नई दिल्लीPublished: Nov 26, 2021 11:49:59 am
Patrika Desk
Patrika Opinion : राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) ने महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता पहले से ज्यादा बढ़ा दी है, क्योंकि इस मोर्चे पर अपेक्षित सुधार नहीं दिख रहा है। कुपोषण देश के लिए बड़ी समस्या रही है और इस दिशा में कोई खास प्रगति न होना सरकारी योजनाओं की विसंगतियों को उजागर करता है।
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देश में पहली बार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की आबादी का अनुपात ज्यादा होना एक ऐसा सुखद संकेत है जिसका इंतजार लंबे समय से किया जा रहा था। महिलाओं का अनुपात लगातार कम होता जाना कई तरह के दुराग्रहों का नतीजा था और इसकी वजह से विभिन्न प्रकार की सामाजिक विकृतियां बढ़ रही थीं। महिलाओं का अनुपात किसी देश या समाज के विकास का एक महत्त्वपूर्ण मानक भी होता है। इसीलिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के नतीजों को देखकर हम अपने विकास के प्रति संतोष जता सकते हैं। इसी तरह प्रजनन दर में कमी के लक्ष्य को हासिल करने में भी हमें संतोषजनक सफलता मिली है। प्रजनन दर करीब दो फीसदी हो जाने से माना जा रहा है कि अब देश की आबादी स्थिरता की ओर है। यानी कुल आबादी में अब ज्यादा बदलाव नहीं होगा।
बढ़ती आबादी लंबे समय से हमारी चिंता का विषय रही है। इस सर्वेक्षण के दूसरे चरण में 14 राज्यों को शामिल किया गया था। इनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों के साथ दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, ओडिशा और अरुणाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य भी शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि सब कुछ संतोषजनक ही है। सर्वेक्षण ने महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता पहले से ज्यादा बढ़ा दी है, क्योंकि इस मोर्चे पर अपेक्षित सुधार नहीं दिख रहा है। कुपोषण देश के लिए बड़ी समस्या रही है और इस दिशा में कोई खास प्रगति न होना सरकारी योजनाओं की विसंगतियों को उजागर करता है। बच्चों के स्वास्थ्य का आकलन फिर से हमें बता रहा है कि देश में अमीर और गरीब की खाई पहले से ज्यादा बढ़ गई है। पौष्टिक भोजन के अभाव में बच्चों में खून की कमी सहित कई तरह की बीमारियां बढ़ रही हैं तो दूसरी तरफ जरूरत से ज्यादा भोजन करने वाले बच्चे मोटापे का शिकार होकर दूसरी तरह की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं।
दरअसल, दोनों ही श्रणियों के बच्चों को कुपोषित माना जा सकता है। एनएफएचएस-5 से हमें पता चलता है कि पांच साल से कम उम्र के खून की कमी वाले बच्चों का अनुपात पिछले सर्वे के 58.6 से बढ़कर 67.1 फीसदी हो गया है। मतलब यह कि पांच साल से कम उम्र के प्रत्येक तीन में से दो बच्चों में खून की कमी है। इसी तरह खून की कमी वाली महिलाओं का अनुपात भी 53 फीसदी से बढ़कर 57 फीसदी हो गया है। वहीं 15-19 साल के बीच की किशोरवय लड़कियों का भी यह अनुपात 54.1 फीसदी से बढ़कर 59.1 फीसदी हो गया है।