scriptमहामारी से सरकारों ने क्या कोई सबक लिया | Did the government learn any lesson from the epidemic | Patrika News

महामारी से सरकारों ने क्या कोई सबक लिया

locationनई दिल्लीPublished: Apr 16, 2021 07:04:39 am

– दरअसल, पिछले दशकों में शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसे क्षेत्र रहे हैं, जिनसे सरकारों ने लगातार हाथ खींचे हैं। दुर्भाग्य से कोरोना महामारी ने इन दोनों क्षेत्रों की आधारभूत कमियों को सबसे ज्यादा उजागर किया है।

महामारी से सरकारों ने क्या कोई सबक लिया

महामारी से सरकारों ने क्या कोई सबक लिया

कोरोना महामारी का असर सीबीएसई सहित प्राय: सभी एजुकेशन बोर्डों पर पड़ा है। 10वीं-12वीं की परीक्षाएं या तो रद्द हो गई हैं या स्थगित करनी पड़ी हैं। ऑफलाइन परीक्षाओं की संभावना से जो माता-पिता या अभिभावक अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित थे, उन्हें राहत जरूर मिल गई है। ऐसा हो भी क्यों नहीं, जान बचेगी तो पढ़ाई और परीक्षा के दूसरे तरीके भी निकाले जा सकते हैं। इसलिए अब पूरा सिस्टम उन तरीकों पर माथापच्ची करने में लगा है। हमारी आधारभूत कमियां आड़े आ रही हैं। दरअसल, पिछले दशकों में शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसे क्षेत्र रहे हैं, जिनसे सरकारों ने लगातार हाथ खींचे हैं। दुर्भाग्य से कोरोना महामारी ने इन दोनों क्षेत्रों की आधारभूत कमियों को सबसे ज्यादा उजागर किया है। दोनों क्षेत्रों को धीरे-धीरे निजी क्षेत्रों के हवाले करने की नीति का खमियाजा अब पूरा देश भुगत रहा है। कई एजेंसियों के सर्वे में भी यह बात सामने आई है कि लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित हुए हैं।

स्कूलों के पास ऑनलाइन पढ़ाई के संसाधन उपलब्ध न होना, विद्यार्थियों के पास कम्प्यूटर, मोबाइल और इंटरनेट जैसी सुविधाओं का अभाव उन्हें पढ़ाई छोडऩे के लिए मजबूत कर रहा है। अभिभावकों की आर्थिक दशा पहले से खराब होना भी एक ऐसी वजह रही कि वे अपने बच्चों को संसाधनों से लैस नहीं कर सके। ऐसे विद्यार्थियों को डिजिटल डिवाइस उपलब्ध कराने की बात चुनावी चुहलबाजी से आगे नहीं बढ़ पाई। एक्सपर्ट बार-बार यह कह रहे हैं कि कोविड-19 महामारी जल्द समाप्त होने वाली नहीं है। हमें इसके साथ लंबे समय तक जीना होगा। तो क्या सरकारें पर्याप्त जतन कर रही हैं? शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों ऐसी बुनियादी जरूरतें हैं, जिन्हें मुनाफाखोरी की मंशा से चलाए जाने वाले निजी संस्थानों के भरोसे कैसे छोड़ा जा सकता है?

हकीकत सामने है कि निजी स्कूलों और अस्पतालों ने फीस जमा न करने वाले अपने ‘ग्राहकों’ के साथ कैसा बर्ताव किया है। दोष उन संस्थानों का भी नहीं है। उनका भी आर्थिक चक्र इन दिनों गड़बड़ाया हुआ है। इसीलिए शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों की जिम्मेदारी को पूरी तरह अपने पास रखना किसी भी ‘कल्याणकारी राष्ट्र’ का परम धर्म होना चाहिए। इस महामारी का भी यही सबक है। यदि हमारे स्कूल अत्याधुनिक साधनों से संपन्न होते और गरीब-अमीर सभी विद्यार्थियों के लिए सरकार एक जैसी सुविधा उपलब्ध कराने में समक्ष होती, तो आज हमें ऑनलाइन परीक्षा कराने में कोई दिक्कत नहीं आती। अब भी इतनी देर नहीं हुई है कि नीति पर पुनर्विचार कर भविष्य के लिए तैयारी नहीं की जा सके।

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