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विश्व में ड्रोन खरीद और निर्माण की बढ़ी होड़

हमलावर ड्रोन क्षमताओं में तुर्की के साथ बराबरी का मुकाबला कर रहा चीन विश्व ड्रोन बाजार में तेजी से आगे बढ़ रहा है। पिछले एक दशक में यह अमरीका और इजरायल से ज्यादातर सौदे छीन चुका है। चीन भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान को भी अत्याधुनिक हमलावर ड्रोन उपलब्ध करवा रहा है।

May 12, 2022 / 08:12 pm

Patrika Desk

विश्व में ड्रोन खरीद और निर्माण की बढ़ी होड़


सुधाकर जी
रक्षा विशेषज्ञ, भारतीय
सेना में मेजर जनरल
रह चुके हैं
ड्रोन पारम्परिक हथियारों के सशक्त, प्रभावी और सस्ते विकल्प साबित हुए हैं। असल में ड्रोन की पहचान कर इनका पता लगाना मुश्किल होता है। इस वजह से ये काफी उपयोगी होते हैं। पारम्परिक रडार तंत्र इस प्रकार से नहीं बने हैं कि वे छोटे उडऩे वाले उपकरणों को पहचान सकें और अगर कोशिश की भी जाए, तो इनका आकार इतना छोटा होता है कि लोग समझ लेते हैं कोई पक्षी होगा। ये महंगे भी नहीं हैं, इसलिए आसानी से खरीदे जा सकते हैं या खुदरा बाजार में मिलने वाले छोटे-मोटे कलपुर्जों से बनाए जा सकते हैं। यही वजह है कि दुनिया के बहुत से देशों के बीच सबसे अत्याधुनिक सशस्त्र ड्रोन बेड़े खरीदने की होड़ लगी है।
मौजूदा दशक हथियारों से लैस सशस्त्र ड्रोन के बीच कड़ी प्रतिस्पद्र्धा का साक्षी बनेगा, जो आर्थिक एवं रक्षा क्षमता दोनों ही लिहाज से व्यावहारिक विकल्प हैं। हालांकि, 9/11 हमले के बाद महंगे प्रीडेटर ड्रोन के साथ अवतरित हुए आधुनिक ड्रोन आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। कारण कि अमरीका अपने मानव रहित लड़ाका हवाई वाहन (यूसीएवी) के निर्यात पर कड़ा नियंत्रण रखता है। ये केवल अमरीका के करीबी सैन्य सहयोगी देशों के लिए हंै। हालांकि चीन, इजरायल और तुर्की ने अपने निजी यूसीएवी बनाने शुरू कर दिए हैं, जिनका वे निर्यात करते हैं। पाकिस्तान जैसे देशों के लिए अब यह मुश्किल नहीं है कि गैर पारम्परिक अभियानों के लिए वे सस्ते तरीके विकसित कर लें। इन दिनों चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में दोनों ओर से यूएवी (ड्रोन) का खुफिया, निगरानी व टोही उपकरण के तौर पर इस्तेमाल हो रहा है। इसके अलावा ये निशाना साधने, तोप के गोले की दिशा तय करने और प्रतिपक्षी की सम्पत्तियों पर हमले के काम आते हैं। तुर्की को नागोर्नो-कारबख युद्ध में अपने ड्रोनों के प्रदर्शन का फायदा मिला। कई देश इन मानवरहित ड्रोन को खरीदने की कतार में हैं। तुर्की ने अब तक अजरबैजान, यूक्रेन, कतर और लीबिया को बैरकटार टीबी 2 ड्रोन बेचे हैं। साथ ही अन्य देशों को अत्याधुनिक सशस्त्र ड्रोन आपूर्तिकर्ता के तौर पर उभरा है। 2020 में तुर्की सेना ने सीरिया और लीबिया में ड्रोन की तैनाती की। पाकिस्तान 2015 में अमरीका, यूके और इजरायल के बाद मानव रहित लड़ाका हवाई यान (यूसीएवी) तैनात करने वाला चौथा देश बना। उस वक्त पाकिस्तानी सेना ने दावा किया कि उसने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के तीन हाई प्रोफाइल आतंकियों को मार गिराया। इसके लिए पाकिस्तान ने अपने स्वदेशी ‘बुर्राक लड़ाकू ड्रोनÓ का इस्तेमाल किया।
27 जून 2021 को भारत के जम्मू एयरबेस पर हमला किया गया। भारत के सैन्य ठिकानों पर हमले के लिए पहली बार ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। कथित तौर पर पाकिस्तान के गैर सरकारी लोगों ने यह हमला किया। यह भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठानों के लिए चेतावनी की घंटी है। इसके बाद पाकिस्तान ने कथित तौर पर अफगानिस्तान के पंजशीर में सितम्बर 2021 में राष्ट्रीय प्रतिरोध बल के खिलाफ ड्रोन का इस्तेमाल किया। पाकिस्तान यूएवी पर काफी निवेश कर रहा है। पाक नौसेना ने कथित तौर पर नया जासूसी विमान अपने बेड़े में शामिल किया है, जो भारतीय पनडुब्बियों का पता लगा कर उन पर हमला कर सकता है। पाकिस्तान चीन से सीएच-4 और बड़े पंखों वाले यूसीएवी लेने के अलावा एएनकेए-यूसीएवी के सह उत्पादन के लिए तुर्की से अनुबंध भी कर चुका है। यानी पाकिस्तान के पास स्वदेशी व बाहर से खरीदे गए दोनों ही तरह के ड्रोन हैं।
हमलावर ड्रोन क्षमताओं में तुर्की के साथ बराबरी का मुकाबला कर रहा चीन विश्व ड्रोन बाजार में तेजी से आगे बढ़ रहा है। पिछले एक दशक में यह अमरीका और इजरायल से ज्यादातर सौदे छीन चुका है। चीन भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान को भी अत्याधुनिक हमलावर ड्रोन उपलब्ध करवा रहा है। दोनों देश कथित तौर पर ऐसे कुछ मॉडल के संयुक्त उत्पादन पर वार्ता कर रहे हैं। इस प्रकार, जहां पाक व चीन मानव रहित हवाई हमले की क्षमता को मजबूत कर रहे हैं, वहीं भारत अमरीकी व इजरायली सशस्त्र ड्रोनों को लीज पर लेने की तैयारी कर रहा है, ताकि सीमाओं पर इसकी क्षमता बढ़ाई जा सके। भारत ने अब तक इजरायल से आयातित खोजी व टोही ड्रोन को केवल निगरानी और सैनिक परीक्षण के काम में लिया है। गौरतलब है कि भारत ने अमरीका के साथ 2018 और 2020 में दो समझौते किए हैं। इनके तहत वह अमरीका से आधुनिक हमलावर ड्रोन लीज पर ले सकता है या खरीद सकता है। घरेलू मोर्चे पर, भारत अनुसंधान एवं विकास में निवेश कर अपनी ड्रोन क्षमता बढ़ा रहा है। ‘डीआरडीओ घातकÓ इसी श्रेणी में आता है। फिलहाल यह विकास के चरण में है। केंद्र सरकार इस पर गंभीरता से ध्यान दे रही है। भारतीय नौसेना के लिए भी एक डेक-आधारित यूसीएवी संस्करण को शामिल करने की संभावना है। 2024-2025 के बीच इसका पूर्ण विकसित स्वरूप सामने आ सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि भारत देश में ही विकसित यूसीएवी के संदर्भ में थोड़ा पीछे रह गया है। पाकिस्तान ने 2015 में अपने बुर्राक लड़ाकू ड्रोन को चालू कर दिया था और इसका युद्ध-परीक्षण किया था, जबकि भारत 2025 में पहली स्वदेशी ड्रोन युद्ध प्रणाली शुरू करेगा। भविष्य का युद्ध, चाहे वह विशाल महासागरों या अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हो, स्पष्ट रूप से मानव रहित दिखता है। भारत को इस चुनौती को स्वीकार करते हुए ऐसे ड्रोन सिस्टम के अनुसंधान एवं विकास में तेजी लानी होगी, जो बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के लिए तैनात किया जा सके।

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