साक्ष्यों के आधार पर अध्ययन में चेताया गया है कि कोरोना के ऐसे वेरिएंट सामने आ सकते हैं जो वैक्सीन को भी विफल कर दें। ये वेरिएंट मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मर्स) जितने घातक हो सकते हैं जो हर दस में से तीन की मौतों के लिए जिम्मेदार रहा। यह केवल कागजी तथ्य नहीं है, ‘यथार्थ संभावना’ है। अध्ययन के अनुसार, बड़े पैमाने पर वैक्सीन लगने से चयन का दबाव बढ़ गया है। इससे वेरिएंट को रूपांतरित होने में आसानी होगी। इस वायरस को एक ऐसी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मशीन जैसा माना जा सकता है जो तब तक अनवरत रूप बदलती रहेगी जब तक कि वह ऐसे म्यूटेंट का समूह न बना दे जो सबसे अधिक ताकतवर हो। डर इस बात का है कि जितने लोग वैक्सीन से प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेंगे, वायरस को रूप बदलने के उतने ही मौके मिलेंगे।
यह तर्क टीकाकरण के खिलाफ नहीं है, बल्कि इस ओर इशारा है कि अब हमें ऐसी प्रतिरोधक क्षमता चाहिए जो वायरस को बेअसर कर दे। यह इस बात की क्षीण संभावना की चेतावनी है कि दुनिया भर में टीकाकरण के मात्र एक दौर से यह वायरस सदा के लिए नियंत्रित हो जाएगा। अध्ययन में कहा गया है कि वैक्सीन को विफल कर देने वाले वेरिएंट के आने का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। हमें प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति का मुकाबला करने ओर उसे टालने के लिए तैयार रहना होगा। सेज विशेषज्ञों की कुछ सिफारिशें हैं, जिनमें प्रमुख है वैक्सीन पर शोध व अध्ययन बढ़ाना। इससे न केवल वायरस से गंभीर बीमारी की संभावना कम होगी, बल्कि संक्रमण और वायरस का प्रसार भी घटेगा। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की ओर से वैक्सीन लगा चुके लोगों में संक्रमण पर जारी आंकड़ों के लिहाज से यह अत्यावश्यक है।
बेहतर होगा कि पैनकोरोनावायरस वैक्सीन पर शोध किया जाए जो कोरोना वायरस के वेरिएंट्स से व्यापक स्तर पर रक्षा करने में सक्षम हो। अध्ययन में विश्व भर में टीकाकरण प्रयासों को बढ़ाने और उसके बाद भी मास्क, सैनेटाइजर, सामाजिक दूरी, रैपिड टेस्टिंग, क्वारंटीन और आवश्यकतानुसार लॉकडाउन की सिफारिश की गई है ताकि दुनिया भर में वायरल लोड कम कर उसे नियंत्रित किया जा सके और नए वेरिएंट की उत्पत्ति रोकी जा सके। साथ ही एंटीवायरल दवाओं के सेवन के प्रति चेताया है जो नए वेरिएंट को जन्म दे सकती हैं। इसके अलावा सेकंड और थर्ड जनरेशन वैक्सीन पर भी फोकस करना होगा।
मानो या न मानो विश्व वायरसों से भरा हुआ है। हम वायरस के खतरे खत्म नहीं कर सकते लेकिन इनसे बचने की संस्कृति विकसित कर स्वयं को कई बीमारियों से बचा सकते हैं। जोखिम तो रोजाना है, सार्वजनिक संक्रमण से बचाव और सावधानी के आसान उपायों पर फोकस करना होगा। आशा और आशावाद हमें टीकाकरण बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं लेकिन वायरस को कमतर समझना गलत होगा। मास्क उतरा नहीं, सुरक्षा उपाय छूटे नहीं कि वायरस को हमले के नए रास्ते मिल जाएंगे।
(द वाशिंगटन पोस्ट)