उस पथिक की क्या परीक्षा,
जिस के पथ में शूल न हो ॥
उस नाविक की क्या परीक्षा,
जब नदी का प्रवाह प्रतिकूल न हो ॥
कठिनाइयों में, प्रतिकूल अवस्था में हम सत् को देख सकते हैं। आज के विद्यार्थी प्रतिकूलता से डरते हैं, वे अनुकूलता चाहते हैं। वे चाहते हैं कि जैसा हम चाहें, वैसा ही हो। अगर विद्यार्थी खूब कष्ट सहन करने के लिए तैयार हो जाएं, तो वे हर प्रतिकूल परिस्थिति पर विजय पा सकते हैै। इस बात का जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि शिक्षा का लक्ष्य मात्र भौतिक सुख-समृद्धि ही नहीं है। किसान खेती करता है, धान के लिए, न कि मात्र घास के लिए। धान के साथ घास तो मिलेगा ही। भोजन करवाने वाला व्यक्ति भोजन तो करवाएगा पर साथ में पानी भी पिलाएगा। आप घास के पीछे पड़कर धान को भूल जाते हैं।