scriptआपदा का इंतजार | Disaster awaits | Patrika News

आपदा का इंतजार

Published: Jan 08, 2016 11:08:00 pm

भूकम्प के बाद की तबाही से उबरने पर हम अरबों-खरबों रुपए खर्च कर सकते
हैं तो ऐसे उपाय क्यों नहीं कर सकते कि तबाही कम हो। या फिर सरकारों की
प्राथमिकता में यह विषय कभी शुमार ही नहींं रहा

earthquake

earthquake

बीते दशकों में तेजी से बदल रही दुनिया के साथ भारत ने भी बड़े बदलावों का दौर देखा है। कई बुरी आदतों को भी हमने बदला है। लेकिन आग लगने पर ही कुआं खोदने की अपनी पुरानी आदत को हम बदलना क्यों नहीं चाहते? कुआं आग लगने से पहले भी तो खोदा जा सकता है। कुआं पहले खोदा जाए या बाद में, खर्चा तो उतना ही आना है।

आपदा प्रबंधन विभाग के विशेषज्ञों ने गृह मंत्रालय को भूकम्प के बारे में चेतावनी दी है। आशंका जताई है कि पहाड़ी राज्यों समेत कुछ राज्यों में 8 से अधिक की तीव्रता का भूकम्प आ सकता है। आपदा प्रबंधन विभाग समय-समय पर पहले भी ऐसी आशंकाएं जताता रहा है लेकिन आशंकाओं की रिपोर्ट हर बार फाइलों में सिमट कर रह जाती है। पन्द्रह साल पहले कच्छ में आए भूकम्प की तबाही के निशान अब भी सिहरन पैदा कर देते हैं।

चंद सैकेंड के भूकम्प ने ऐसे घाव दिए थे जिन्हें भरने में दशकों लग जाएंगे। भूकम्प में 17 से 18 हजार लोगों की मौत के साथ हजारों लोग जिंदगी भर के लिए अपंग हो गए थे। भूकम्प को न तो रोका जा सकता है और न टाला। सिर्फ इसके नुकसान को कम करने के उपाय किए जा सकते हैं।

गुजरात के भूकम्प को आए 15 साल बीत गए लेकिन लगता नहीं कि केन्द्र के साथ राज्य सरकारों ने आपदा प्रबंधन की दिशा में कोई ठोस उपाय किए हों। दुनिया भर के वैज्ञानिक भारत में बड़े भूकम्प की आहट के बारे में चेतावनी दे रहे हैं लेकिन ये चेतावनी अखबारों की सुर्खियों से आगे नहीं बढ़ पा रही। आपदा प्रबंधन को कारगर बनाने की दिशा में कार्रवाई का न होना आश्चर्य में डालता है।

दुनिया में आए विनाशकारी भूकम्पों ने लाखों लोगों को असमय ही मौत की नींद सुला दिया है। चीन, इंडोनेशिया, हैती और चिली में आए सबसे बड़े भूकम्प आज भी प्रकृति के खौफ की कहानी याद दिला देते हैं। जापान समेत अनेक देशों ने भूकम्प आने के बाद जान-माल की हानि कम करने की दिशा में अनेक उपाय किए हैं।

भूकम्प के बाद की तबाही से उबरने पर हम अरबों-खरबों रुपए खर्च कर सकते हैं तो ऐसे उपाय क्यों नहीं कर सकते कि तबाही कम हो। या फिर सरकारों की प्राथमिकता में यह विषय कभी शुमार ही नहींं रहा। भूकम्प के लिहाज से देश के अति संवेदनशील इलाकों में आपदा से युद्ध स्तर पर निपटने की तैयारी करने में आखिर परेशानी क्या है?
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो