गुजरात के भूकम्प को आए 15 साल बीत गए लेकिन लगता नहीं कि केन्द्र के साथ राज्य सरकारों ने आपदा प्रबंधन की दिशा में कोई ठोस उपाय किए हों। दुनिया भर के वैज्ञानिक भारत में बड़े भूकम्प की आहट के बारे में चेतावनी दे रहे हैं लेकिन ये चेतावनी अखबारों की सुर्खियों से आगे नहीं बढ़ पा रही। आपदा प्रबंधन को कारगर बनाने की दिशा में कार्रवाई का न होना आश्चर्य में डालता है।
दुनिया में आए विनाशकारी भूकम्पों ने लाखों लोगों को असमय ही मौत की नींद सुला दिया है। चीन, इंडोनेशिया, हैती और चिली में आए सबसे बड़े भूकम्प आज भी प्रकृति के खौफ की कहानी याद दिला देते हैं। जापान समेत अनेक देशों ने भूकम्प आने के बाद जान-माल की हानि कम करने की दिशा में अनेक उपाय किए हैं।
भूकम्प के बाद की तबाही से उबरने पर हम अरबों-खरबों रुपए खर्च कर सकते हैं तो ऐसे उपाय क्यों नहीं कर सकते कि तबाही कम हो। या फिर सरकारों की प्राथमिकता में यह विषय कभी शुमार ही नहींं रहा। भूकम्प के लिहाज से देश के अति संवेदनशील इलाकों में आपदा से युद्ध स्तर पर निपटने की तैयारी करने में आखिर परेशानी क्या है?