scriptडूब मरो | Die Sinking | Patrika News

डूब मरो

Published: Dec 07, 2015 11:35:00 pm

अगर आपको धूल-धुंए से एलर्जी है या फिर श्वास की तकलीफ है तो भूल कर भी कभी अपने राजधानी क्षेत्र में मत घुसना

Opinion news

Opinion news

डूब मरने के लिए हम शहर वालों को ज्यादा मेहनत-मशक्कत करने की जरूरत नहीं है बस एक ढंग की बारिश हो जानी चाहिए। चेन्नई में हाहाकार मचा हुआ है। लाखों लोग पानी के बीच बैठे हैं। सड़कों पर पानी भरा है। हवाई अड्डा डूब गया है। रेल पानी में तैरती-सी लग रही है। लोग शहर छोड़ कर भाग रहे हैं। यह तो भला हो सेना का जिसने हजारों लोगों को मरने से बचा लिया। यह हाल तो उस शहर का है जिसे देश के चंद महानगरों में गिना जाता है।

हैरानी की बात यह है कि हम इसके लिए बेचारे बादलों को दोषी ठहराए जा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता रहे हैं लेकिन अपने धत्कर्मों की कोई बात ही नहीं कर रहे। चलिए दो मिनट के लिए चेन्नई का किस्सा छोडि़ए और अपने शहर की बात शुरू कर लीजिए। हम खुद पिछले दिनों अपने पुराने शहर गए।

एक जमाने में हमारे घर के समीप एक जोहड़ हुआ करता था। बरसात में वह लबालब हो जाता। उस जोहड़े में धोबी कपड़े धोते और बच्चे जल क्रीड़ा करते। गर्मी में जब जोहड़ा सूख जाता तो हम उसके तले से चिकनी मिट्टी निकाल कर लाते जिससे हमारी अम्मा चूल्हे लीपती। लेकिन हम हैरत में पड़ गए कि पिछले बीस बरस में वह जोहड़ा गायब हो गया। वहां एक से एक शानदार मकान बन गए। अब आप ही बताएं कि पहाड़ से आने वाला पानी अब कहां पर इक_ा होगा। गलियों और घरों में नहीं घुसेगा तो जाएगा कहां? चेन्नई वालों ने भी यही किया।

बीस बरस पहले जहां झील, तालाब और नदियां थीं वहां अब बहुमंजिला इमारतें बन गईं। यह हाल देश के एक बड़े महानगर का है। अब जरा देश की राजधानी चलें। हम आपको बगैर शुल्क लिए यह नेक सलाह देना चाहते हैं। अगर आपको धूल-धुआं से एलर्जी है या फिर श्वास की तकलीफ है तो भूल कर भी कभी अपने राजधानी क्षेत्र में मत घुसना।

राजधानी नहीं वो एक गैस चैम्बर बन चुकी है जिसमें आप तिल-तिल कर मरने लगेंगे। और जनाब यह बात एक मामूली कलम घसीट नहीं कह रहा वरन् माननीय हाईकोर्ट खम ठोक कर कह रहा है। गैस चैम्बर शब्द सुनते ही हमें अमानवीय गेस्टापो याद आ जाते हैं जिन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध में हजारों लोगों को गैस चैम्बर में ठूंसकर जहरीली गैस से मारा था। अब चेन्नई को उथली झील और दिल्ली को गैस चैम्बर बनाने का इल्जाम किस पर आता है। चलिए छोडि़ए इन बेकार की बातों को आप तो विकास करो। ऐसा विकास जिसमें आदमी खुद ही ‘गिनीपिग’ बन जाए। मरने वाले तो मरते ही रहते हैं। आप तो पॉपकॉर्न खाते हुए टीवी पर चेन्नई के हाल-बेहाल देखो और पुन: ‘विकास’ में जुट जाओ।
राही
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो