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कोरोना संकट के बीच आर्थिक मंदी की आहट

Published: Apr 09, 2020 06:06:54 pm

Submitted by:

Prashant Jha

कोविड-19 संकट भी 2008 की आर्थिक मंदी की ही तरह वैश्वीकरण के नकारात्मक असर का ही एक और उदाहरण है। इससे देश के स्वास्थ्य तंत्र की खामियां और खूबियां उजागर होंगी। साथ ही यह समय डिजिटल जगत के लिए भी परीक्षा की घड़ी है, कि वह कितना सक्षम है।
 
 

कोरोना संकट के बीच आर्थिक मंदी की आहट

कोरोना संकट के बीच आर्थिक मंदी की आहट

सुखद चतुर्वेदी/अरुषि चतुर्वेदी

कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के साथ ही आर्थिक संकट की आहट भी अब विश्व भर में सुनाई देने लगी है। अर्थशास्त्रियों को 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी याद आ गई है, क्योंकि बारह साल बाद बाजार में एक बार फिर उसी तरह के संकेत दिखाई दे रहे हैं। हालांकि दोनों ही बार की परिस्थितियां बिल्कुल अलग है। वर्ष 2008 का आर्थिक संकट अमरीका में रियल एस्टेट और बैंकिंग क्षेत्र को पंगु बनाने के बाद विश्व भर में पसरा था तो इस बार 2020 में चीन में उपजे स्वास्थ्य संकट ने दुनिया भर में कोरोना वायरस संक्रमण तो फैलाया ही, साथ ही विश्व को आर्थिक अंधकार की ओर धकेल दिया। कोरोना संकट शुरू होते ही विश्व भर के स्टाॅक मार्केट में भारी गिरावट देखी गई। कोरोना संकट से निपटने के लिए कई देशों ने लाॅक डाउन की घोषणा कर दी, जिसका असर आर्थिक मंदी के रूप में सामने आने लगा है, जैसी मंदी वर्ष 2008-09 में देखी गई थी। इस वैश्विक वित्तीय संकट के बाद विश्व एक बार फिर आर्थिक महासंकट के दौर से गुजर रहा है, जो कोरोना वायरस कोविद-19 के रूप में सामने आया है,जिसे अब आधिकारिक तौर पर महामारी घोषित कर दिया गया है।

एक नजर दोनों स्थितियों के आर्थिक संकट की समानता पर

-शुरुआत स्थानीय,स्वरूप वैश्विक

वैश्विक वित्तीय संकट 2008 और कोरोना जनित आर्थिक संकट के बीच पहली समानता यह है कि दोनों की शुरुआत दुनिया के किसी एक कोने में स्थानीय स्तर पर हुई और स्थानीय जनता इसकी चपेट में सबसे पहले आई। 2008 की आर्थिक मंदी अमरीका में आवासन उद्योग के ठप हो जाने के चलते कुछ अमरीकी बैंकों और बाजार के डूबने से शुरू हुई तो 2020 का कोरोना संकट चीन के वुहान प्रांत से शुरू हुआ, जिसके बाद वहां लाॅकडाउन लागू करना पड़ा और स्थानीय अर्थव्यवस्था और बाजार बुरी तरह प्रभावित हुए। 2008 की आर्थिक मंदी अमरीका से आगे बढ़ कर दुनिया के अन्य देशों तक फैल गई, जिससे दुनिया भर के स्टाॅक मार्केट बुरी तरह प्रभावित हुए और उसकी परिणति बैंकों के बंद होने, रियल एस्टेट मार्केट में मंदी और ब्याज दरों में विश्व स्तरीय गिरावट के रूप में सामने आई। यही स्थिति कोरोना संकट के वक्त भी सामने आ रही है। चूंकि चीन से दुनिया के एक बड़े हिस्से में सामान की आपूर्ति होती है, यह निर्माण क्षेत्र में विश्व का अग्रणी देश है और वैश्विक जीडीपी के एक तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व भी करता है। यही वजह रही कि चीन पर पड़ा आर्थिक दुष्प्रभाव जल्द ही विश्व के अन्य देशों तक पहुंचने लगा। बहुत से देशों में लाॅकडाउन लागू करने से बाजार में गिरावट आने लगी। अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी और सब कुछ ठहर सा गया।

तैयारी की कमी और संकट की गंभीरता आंकलन में चूक

दोनों ही स्थितियों में एक और समानता यह है कि दोनों ही बार संकट की गंभीरता को कमतर आंका गया। वर्ष 2007 में और 2008 की शुरूआत में रेटिंग एजेंसियां समानांतर ऋण आपत्तियों (सीडीओ) और समानांतर गिरवी आपत्तियों को निरंतर कम जोखिम पूर्ण बताती रहीं। विश्लेषकों ने भी अर्थव्यवस्था चरमराने की सारी संभावनाओं को सिरे से नकार दिया था। इस बार चीन सरकार ने जानबूझ कर संक्रमण फैलने की भयावहता को छिपाया। नतीजा यह हुआ कि खतरे की गंभीरता को लेकर दुनिया एक प्रकार से भ्रम में रही। आर्थिक महाशक्ति अमरीका तक कोरोना के असल खतरे से अनभिज्ञ रहा और उसे लगा कि वह स्वास्थ्य और आर्थिक दोनों मोर्चों पर कोरोना से निपट लेगा। परन्तु हुआ ठीक विपरीत, दोनों ही आर्थिक संकट के दौरान संस्थानिक और नियामक इकाइयां एवं निवेशक समुदाय संकट से उपजे हालात का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हो पाए और अंततः संकट के कुचक्र में फंस गए।

समस्या का अनियंत्रित फैलाव और पहचान मुश्किल

दोनों ही मामलों में समस्या की पहचान कर पाना वास्तव में मुश्किल रहा। जहां तक कोरोना का सवाल है, स्वस्थ लोगों के बीच सामान्य रूप से रह रहे कोरोना संक्रमितों की पहचान मुश्किल है,क्योंकि इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति में रोग के लक्षण काफी देर से प्रकट होते हैं। इसकी तुलना 2008 के वित्तीय संकट के दौरान प्रारंभिक गिरवी संपत्तियों से की जा सकती है,जो प्रतिभूतिकृत गिरवी संपत्तियों के माध्यम से उच्च स्तरीय गिरवी संपत्तियों के रूप में प्रकट हुई। उस वक्त प्रारंभिक गिरवी अस्तियां कुल समस्याग्रस्त गिरवी अस्तियों का अंश मात्र थी केवल 10-12 प्रतिशत। इनकी पहचान उस समय नहीं की जा सकी जब असल में इनके कारण आर्थिक मंदी जैसी विकराल समस्या की शुरूआत हो चुकी थी।

-क्रेडिट जोखिम
निवेश स्तरीय काॅर्पोरेट क्रेडिट के कथित जोखिमों को मापने वाला क्रेडिट कारक सूचकांक ज्यादातर सोमवार के दिन काफी उतार-चढ़ाव दर्शाता है, और ऐसा तब से हो रहा है जब 2008 की मंदी में अमरीका में चैथे नम्बर पर माना जाने वाला लेहमैन नामक निवेश बैंक डूब गया। यह अर्थ जगत के इतिहास का वह काला दिन साबित हुआ जब कुल अमरीकी आर्थिक निर्गम का ग्राफ पहली बार 1 प्रतिशत से नीचे गिर गया। जर्मनी का पांच साल का सरकारी कर्ज घट गया और अब यह 1 प्रतिशत के करीब है। ऐसा उस दिन हुआ जब अमरीकी स्टाॅक मार्केट में करीब 8 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। 2008 के बाद से यह एक दिन में हुई सबसे बड़ी गिरावट थी।

बाहरी प्रेरकों और मध्यस्थता की जरूरत

2008 की आर्थिक मंदी हो या कोरोना जनित संभावित आर्थिक संकट दोनों ही स्थितियां ऐसी हैं कि नुकसान की भरपाई स्वतः हो जाना संभव नहीं। मौजूदा हालात से जाहिर है कि इस संकट से निजात पाने के लिए स्वीकार्य नीतिगत हस्तक्षेप और वैश्विक समन्वय से उठाया गया राष्ट्रीय कदम ही इस महामारी के संक्रमण को धीरे-धीरे कम करने और इसके फैलने पर पूरी तरह नियंत्रण करने के लिए जरूरी है ताकि इससे होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सके और ऐसे उपाय किए जा सकें जिससे यह नुकसान अधिक लंबी अवधि तक प्रभावी न रहे। ऐसा भी किया जा सकता है, जैसा 2008-09 में फैडरल रिजर्व, बैंको और सरकारों ने बेल आउट पैकेज और वित्तीय उत्प्रेरकों के जरिये किया। भारत सरकार द्वारा 1.7 लाख करोड़ रूपए का आर्थिक पैकेज सही दिशा में उठाया गया कदम है। विश्व भर की अर्थव्यवस्थाएं बेल आउट पैकेज और केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में कटौती जैसे उपाय अपना रही हैं। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और बाजार को स्थिर करने के लिए यह आवश्यक है।
ऐसा नहीं है कि बारह साल के अंतराल पर जो आर्थिक संकट का खतरा महसूस किया जा रहा है, वह पूरी तरह वैसा ही हो जैसा 2008 में दुनिया ने झेला। दोनों में कुछ असमानताएं भी हैं, जैसेः

-कारण और समय
आर्थिक महामंदी 2008-आवासन बाजार में आए जबर्दस्त विकट हालात से आर्थिक पतन शुरू हुआ। बैंक एवं अन्य ऋणदाताओं ने ऐसी संपत्तियों को गिरवी रखने की मंजूरी दे दी, जिसमें बहुत से खरीददार शामिल थे जो योग्यता के मापदंडों पर खरे नहीं उतरते थे। इससे घरों की कीमतों में आसमान छूती बेतहाशा वृद्धि देखी गई। बैंकों ने ऋण के लिए गिरवी रखी अस्तियों को प्रतिभूतियों में तब्दील कर उन्हें अन्य वित्तीय संस्थाओं को बेच दिया। जब वहां घरों की कीमतें कम होने लगी तो लाखों अमरीकियों ने ऋण का पुनर्भुगतान करना रोक दिया और नतीजतन ऋण के लिए गिरवी रखे उनके घरों से भी उन्हें हाथ धोना पड़ा। जिन बैंकों के पास प्रतिभूतियां थीं वे दिवालियापन की कगार पर पहुंच गए। तब से लेकर आज तक आवासन बाजार में नित नई समस्याएं सामने आती रहती हैं। यह गहन आर्थिक संकट करीब डेढ़ वर्ष तक चला।

मौजूदा संकट
पांच माह पूर्व चीन में फैला कोरोना वायरस संक्रमण मौजूदा आर्थिक संकट का कारण है। इस समय विश्व भर में कोरोना संक्रमण के 6 लाख पुष्ट मामले सामने आए हैं और तीस हजार लोगों की मृत्यु हो चुकी है। यह वायरस जंगल की आग तरह दुनिया भर में फैल गया। राहत की बात है कि यह संकट 2008 की मंदी जितना लंबा नहीं चलेगा। कोरोना वायरस काले हंस की भांति है, जिसका उदय कहीं से भी हुआ हो लेकिन उसका अंत निश्चित है,क्योंकि इसका संक्रमण उच्च स्तर पर पहुंचने के साथ ही देश-विदेश में लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी, साथ ही इसके खिलाफ टीका भी विकसित हो जाएगा।

प्रभावित क्षेत्र

वैश्विक आर्थिक मंदी से तीन क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए-मकान, आधारभूत ढांचा और बैंकिंग। परन्तु कोविद-19 से उपजा आर्थिक संकट अधिक विश्वव्यापी है। इस संकट से जो तीन क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, वे हैं-दूरसंचार, स्वास्थ्य और बीमा सेवाएं। इस बार का प्रभाव अधिक गंभीर है, जो मुख्य रूप से शारीरिक है वित्तीय नहीं। आर्थिक मंदी के दौर में लोगों को संकट से पहले ही उत्पादन और सामान खरीदने से वंचित रहने जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा था। इस बार मामला कुछ ज्यादा गंभीर है क्योंकि वित्तीय संकट तो बाद की बात है, फिलहाल लोगों की आम गतिविधियों पर रोक सी लग गई है। कोविद-19 संकट के दौरान जेब में पैसे हों तो भी हम रेस्टोरेंट में बैठ कर एक साथ खाना तक नहीं खा सकते।

नौकरियां घटीं

विश्व में तकनीकी तरक्की के साथ ही घर से काम करने का बढ़ता चलन निश्चित रूप से कम्पनियों के लिए सहायक सिद्ध हुआ है जो अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालना नहीं चाहतीं। फिर भी कोरोना आपदा के चलते हजारों लोगों का रोजगार छिन चुका है। इसके विपरीत 2008 की मंदी की बात की जाए तो कम्पनियों के पास कर्मचारियों की छंटनी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया था। इसका असर विश्व व्यापी आर्थिक तनाव के रूप में सामने आया। करीब 90 लाख अमरीकियों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। इससे बेरोजगारी की दर दोगुनी हो गई।

स्टाॅक मार्केट पर प्रभाव

वर्ष 2008 स्टाॅक मार्केट के लिए सबसे बुरा दौर साबित हुआ। मौजूदा संकट मेें स्टाॅक मार्केट में उतनी गिरावट नहीं देखी गई कि वित्तीय संकट का सारा बोझ बाजार पर ही पड़ गया हो। स्टैंडर्ड एंड पुअर की रेटिंग 500 में फरवरी माह से ही 15 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। हमें यह समझना होगा कि मौजूदा संकट वर्ष 2008 के संकट से कहीं अधिक गहरा है।

वैश्वीकरण की मार

साफ तौर पर देखा जा सकता है कि कोविद-19 संकट भी 2008 की आर्थिक मंदी की ही तरह वैश्वीकरण के नकारात्मक असर का ही एक और उदाहरण है। इससे देश के स्वास्थ्य तंत्र की खामियां और खूबियां उजागर होंगी। साथ ही यह समय डिजिटल जगत के लिए भी परीक्षा की घड़ी है, कि वह कितना सक्षम है क्योंकि अभी कुछ समय के लिए ही सही, बहुत से लोग घर से आॅफिस का काम करने को मजबूर हैं। बड़ा सवाल यह है कि इस भयावह संकट की इंसान को क्या कीमत चुकानी होगी, मानवता और आर्थिक मोर्चे दोनों पर। चीन ने संक्रमण की दर को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया लेकिन इसकी कीमत उसे आर्थिक मंदी के रूप में चुकानी पड़ी। देखना यह है कि क्या तमाम प्रतिबंध हटा लेने के बाद यह महामारी दोबारा सिर उठाएगी?

कुल मिलाकर फिलहाल यही कामना की जा सकती है कि कोविड-19 संकट वर्ष 2008 के संकट जितना लंबा न खिंचे। इस आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस आपदा से वैश्विक स्वरूप थोड़ा बहुत ही सही पर बिगड़ेगा जरूर। एक तथ्य और सामने आया है कि जैविक जोखिम के प्रति अतिसंवेदनशीलता का भाव देखा गया, जिसकी उम्मीद नहीं थी और लोग इतने जागरूक हैं कि वे मानते हैं भविष्य में भी ऐसे ही किसी वायरस से फिर सामना हो सकता है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन भी विश्व में अनजाने खतरों को आमंत्रण दे रहा है। यह संकट कितने दिन और चलेगा यह तो चिकित्सा विज्ञान पर निर्भर है लेकिन लोगों की समझदारी, जानकारी, बचाव के आवश्यक उपाय, प्रतिबंध की नीतियों का अनुसरण और संसाधनों का आवश्यकता अनुरूप प्रबंधन भी संकट की इस घड़ी में निर्णायक साबित होगा। दुनिया इस समय एक अलग प्रकार के युद्ध से जूझ रही है। फिलहाल एक ही बात की आवश्यकता है कि लोग अपनी सरकारों पर विश्वास बनाए रखें।

सुखद चतुर्वेदी आयकर उपायुक्त हैं जो दिल्ली में कार्यरत हैं, जबकि अरुषि चतुर्वेदी दुनिया की प्रमुख वित्तीय संस्था जेपी मॉर्गन से सम्बद्ध रहीं हैं।

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