एक पहलू यह भी है कि मतभेदों में उलझकर सरकार और रिजर्व बैंक यह नहीं सोच रहे कि देश के लोग या सोच रहे हैं। दो बड़ी शिकायतें हैं, जिन पर देश के लोग इन दिनों ज्यादा विचार कर रहे हैं। पहली, जिस तरह के रंग-बिरंगे ‘फेंसी’ या सजावटी कागजी नोट आ रहे हैं, आम आदमी चकित है। मुद्रा की गंभीरता प्रभावित हो रही है। दूसरी, नोटबंदी का एक फायदा डिजिटल लेन-देन को भी बताया गया था। सुविधा भी बताई गई थी और इस सुविधा को मुफ्त भी बताया गया था, लेकिन अब डिजिटल खरीदारी के लिए अलग से शुल्क वसूली शुरू होने लगी है। लोगों में चिंता है कि उनका पैसा अगर किसी नीरव मोदी के खाते में चला गया, तो उसे कौन लौटाकर लाएगा? सरकार को सोचना चाहिए कि वह लोगों के विश्वास को कैसे जीते और लौटाए। इससे भी जरूरी है कि सरकार रिजर्व बैंक और वहां बैठे अपनी पसंद के बैंकर्स पर विश्वास करे।