कोई पैसे वाला यह सोचे कि यह धुआं मेरा क्या बिगाड़ेगा ? मैं तो एसी कार में बैठा रहता हूं। सारे काम कार में तो नहीं हो सकते
आदर्श के बोरे में घुस कर हम भी गाल बजा-बजा कर कह सकते हैं कि सारी धरती मेरा घर है। विश्व के समस्त नागरिक, अपनी घरवाली को छोड़कर, मेरे भाई-बहन हैंं लेकिन हाथ उठाकर नारे लगाना एक बात है और इन बातों को करके दिखाना दूसरी बात। अजी पड़ोसियों की तो छोडि़ए एक घर में, एक छत के नीचे रहने वाले दो भाई ही आपस में कुत्ते-बिल्लियों की तरह लड़ते हैं। आज एक देश वाले दूसरे देश से कैसे लड़ रहे हैं।
अगर ऐसे देशों की सूची गिनवाने लगे तो हाथ-पैर की अंगुलियां भी कम पड़ जाएंगी। इस लड़ाई-झगड़े के बीच इस धरती का जो बेड़ा गर्क हम किए जा रहे हैं उसका तो कहना ही क्या। ऐसा नहीं कि इस धरती पर हम लोगों ने अभी अभी रहना शुरू किया है। हमारे पूर्वज लाखों साल पहले यहां बस गए थे। इस दौरान कई संस्कृतियों ने विकास किया।
जल और जंगलात का प्रयोग भी हमारे बाप-दादा करते आए हैं। लेकिन इस धरती की जैसी ऐसी-तैसी पिछले सौ साल में हुई है उतनी कभी नहीं हुई। क्या इससे पहले धरती पर लोग नहीं रहते थे? क्या उनके पास घर नहीं थे? क्या वे भूखों मरते थे? क्या वे बीमारियों का इलाज नहीं करते थे?
क्या तब पैदावार नहीं होती थी? लेकिन पिछली एक शताब्दी से विकास के नाम पर गुड़गपाड़ा हुआ है वह किसी से छिपा नहीं है। जरा पुरानी किताबों को पढ़ो तो हमें ऐसे विकसित समाज के का पता चलता हैं जो आज से कहीं ज्यादा सभ्य और सुसंस्कृत था। वेलोग भी जल, जंगल और जमीन का उपयोग करते थे लेकिन आज जो विकास हो रहा है वह हाहाकारी है। इसी विकास के चलते बड़े- बड़े विकसित देश भी प्रकृति का कोपभाजन बन हाय तोबा करते नजर आ आएंगे। कभी सूखा, कभी सुनामी, कभी बर्फबारी, कभी ये तो कभी वो।
अब दूसरे देशों की क्या बात करें अपने देश की राजधानी में ही चले जाइए। दिल्ली में अस्सी लाख वाहन हैं। हरेक वाहन धुआं उगलता है। जो वहां के बाशिन्दों के इर्द-गिर्द मंडराता है। हो सकता है कोई पैसे वाला यह सोचे कि यह धुआं मेरा क्या बिगाड़ेगा। मैं तो एसी कार में खिड़कियां बंद कर बैठा रहता हूं। लेकिन सारे काम कार में ही सम्पन्न नहीं हो सकते।
कभी तो आदमी खुले में आता ही है। तब? एक जमाने में आदमी प्रकोपों से बचने के लिए धरती के पास जाता था। आज उसके सामने पृथ्वी बचाने का संकट आन खड़ा हुआ है। पृथ्वी को तपने से बचाने के लिए आदमी फा-फा करता फिर रहा है। बडेरे कहा करते थे- छोरा! कुल्हाड़ी से कपड़ा धोयगो तो नंगो ही रहणो पड़ैगो। कहीं ऐसा न हो कि यह कथित विकास हमारे ‘राम नाम सत्त’ का कारण बन जाए।
राही