वर्ष 1920 के नागपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने अखिल भारतीय प्रस्ताव समिति को प्रस्ताव दिया कि कांग्रेस का उद्देश्य भारत को संपूर्ण स्वतंत्रता दिलाना और दुनिया को पूंजीवाद के चंगुल से मुक्त कराना होना चाहिए। वर्ष १921 के आंदोलन में भी वे सहभागी हुए। तब ऐसी सोच थी कि जेल जाने का मतलब देशभक्ति का परिचय होता है। न्यायालय में बचाव करने को डरपोक मानसिकता माना जाता था। डॉ. हेडगेवार को यह कतई मंजूर नहीं था। इसलिए उन्होंने सत्याग्रह में भी भाग लिया, न्यायालय में बचाव भी किया और जमानत ठुकरा कर कारावास भी स्वीकार किया।
महात्मा गांधी द्वारा खिलाफत आंदोलन का समर्थन करने के निर्णय से असहमत होने पर भी उन्हें गांधी जी के साथ कार्य करने में हिचक नहीं थी। वे मानते थे कि असहमति के कारण ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध आंदोलन कमजोर नहीं होने देना चाहिए। वे एक साल जेल में रहे। जेल से छूटने के बाद उनके स्वागत के लिए जेल के बाहर भारी वर्षा में भी हजारों लोग उपस्थित थे। जेल के बाहर ही उन्होंने कहा- जेल में जाने से मेरी योग्यता बढ़ नहीं गई है। यदि आप ऐसा मानते हो तो इसके लिए अंग्रेज सरकार को ही धन्यवाद देना चाहिए। जब उनकी आयु आठ-नौ साल की रही होगी, शायद तीसरी कक्षा के छात्र थे, तब रानी विक्टोरिया के नाम से विद्यालय में हुए महोत्सव में मिठाई बंटी। उन्होंने मिठाई लेकर फेंक दी। यह घटना सामान्य नहीं है, क्योंकि उस समय तक नागपुर में स्वतंत्रता आंदोलन की धमक नहीं पहुंची थी। उनके घर राष्ट्रीय विचार आंदोलन का वातावरण भी नहीं था। उनमें गुलामी को लेकर चिढ़ थी और आजादी को लेकर जन्मजात अनुराग था।
अक्टूबर, 1925 में विजयादशमी के दिन संघ की स्थापना हुई, लेकिन इसका नाम अप्रेल 1926 में, 22 स्वयंसेवकों के साथ मिलकर तय किया। नाम तय करने के लिए २२ स्वयंसेवकों से चर्चा का मकसद सिर्फ इतना ही था कि उन्हें संघ का नाम नहीं, बल्कि इसकी कार्यपद्धति की नींव रखनी थी। इस प्रयोग के पीछे उन्होंने यही कार्यपद्धति समझाई कि संघ का अर्थ है टीम वर्क। इसीलिए नामकरण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रखा गया। किसी भी सामाजिक कार्य के लिए समाज के धनी लोगों से आर्थिक मदद लेने का चलन उस समय भी था और आज भी है। संघ के पहले दो वर्ष का कार्य ऐसे ही चला, पर डॉ. हेडगेवार की सोच थी कि संघ स्वावलंबी होना चाहिए। संघ के लिए जो भी आवश्यक हो, समय, परिश्रम, त्याग, बलिदान, धन वह सभी स्वयंसेवक दें। यह संस्कार संघ की पद्धति है। वर्ष 1929 में जब उनको सर्वसम्मति से सरसंघचालक पद का दायित्व देने के बाद प्रणाम किया गया, तो उनका उत्तर था, ‘मुझे अपने से श्रेष्ठ लोगों का प्रणाम स्वीकारना मंजूर नहीं है।’ इस पर अप्पाजी जोशी ने कहा, आपको भले मंजूर न हो, तो भी सबने मिलकर तय किया है तो आपको यह पद स्वीकार करना पड़ेगा। १940 में स्वास्थ्य खराब होने पर चिकित्सकों के के मना करने के बावजूद वे संघ शिक्षा वर्ग में आए। वहां उनका पहला वाक्य था- ‘आपकी सेवा करने का मौका नहीं मिला, इसके लिए आप मुझे क्षमा कीजिए। मैं यहां आप के दर्शन के लिए आया हूं। संघ कार्य शाखा तक सीमित नहीं है वह समाज में करना है।’ इस प्रकार से एक मजबूत नींव पर संपूर्ण स्वावलंबी संगठन की रचना उन्होंने की। नागपुर में १ अप्रेल १८८९ को जन्मे डॉक्टर हेडगेवार ने जिस संगठन की नींव रखी वह लगातार मजबूत हो रहा है।