ओपिनियन

मुक्ति मार्ग और पाखण्ड

हमारे नेता जब-तब अपनी पार्टी के पुरखों के वैचारिक शवों को कंधों पर ढोती
नजर आती है। अरे भाई बहुत हुआ। चाचाजी, काकाजी को मरे आधी सदी बीत गई लेकिन
नेता मानते ही नहीं। बेचारे करें भी तो क्या करें, उनके पास खुद का कोई

Dec 02, 2016 / 10:01 pm

शंकर शर्मा

Home / Prime / Opinion / मुक्ति मार्ग और पाखण्ड

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.