शब्दों का दरवेश - महक उठे आदिम रंग
देश की पहली भील चित्रकार भूरी बाई के नाम पद्मश्री की घोषणा ने आदिम रंग और रेखाओं को फिर महका दिया है।

विनय उपाध्याय, कला, साहित्य समीक्षक, टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के निदेशक
स्त्री के नाम पर अपने शिविरों में आधुनिक विमर्श की आंच सेक रही बुद्धिजीवियों की बिरादरी के लिए यह कितना कौतूहल, जिज्ञासा और गर्वोचित प्रसन्नता का विषय है नहीं मालूम, लेकिन बहत्तरवें गणतंत्र दिवस पर अचानक सुर्खियों में आई देश की पहली भील चित्रकार भूरी बाई के नाम पद्मश्री की घोषणा ने आदिम रंग और रेखाओं को फिर महका दिया है। झाबुआ यानी मध्यप्रदेश के पश्चिमी छोर पर सघन जंगलों और पहाडिय़ों से घिरा वह इलाका जहां भील आदिवासियों के पुरखों ने कभी अपने बसेरे की तलाश की थी। कुदरत को ही अपना आराध्य माना और उसमें लय होते पुरुषार्थ में ही पूजा के अर्थ तलाशे। भूरी इसी महान विरासत का सुनहरा भविष्य बनकर अपने समय की किंवदंती बन जाएगी, यह सोचते हुए जरा आश्चर्य ही होता है। बहरहाल, भूरी बाई की कहानी किस्मत की कहानी नहीं है। वह कर्म के पसीने की कहानी है।
यह अस्सी का दशक था। रोजी की तलाश में भटकते-भटकते अपने पति के संग वे भोपाल आईं। घर-गांव-देहरी सब पीछे छूट गए, लेकिन स्मृतियों की रंग-रुपहली छवियां साथ चली आईं। मजदूरी के लिए हाथ आगे बढ़ते तभी भूरी को बीमारी ने घेर लिया। देह पर फफोले उग आए तभी हाथों ने कूची थामी और रंगों की सोहबत में सृजन का एक नया अध्याय रचना शुरू हुआ। एक स्त्री के भीतर मौजूद लालित्य और सौन्दर्यबोध का नैसर्गिक प्रवाह फूट पड़ा। जैसे यह एक नई यात्रा पर चल पडऩे की भीतरी पुकार थी। डगर भी नई, रफ्तार भी नई और मंजिल भी नई। इस नए आग्रह की जमीन उस बेचैनी और कसौटी से तैयार हुई, जहां भीली चित्रांकन की परंपरा में स्त्रियों का प्रवेश निषेध था। वहां अपने लोक देवता पिथौरा को रचने की अनुमति पुरुषों को ही थी। अपने लिए वर्जित इस भूमि को हासिल करने के लिए भूरी ने पिथौरा कला के आसपास सिमट आए रंगों, मिथकों, प्रतीकों, बिंबों और आशय को मन की आंखों से देखा और एक दिन सूने फलक पर वे सब नई शक्ल में ढलकर एक स्त्री की महान सर्जना में बदल गए। भूरी बाई को भोपाल
स्थित जनजातीय संग्रहालय के परकोटे में तल्लीनता से सृजनरत देखना आगन्तुकों के लिए सदा एक सुखद अनुभव होता है। देस-परदेस के अनेक संग्रहालयों की दीवारों पर भूरी के चित्र चस्पा हैं। उनका सृजन एक स्त्री के हाथों प्रकृति की महान प्रार्थना हैं। लोक देवता पिथौरा का आशीर्वाद बरसा है भूरी पर।
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