों पर धीरे-धीरे कम हो रहा भरोसा। विश्वास का यह संकट तत्काल कार्रवाई की मांग करता है। आज हमें राजनीतिक व प्रशासनिक तंत्रों पर मौलिक विचार मंथन के बाद पुनर्मूल्यांकन कर इन्हें पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि बदलती हुई सामाजिक जरूरतों के साथ हम सामंजस्य स्थापित कर सरकार एवं शासन की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बना सकें जिसमें राजनीतिक और प्रशासनिक परिदृश्य के केंद्र में प्रक्रियाओं का नहीं बल्कि नागरिकों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं का महत्त्व हो।
अभी तक राजनीतिक और प्रशासनिक सुधार का पारंपरिक मॉडल प्रशासनिक दक्षता पर केंद्रित रहा है, बजाय तकनीक का लाभ लेते हुए जनसहभागिता और जनजुड़ाव पर केंद्रित होने के। आज दक्षता में सुधार लाना इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि डेटा या संख्याओं की कोई एक गणना मानवीय आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की जटिलताओं को नहीं पकड़ सकती है। आउटडेटेड होते इन मॉडलों ने नागरिकों में असंतोष एवं अलगाव की भावना पैदा की है, जो अपने जीवन को आकार देने वाले निर्णयों से जुड़ाव महसूस नहीं करते हैं। किसी भी देश का राजनीतिक एवं प्रशासनिक मॉडल उसकी संस्कृति, सभ्यता और सामाजिक संरचना के आधार पर बनाया जाना चाहिए। भारत के सभी राजनीतिक एवं प्रशासनिक तंत्र ब्रिटिशकालीन मॉडल से निकले जिनमें समय-समय पर कुछ परिवर्तन तो हुए, पर परिवर्तन की दशा और दिशा विधायी एवं प्रशासनिक मॉडल को उस मुकाम तक नहीं ले जा सकी जहां पर उन्हें पूर्ण रूप से जमीनी स्तर पर प्रभावी माना जा सके। तब सवाल उठता है कि राजनीतिक एवं प्रशासनिक तंत्र का नया मॉडल कैसा होना चाहिए? मूल सिद्धांतों की रीइंजीनियरिंग के लिए यदि निम्न सुझाव अमल में लाए जाएं तो सरकारी व प्रशासनिक तंत्र के मॉडल को और प्रभावी बनाया जा सकता है:
1. विषय विशेषज्ञ एवं नागरिक सेवा : भारत के प्राचीन राजनीतिक व प्रशासनिक तंत्रों में पंचप्रधानों का बहुत महत्त्व रहा है यानी पंचप्रधानों के निर्णय को ईश्वरीय निर्णय के समान माना गया है। पर आजादी के बाद हमने उधार के राजनीतिक, विधायी एवं प्रशासनिक तंत्रों में इसको सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र तक ही सीमित करके रख दिया। यदि मंत्री और प्रशासनिक अधिकारियों या मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच में एक तंत्र विषय विशेषज्ञों (दो विषय विशेषज्ञ विशिष्ट क्षेत्र जैसे शिक्षा/तकनीकी/ चिकित्सा/वित्त से, दो विषय विशेषज्ञ कानूनी क्षेत्र से एवं एक विषय विशेषज्ञ समाज या नागरिक सेवा से) का जोड़ दिया जाए तो सरकारों का संचालन और अधिक प्रभावित हो सकता है। अक्सर देखा गया है कि न तो मंत्री और न ही प्रशासनिक अधिकारी विज्ञान, कृषि, शिक्षा या अन्य किसी क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं फिर भी योजनाएं बनाते हैं। ऐसी स्थिति में सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वन एवं संचालन पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। मंत्री, पांच प्रधान एवं प्रशासनिक अधिकारियों के त्रिआयामी तंत्र से इस समस्या को न केवल सुलझाया जा सकता है बल्कि विषय विशेषज्ञता के साथ जनता में सरकार के प्रति संतोष और विश्वास को भी बढ़ाया जा सकता है।
2. तुरंत न्याय की प्रक्रिया: इसी प्रकार तुरंत न्याय की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी एवं जवाबदेह बनाने के साथ-साथ सामूहिक जिम्मेदारी को स्थापित करने के लिए दो कानूनविद, दो प्रशासनिक अधिकारी एवं एक विषय विशेषज्ञ को सामान्य सेवा से लेकर ऐसा तंत्र बनाया जा सकता है जो जटिल न्यायिक प्रक्रिया से पूर्व तुरंत कार्रवाई के लिए निर्णय दे सके और उसकी क्रियान्विति करा सके। अतिरिक्त आर्थिक बोझ की बात करें तो इसमें पश्चिमी देशों की तर्ज पर सेवानिवृत्त लोगों की सेवाएं या अवैतनिक सेवाएं अल्प मानदेय और मामूली सुविधाओं के एवज में ली जा सकती हैं। यह तंत्र कम से कम विफल परियोजनाओं एवं प्रभावहीन कार्यक्रमों से तो बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। आज हजारों विषय विशेषज्ञ देश में अवैतनिक सेवाएं देने के लिए तैयार हो सकते हैं। इस तरह सामूहिक जवाबदेही वाले तंत्र के निर्णयों से व्यक्तिगत निर्णयों और संबंधित जोखिमों को भी कम किया जा सकता है।
3. सहभागी लोकतंत्र: निरंतर नागरिक जुड़ाव वाला तंत्र बनाने के लिए आवधिक चुनावों से आगे बढ़ा जाए। इसमें विचार-विमर्श करने वाली सभाएं, नागरिक जूरी और समुदाय की जरूरतों को सीधे संबोधित करने के लिए स्थानीय परिषदों को सशक्त बनाना शामिल हो सकता है।
4. विकेंद्रीकरण: केंद्रीकृत सत्ता संरचनाओं को तोडऩा और निर्णय लेने का अधिकार क्षेत्रीय और स्थानीय स्तरों पर वितरित करना। यह विविध समुदायों की विशिष्ट जरूरतों के अनुरूप अधिक प्रतिक्रियाशील नीतियों की अनुमति देता है।
5. पारदर्शिता व जवाबदेही: खुलेपन और जवाबदेही की संस्कृति को बढ़ावा दें, जहां सार्वजनिक अधिकारी सवालों के जवाब देने और अपने निर्णयों को समझाने के लिए आसानी से उपलब्ध हों। इसके लिए मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी उपायों और सूचना कानूनों तक पहुंच की आवश्यकता है।
6. प्रौद्योगिकी की शक्ति का उपयोग: नागरिक भागीदारी बढ़ाने, हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाने और सरकारी दक्षता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी की शक्ति का उपयोग करें। लेकिन डिजिटल विभाजन और हेर-फेर की आशंका के प्रति सतर्क रहें, वह भी यह सुनिश्चित करते हुए कि तकनीक लोकतंत्र की सेवा करती है, न कि इसे कमजोर करती है।
7. कल्याण पर केंद्रित हो नीति: सकल घरेलू उत्पाद जैसे अमूर्त आंकड़ों से ध्यान हटाकर स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक न्याय सहित मानव कल्याण के ठोस उपायों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। इसके लिए नीति निर्माण के एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो इन मुद्दों की परस्पर संबद्धता पर विचार कर सके।
दरअसल, इस मॉडल को लागू करने के लिए राजनीति और प्रशासन के बारे में हमारे सोचने के तरीके में आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता होगी। यह मॉडल नियंत्रण छोडऩे, भागीदारी प्रक्रियाओं को अपनाने के साथ मांग करता है कि राजनीति और प्रशासन में आने वाले लोग जिनकी सेवा के मकसद से आते हैं उनके जीवन के अनुभवों से सफलता को मापने की इच्छा अपने अंदर जगाएं, सफलता को केवल आर्थिक संकेतकों से न मापें। यह केवल सुशासन का अभ्यास नहीं, लोकतंत्र की आत्मा के लिए लड़ाई है। ध्रुवीकरण व गलत सूचना के युग में, विश्वास को पुन: प्राप्त करने के लिए नागरिकों को यह दिखाना जरूरी है कि उनकी आवाज मायने रखती है, कि उनकी जरूरतें सुनी जाती हैं, कि अधिक न्यायसंगत भविष्य को आकार देने में उनकी भागीदारी महत्त्वपूर्ण है। समय आ गया है कि लोगों को राजनीतिक व प्रशासनिक प्रणालियों के केंद्र में रखा जाए और ऐसे लोकतंत्र का निर्माण किया जाए जो वास्तव में सभी के लिए काम करे।
भारत की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार के लिए न केवल नीति निर्माताओं से बल्कि प्रतिबद्ध नागरिकों से भी निरंतर पहल की अपेक्षा है। भारत का भविष्य अपने लोगों की गतिशीलता को अपनाने और उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप शासन संरचनाओं की पुनर्कल्पना में निहित है। कुशल नौकरशाही, समावेशी जुड़ाव और उत्तरदायी नेतृत्व को प्राथमिकता देकर भारत न केवल अपने आकार के कारण, बल्कि तेजी से बदलती दुनिया में अनुकूलन और पनपने की अपनी क्षमता के कारण एक मॉडल लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में उभर सकता है, जिसके लोग लोकतांत्रिक भागीदारी की लौ को फिर से प्रज्वलित करें, और ऐसी शासन प्रणाली का निर्माण करें जो वास्तव में लोगों की, लोगों द्वारा और लोगों के लिए हो।

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