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निवेश की नई संभावनाएं भी तलाशें

लॉकडाउन के बीच अपने घरों की और लौटे श्रमिकों के लिए सरकारों को न केवल रोजगार का प्रबंध करना है बल्कि उनके बच्चों की शिक्षा -दीक्षा के बारे में भी सोचना होगा। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा वापस लौटे मजदूरों की स्किल का डाटाबेस तैयार कर लिया जाए तो इस राज्यों में सम्बंधित उद्योग में निवेश के अवसर भी खुल सकेंगे।

May 06, 2020 / 02:06 pm

Prashant Jha

निवेश की नई संभावनाएं भी तलाशें

आर.के.सिन्हा, टिप्पणीकार व पूर्व सांसद

सारे देश ने देखा कि लॉकडाउन के दौरान देश भर में प्रवासी मजदूर किन भारी परेशानियों को झेलने को मजबूर हुए। इस दौरान कितने ही अपने घरों की तरफ पैदल जाने के दौरान सड़कों पर गिरकर मर भी गए। अन्ततः केंद्र सरकार में मजदूरों को अपने घरों तक पहुँचाने के लिए विशेष ट्रेन चलाने का फैसला किया जो स्वागत योग्य है । अब प्रवासी मजदूर अपने- अपने घरों को वापस चल जाएँगे। उम्मीद के जानी चाहिए कि दूरदराज के इलाके में फंसे ज्यादातर प्रवासी मजदूरों की वतन वापसी हो जाएगी।

इन प्रयासों के बाद मजदूरों के उन आंसू भरी दस्तानों में शायद कुछ कमी आए जो बीच रास्तों में खौफनाक मौतों से जुड़ी होती हैं। सचमुच जब यह जानने को मिलता है कि महाराष्ट्र से दस युवा मजदूर साइकिलों से अपने गांव के लिए निकले थे। वे करीब 350 किलोमीटर चल चुके थे। मध्यप्रदेश की सीमा में पहुंचे। तेज धूप और थकावट के चलते उनका एक साथी निढाल हुआ तो सब रुके। इलाज मिलने के पहले ही वो चल बसा। इसी तरह पंजाब से अलीगढ पैदल जाता एक मजदूर ग्रेटर नॉएडा में भूख और थकान से चल बसा । मुबई से कितने ही असहाय मजदूर साइकिलों पर उड़ीसा तक चल गए। जरा सोचिए कि इतने कठिन सफर के दौरान उन्हें कितने अवरोध और दिक्कतें आई होंगी। कितने ही स्थानों पर पुलिस ने लाठियां बरसाई होंगी । यह भी ठीक है कि रास्ते में ही कुछ लोगों ने इन गरीबों को भोजन और विश्राम का इंतजाम भी किया होगा।

जहां प्रवासी मजदूरों को लेकर अधिकतर राज्यों का रुख पत्थर दिल रहा, वहीं कुछ मुख्यमंत्रियों ने रेल द्वारा मजदूरों की वापसी के लिए पहल की। गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक से ट्रेनें प्रवासी मजदूरों को लेकर उत्तर प्रदेश पहुंच रही हैं। इनमें आए लोगों को जिलों में बनाए गए क्वारनटीन सेंटर में भर्ती कराया जाएगा। फिर उनका मेडिकल टेस्ट होगा। उसके बाद ये घर जा सकेंगे। इस संक्रमण काल में मानवीयता की तमाम मिसालें भी सामने आ रही हैं। इनसे कुछ तो सुकून मिलता है कि समाज ने गरीब प्रवासी मजदूरों की मदद की। उन्हें सहारा दिया जब सरकारें अपनी जिम्मेदारी से भाग रही थीं।

अब चूंकि देशभर में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी हो रही है तो सरकारों को उनके लिये तत्काल रोजगार के बारे में सोचना होगा। अकेले पूर्वी राज्यों में ही एक करोड़ से ज्यादा प्रवासियों के लौटने पर इनके रोजगार का बड़ा संकट उत्पन्न होगा । इससे निपटने की चुनौती भी रहेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो देश को भरोसा दिलाया है कि देश आर्थिक मोर्चे पर ठीक है। उनके दावे-वादे पर भरोसा करना होगा। लेकिन साथ ही धूर्त, लापरवाह और भ्रष्ट नौकरशाहों पर भी शिकंजा कसना होगा ।

अब स्थानीय सरकारों को मजदूरों को उनके घरों के आसपास ही रोजगार के विकल्प देने होंगे। इस लिहाज से इन्हें कुटीर उद्योगों से या कृषि से सम्बंधित छोटे उद्योगों से जोड़ा जा सकता है। बेशक ये काम तुरंत तो नहीं हो सकता। पर इस तरफ गंभीरता से तत्काल शुरू की जाने लायक योजनायें बनानी होगीं । इन मजदूरों के बच्चों की शिक्षा की तरफ भी सोचना होगा। इनके बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलवाने की पहल भी सरकारें करेंगी ही ऐसी आशा की जाती है ।

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा वापस लौटे मजदूरों से उनके स्किल की जानकारी प्राप्त कर उसका डाटाबेस तैयार कर लिया जाये तो इन राज्यों में सम्बंधित उद्योग स्थापित करने के लिए इच्छुक उद्योगपतियों की लम्बी कतारें इन पूर्वी राज्यों में लग सकती हैं, क्योंकि, उद्योगों को सबसे भारी समस्या कुशल कामगारों की कमी हो तो होती है । इस तरह, ये मजबूर मजदूर अपने प्रदेशों के लिए निवेश खींचने वाली एक मजबूत शक्ति बनकर उभर सकते हैं । एक बात जान लें कि अब ये प्रवासी मजदूर उन स्थानों पर वापस जाने में तो जरूर हिचकेंगें जहां पर इनके साथ बुरा व्यवहार हुआ है।

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