डॉक्टर भगवान नहीं होते
Published: Jul 01, 2022 04:13:44 pm
कोई डॉक्टर भगवान नहीं है। ये सब हमारे शुभचिंतक हैं और वे भी सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनका मरीज जल्दी ठीक हो कर घर जाए और दोबारा बीमार हो कर वापस न आए।
रंजन दास गुप्ता
वरिष्ठ पत्रकार
और स्तंभकार जब डॉ. बी.सी. रॉय ने 1958 में कोलकाता में गंभीर बीमारी से जूझ रहे एक मरीज की जान बचाई, तो मरीज ने उनके पैर छुए और उन्हें धरती पर भगवान की संज्ञा दी। इस पर डॉ.रॉय ने कहा कि वे कोई ईश्वर या देवता नहीं हैं। उन्होंने सदा इस बात पर जोर दिया कि मरीजों को कभी यह नहीं मानना चाहिए कि डॉक्टर भगवान हैं। वे भी उन्हीं की तरह इंसान हैं। यह पूरी तरह वैज्ञानिक अवधारणा है। मुश्किल यह है कि डॉ. रॉय के निधन के छह दशक बीतने के बाद आज भी सफल चिकित्सकों को भगवान का दर्जा देना जारी है। दिवंगत डॉ. के.के अग्रवाल ने भी उन्हें भगवान बताने वाले लोगों को इस बात पर टोका था। भारतीय चिकित्सा संघ के कार्यकाल के दौरान उन्होंने डॉक्टर और मरीज के बीच स्वस्थ रिश्ते की ही वकालत की। वे हमेशा स्वीकार करते रहे कि डॉक्टर हर बार इलाज करने में सफल नहीं होते। कई बार गंभीर मरीज को ठीक करना डॉक्टर के वश में नहीं होता। कोरोना महामारी में कई चिकित्सकों की भी मौत हुई। इन दिनों कई घटनाएं सामने आर्इं, जब चिकित्सकों को मरीज के परिजनों द्वारा हिंसा का शिकार होना पड़ा। इलाज के दौरान किसी भी तरह की समस्या पैदा हो जाए, यह मान लिया जाता है कि डॉक्टर या पैरामेडिकल स्टाफ की गलती है। कभी-कभार डॉक्टर, नर्स और तकनीकी स्टाफ से गलती हो भी जाती है, जिससे मरीज की मृत्यु हो सकती है। लेकिन, आम तौर पर डॉक्टर मरीज की जान बचाने की हर संभव कोशिश करते हैं।
पश्चिम बंगाल, दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ इलाकों में डॉक्टर मरीज के बीच संघर्ष बहुत ज्यादा देखे जाते हैं। दक्षिण में ऐसे मामले अपेक्षाकृत कम देखे गए हैं। कारण बस इतना है कि दक्षिण भारत में चिकित्सक-मरीज संबंध उपमहाद्वीप के बाकी क्षेत्रों से बेहतर हैं। शायद ही किसी ने कभी सीएमसी वेल्लोर, अपोलो हॉस्पिटल या निमहान्स में मरीज पक्ष की ओर से हिंसा का कोई मामला सुना होगा। फिर भी डॉक्टर को पूजने का विचार न केवल अस्वीकार्य है, बल्कि अजीब भी है। विज्ञान व धर्म दोनों अलग-अलग हैं। चिकित्सा जगत के विकास में धार्मिक हठधर्मिता और अंधविश्वास के लिए कोई जगह नहीं है। जितने अध्ययन, प्रयोग होंगे; यह उतना ही अधिक विकसित होगा। इसीलिए डॉक्टर निरंतर अनुसंधान पथ पर अग्रसर हैं। जाने-माने नेत्र विशेषज्ञ डॉ.जी.चंद्रशेखर हों या श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ.रणवीर गुलेरिया इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। श्रेष्ठ से श्रेष्ठ चिकित्सक भी सर्वशक्तिमान ईश्वर में आस्था रखते हैं। अध्यात्म में आस्था होना और डॉक्टर को भगवान मानना दोनों अलग-अलग सोच हैं। पहली सोच तर्कसंगत है, जबकि दूसरी तर्कविहीन। यहां तक कि बड़े से बड़े डॉक्टर स्वयं को भगवान या देवता नहीं मानते। वे भली-भांति जानते हैं कि वे भी विफलताओं से परे नहीं हैं।
डॉक्टर को भगवान के समान समझ बैठना एक मानसिक रोग है, जिसे शुरुआती अवस्था में ही ठीक करना जरूरी है। अस्पताल प्रबंधन संभालने वाली महिला प्रबंधक व महिला चिकित्सक भी मरीजों के साथ मानवता पूर्ण व्यवहार करती हैं। डॉ. शैलजा सेन गुप्ता, डॉ.सागरिका मुखर्जी, प्रतीक्षा गांधी और डॉ.शांति बंसल ऐसे ही कुछ नाम हैं। 73 वर्ष के डॉ.बी. प्रताप रेड्डी स्वयं कैंसर पीडि़त हैं, लेकिन वे अपने मरीजों के प्रति अपनी ड्यूटी कभी नहीं भूलते और उन्हें सही परामर्श देते हैं। डॉ.जस्टिन जयलाल पूरी दक्षता के साथ सर्जरी की नियमित ड्यूटी निभाते हैं। दोनों ईश्वर में आस्था रखते हैं, लेकिन ऐसा नहीं मानते कि वे ईश्वर के समान हैं और चिकित्सा के वैज्ञानिक विकास पर ध्यान देते हैं। हालांकि आज कुछ डॉक्टर ऐसे भी हैं, जो गरीब मरीज को इलाज उपलब्ध नहीं करवाते। ऐसे चलन पर रोक लगनी चाहिए। ऐसे डॉक्टरों को ब्लैकलिस्ट करने की जरूरत है। 1972 की एक इटैलियन फिल्म में सोफिया लॉरेन ने नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल का किरदार निभाया है। वे स्वयं को मानव कल्याण के लिए प्रतिबद्ध मानती थीं और ऐसा ही जीवन उन्होंने जिया भी। डॉक्टर्स डे के इस अवसर पर हमें इस विचार को सजगता के साथ अपनाना होगा कि कोई डॉक्टर भगवान नहीं है। ये सब हमारे शुभचिंतक हैं और वे भी सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनका मरीज जल्दी ठीक हो कर घर जाए और दोबारा बीमार हो कर वापस न आए।