अमरीका में, जहां यह शुरू हुआ था, कम्यूनिकेशन डिसेंसी एक्ट के सेक्शन 230 के तहत ऐसे नियम लागू हुए थे जिन्हें पूरी दुनिया अपनाती चली गई। हालांकि, अब अमरीका में भी सवाल उठ रहे हैं और सोशल मीडिया कंपनियों को जिम्मेदार बनाने की पहल शुरू हो गई है। न्यू मीडिया का दुरुपयोग न हो सके, इसी उद्देश्य से भारत सरकार ने इन्फॉर्मेशन टेक्नालॉजी (इंटरमीडिएटरी गाइडलाइंस एंड मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स फरवरी महीने में अधिसूचित किया था। डिजिटल कंपनियों को 25 मई तक का समय दिया गया था कि वे कानून के अनुसार अपनी व्यवस्था बनाकर सरकार को सूचित करें। सोशल मीडिया कंपनियों ने इस पर मिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त की। गूगल ने कहा कि वह पहले से ही देश के कानून के अनुसार काम कर रही है तो फेसबुक का जवाब था कि वह भी ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन कुछ मुद्दों पर सरकार से बात चल रही है। वॉट्सऐप ने नियम को निजता की रक्षा के अधिकार के खिलाफ बताते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया तो ट्विटर ने भी सरकार की मंशा पर शक पैदा करते हुए बयान दिए।
इस मामले में हाईकोर्ट का निर्णय आने के बाद ही उसका रुख पता चलेगा। लेकिन केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है, इन कंपनियों को यहां के नियम मानने ही होंगे। सरकार का कहना है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। डिजिटल मीडिया कंपनियां निजी फायदे के लिए अपनी शर्तें थोपना चाहती हैं। देखा जाए तो सरकार की बात में दम है, लेकिन डिजिटल मीडिया भी जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में अपने हितों को छिपाना चाह रहा है, वह भी बेवजह नहीं है। हालिया टूलकिट विवाद इसका उदाहरण है कि किस तरह राजनीतिक दल भी अपने हित साधने के लिए सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि दोनों आशंकाओं का समाधान करते हुए कोई रास्ता निकाला जाए।