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सेंध की पुरजोर कोशिश

Published: Dec 30, 2015 11:46:00 pm

भारतीय सेना की जासूसी करते हुए अक्सर लोग पकड़े जा रहे हैं। इसमें सेना
में कार्यरत और अवकाशप्राप्त सैनिक भी कई बार लिप्त पाए गए हैं

spying

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भारतीय सेना की जासूसी करते हुए अक्सर लोग पकड़े जा रहे हैं। इसमें सेना में कार्यरत और अवकाशप्राप्त सैनिक भी कई बार लिप्त पाए गए हैं। इसमें नई बात यह है कि इन घटनाओं में उतरोत्तर बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है और साथ ही दुश्मनों की घुसपैठ साइबर स्पेस की वजह से आसान होती जा रही है। दुश्मन की भारतीय सेना के अलग-अलग धड़ों में लगातार बढ़ रही घुसपैठ के बारे हमारा खुफिया विभाग चिंतित दिखने लगा है। लैंडिंग एयरक्राफ्टमैन रंजीत केके की ताजा गिरफ्तारी के बाद वह दो हजार सैनिकों के फेसबुक अकाउंट पर नजर रखेगी। इस बारे में विशेषज्ञों की राय पढ़ें, आज के स्पॉटलाइट में…


आइएसआई की घुसपैठ
बीते महीने एसटीएफ ने सेना की जासूसी कर महत्वपूर्ण सूचना आइएसआइ को उपलब्ध कराने वाली पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद इजाज उर्फ मोहम्मद कासाम को मेरठ से गिरफ्तार कर लिया। वह मेरठ से भारतीय सेना के राष्ट्रीय महत्व के प्रतिबंधित दस्तावेज के साथ दिल्ली जाने वाला था। इजाज ने पूछताछ में बताया कि वह 2012 से ही आइएसआई से जुड़ा है।

हनीट्रैप से बचाने पर जोर
वायु सेना का लैंडिंग एयरक्राफ्टमैन रंजीत केके को जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। वह फेसबुक पर एक लड़की की तस्वीर व नाम वाले अकाउंट होल्डर के कुच्रक में फंसकर वायु सेना से संबंधित सूचनाएं कुछ समय से कर रहा है। पुलिस ने बताया कि ऐसा रंजीत ने स्वीकार भी कर लिया है। खुफिया विभाग अब कुछ हजार सैनिकों पर लगातार नजर रखेगी।

साइबर स्पेस पर हमें चौकसी बढ़ानी होगी
अफसर करीम रिटायर्ड मेजर जनरल
सेना की जासूसी की बात कोई नई नहीं है। ऐसा पहले से होता आ रहा है। हां, यह सही है कि इन दिनों इसमें थोड़ा इजाफा हो गया है। इजाफा इसलिए लग रहा है क्योंकि इन घटनाओं पर निगरानी ज्यादा रखी जाने लगी है। पूरी दुनिया में एक मुल्क हमेशा से दूसरे मुल्क की जासूसी करवाता रहा है। पाकिस्तान, भारतीय सेना की जासूसी करवाता है, वैसे ही हमारा देश भी उनकी जासूसी करवाता रहता है। इस समय जासूसी का काम इंटरनेट के माध्यमों से इस्तेमाल में लाया जाने लगा है। यह काम अमेरिका और जर्मनी भी करवाता रहा है। इसमें कोई अचंभे वाली बात नहीं है।

डर की वजह से जासूसी
इस समय चिंता की बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान को जासूसी की जरूरत क्यों पड़ रही है? वह सेना की मूवमेंट आदि क्यों जानकारी लेना चाह रहा है? क्या उसे यह लग रहा है कि भारत उसपर आक्रमण करने वाला है, या फिर और कोई दूसरी बात तो नहीं है? जासूसी कराने की जरूरत किसी मुल्क को क्यों पड़ती है? मेरा मानना है कि जब आपको किसी बात की आशंका रहती है या किसी बात का डर सताता रहता है तब आप दुश्मन की मूवमेंट की खबर पाना चाहते हैं। पड़ोसी देश जिनसे तनाव के रिश्ते होते हैं, वे आपके सेना की मूवमेंट की जानकारी जुटा लेना चाहते हैं।

अभी जो वायु सेना का लैंडिंग एयरक्राफ्टमैन रंजीथ केके जासूसी करते हुए पकड़ा गया, वह दूसरे दर्जे का कर्मचारी है। इसमें कोई खास बात नहीं है क्योंकि इस स्तर के सैनिकों के पास दुश्मनों को जानकारी देने के लिए बहुत कुछ नहीं होता है। ये कोई ऑपरेशनल प्लान की खबर नहीं दे सकते हैं। ये बस एयर फ्लीट (विमानों का बेड़ा) कहां खड़ा है, के बारे में ही जानकारी दे सकते हैं। विमान कहां खड़े हैं, ये पाकिस्तान की सेना को वैसे ही दिखाई देता है।

इसके लिए उन्हें इतनी जदïदोजहद करने की जरूरत नहीं है। इससे पहले वायु सेना के सार्जेण्ट को भी जासूसी करते हुए पकड़ा गया था। पाकिस्तान के जासूसों के सामने वायु सेना की जासूसी सबसे बड़ा लक्ष्य है, इसलिए वे वायु सेना के अधिकारियों और कर्मचारियों को फांसते हैं। जल सेना के भी कई लोग पहले जासूसी करते हुए पकड़े जा चुके हैं। अद्र्ध सैनिक सुरक्षा बल (बीएसएफ) के लोग भी अभी कुछ समय पहले पकड़े जा चुके हैं। इनकी जासूसी से कोई भी मूवमेंट की प्लानिंग उनतक कभी नहीं पहुंची है और भविष्य में भी पहुंचने की उम्मीद मुझे नहीं लगती है।

साइबर सुरक्षा पर जोर
इन दिनों दुनिया में इंटरनेट का चलन बहुत बढ़ गया है। सोशल नेटवर्किंग के जरिए एक मुल्क का आदमी किसी दूसरे मुल्क के व्यक्ति से जुड़ सकता है। इसके लिए किसी को कोई पासपोर्ट या वीजा की आवश्यकता तो होती नहीं है। वे आपस में कुछ भी बातचीत कर सकते हैं। और पिछले कुछ समय में यह सामने आया है कि सेना के अधिकारियों को सुंदर लड़कियों की फोटो वाले प्रोफाइल अकाउंट से फांसने की कोशिश होती रही है। कुछ घटनाएं प्रकाशन में भी आ चुकी हैं। हमारी पुलिस और सेना साइबर के जरिए बढ़ रहे अपराध और जासूसी की घटना पर अपनी नजर टेढ़ी रखती है, इसलिए वे पकड़ में आ रहे हैं। हमारे पास नए-नए तकनीक के जरिए जासूसी करने वालों को पकडऩा आसान हो गया है। साइबर स्पेस पर हमें और चौकसी बढ़ाने की दरकार है।


जासूसी में लिप्त को हो सजा
कर्नल कौशल मिश्र रक्षा विशेषज्ञ
जासूसी के आरोप में वर्तमान और पूर्व सैनिकों के पकड़े जाने के लिए आर्थिक और सामाजिक कारण जिम्मेदार हैं। सेना से सेवानिवृत होने के बाद सैनिक जब अपने पढ़ाई के दिनों में दोस्त रहे लोगों, जो अन्य सेवाओं में होते हैं या कोई व्यपार कर रहा होता है, क ो देखता है तो पाता है कि वे उनके मुकाबले ज्यादा सुखी-संपन्न हैं। वो बड़े व्यापार या बड़ी नौकरी से नहीं हुए वो इसलिए हो गए क्योंकि किसी ने भ्रष्टाचार किया, किसी ने जमाखोरी की।

सैनिक इनसे आर्थिक रुप से अपने को कमजोर पाता है और जब वह कहीं भी कार्य के लिए जाता है तो उससे रिश्वत की मांग की जाती है। इससे वह चाहता है कि मेरे पास भी पैसा हो। इसलिए वह ऐसे कार्य की तरफ आकर्षित होता है। इसके अलावा पैसा कमाने की कोई और काबिलियत तो उसमें होती नहीं है। काफी समय पहले वायु सेना और सेना के बड़े अधिकारी नार्किंस बंधु अमरीकी दूतावास में पाकिस्तानी जासूसों को सूचना देते पकड़े गए थे तो उन्होनें कहा कि सेवानिवृत होने के बाद आर्थिक रुप से अपने पुराने व्यापारी दोस्तों के बराबर खड़ा होने के लिए सूचना बेच रहे थे।

पुर्नवास की व्यवस्था हो
सरकार को पूर्व सैनिकों के पुर्नवास की व्यवस्था करनी चाहिए। पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर सीमा पर बेहतर आधारभूत सुविधाएं विकसित कर रखी हैं। वह पूर्व सैनिकों को वहीं जमीन, मकान देकर बसाता है जबकि भारत की तरफ ऐसा कुछ नहीं है। कोर्ट मार्शल हुए सैनिकों की कोई निगरानी व्यव्यस्था नहीं है। इन पर सतत निगरानी रखने से ऐसी स्थितियों को पैदा होने से रोका जा सकता है। साथ ही सैनिकों की पेंशन टैक्स फ्री हो और सेवानिवृति से पहले तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए जिससे उनको बाद में रोजगार मिल सके। वन रैंक वन पैंशन जैसी चीजों को सरकार को समय रहते हल कर लेना चाहिए। जासूसी में पकड़े गए लोगों को सख्त से सख्त सजा मिले।

छावनियां शहर की गोद में आ गईं
आलोक बंसल रक्षा विशेषज्ञ
जासूसी के जितने भी मामले सामने आ रहे हैं उनमें यह देखने को मिल रहा है कि सेना के जवान या अधिकारी अथवा पूर्व सैनिक दुश्मन देश के लिए जासूसी करते पकड़े गए हैं। सेना में रहे लोग दुश्मन देश के लिए आसान टारगेट होते हैं। लेकिन यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ऐसे कौन से कारण हैं जो हमारे जवानों को जासूसी के लिए उकसा रहे हैं। इसके लिए सबसे बड़ी कारण हमारे यहां सैनिकों का जीवन स्तर काफी दयनीय होना है।

हमारे जवान यूं तो सेना की सेवा का आधे से ज्यादा समय फील्ड में ही बिता देते हैं। जहां कहीं उनको ठहरने का मौका मिलता भी है तो वहां रिहाइश की सुविधा ज्यादा बेहतर नहीं होती। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सेना के जवानों के आवास के लिए योजना तो शुरू की थी लेकिन वह भी ज्यादा असरदार साबित नहीं हुई। सेना में रहते हुए जब जवान बाहरी लोगों के सम्पर्क में आने लग जाएंगे तो निश्चित ही वे अपने हालात की तुलना बाहरी दुनिया से करने लग जाएंगे। हमारे जवानों के मामलों में ऐसा ही कुछ हो रहा है। अंग्रेजों के जमाने में सैनिकों के लिए अलग से छावनियां शुरू की गईं थीं। ये रिहायशी इलाकों से काफी दूर होती थीं जहां सिविलियंस के आने-जाने की मनाही होती थी।

सेना की हालत दयनीय
ऐसे में जवानों का बाहरी लोगों से सम्पर्क व संवाद नहीं के बराबर होता था। उसके कई फायदे थे। जो छावनियां बनीं थीं वे भी अब शहरीकरण के चलते आबादी के बीच आ गईं हैं। ऐसे में सेना के लोग रोजमर्रा के जीवन में भी सिविलियंस के सम्पर्क में आने लगे हैं। छावनियां की जमीन तक माफिया के अतिक्रमण की शिकार हो गईं हैं। जब आप सिविलियन आबादी के सम्पर्क में आते हैं तो समाज की कुरीतियों का असर तो पडऩा ही है।

आज का जो समाज है जो अपेक्षावादी होता जा रहा है। इस भौतिकवादी समाज में जब सैनिक रहने लगता है तो कई बार वे भी प्रलोभन के शिकार हो जाते हैं। उसका असर ही हम देख रहे हैं। सैनिक के दिलोदिमाग में यह बात घर कर जाती है कि मैंने आधी से ज्यादा जिंदगी जिस हालात में गुजारी वह काफी दयनीय है। ऐसे में जरा सा भी प्रलोभन उसे देशविरोधी काम करने की और उकसाने को काफी है।

जवान यह भी मानने लग जाता है कि उससे बेहतर तो पुलिस का सिपाही ही है। आप यह भी देखेंगे कि सेना में रहे लोग प्रलोभन का शिकार कोई एकाएक नहीं होते। इनको धीरे-धीरे प्रलोभन दिया जाता है। एक तो समझ का अभाव होता है दूसरे शिक्षा का भी अभाव रहता है। ऐसे में अच्छे बुरे का विचार आसानी से नहीं कर पाते। यह नहीं समझ पाते कि इस दलदल से कैसे निकलें। ऐसे में पहली जरूरत तो सेना के जवानों में शिक्षा का है। दुनिया के दूसरे देशों से तुलना करें तो हमारे यहां सेना में वेतनमान सिविलियंस की तुलना में काफी कम हैं। इन वजहों से भी ऐसी गलत हरकतों में पड़ जाते हैं।

प्रलोभन के शिकार
अंग्रेजों ने सेना की छावनियों को शहर की आबादी से दूर बसाया था ताकि उनकी गतिविधियां किसी को पता न चले। आज की तारीख में उनकी छावनियां बस्तियों के बीच आ चुकी हैं। जाहिर सी बात है कि आबादी के सम्पर्क में आने से उनपर दबाव बनाना आसान हो जाता है। आज का समाज पूरी तरह भौतिकवादी हो चला है। यही वजह है कि वे कई बार प्रलोभन के शिकार हो जाते हैं। यह उसे देश विरोधी काम की ओर धकेलने के लिए भी काफी है।

वेतमान पूरा नहीं
पिछले वेतन आयोग देने के समय पुराने और नये वेतनमान की समीक्षा की जानी चाहिए थी जो नहीं की गई। सेना के जवानों के सेवानिवृत्त होने के बाद भी सरकारी सुविधाएं मिलती है। ऐसे में जासूसी जैसे काम में इनका लिप्त होना उचित नहीं। लेकिन साम्प्रदायिकता भ्रष्टाचार, जातिवाद जैसी कुरीतियां भी जवानों के भीतर आने लगी है। तकनीक का नया दौर आ रहा है सोशल मीडिया पर प्रतिबंध है। लेकिन आज के दौर में जब हर कोई सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ है जवानों पर यह पाबंदी लगाना आसान नहीं दिखता। सोशल नेटवर्किंग साइट पर जासूसों का जाल फैलता ही जा रहा है। प्रतिबंध की बजाए नजर रखें।
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