scriptजरूरत किसे किंतु कौन हो रहा पोषित | editorial article rp 4 april 2017 | Patrika News
ओपिनियन

जरूरत किसे किंतु कौन हो रहा पोषित

गरीबी के कारण बच्चों में पौष्टिकता की कमी से वे अपने आयु से ठिगने या दुबले-पतले रह जाते हैं। ऐसे बच्चे जवान होकर पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते।

Apr 04, 2017 / 03:58 pm

देश में खानपान को लेकर वास्तविक समस्या आदतों की नहीं बल्कि गरीबी और क्रय क्षमता की है। इसके चलते लोग पौष्टिकता के लिए जरूरी खाद्य पदार्थ खरीद ही नहीं पाते। लोगों में पौष्टिक आहार की कमी हो जाती है। 
गरीबी के कारण बच्चों में पौष्टिकता की कमी से वे अपने आयु से ठिगने या दुबले-पतले रह जाते हैं। ऐसे बच्चे जवान होकर पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते। इन तथ्यों के मद्देनजर देश में सरकार का यह स्वाभाविक ही लक्ष्य होता है कि लोगों के खानपान में पौष्टिकता हो और किसी भी प्रकार की कमी दूर करने की कोशिश हो। लेकिन इस स्थिति में निजी क्षेत्र की बड़ी विशेषतौर पर विदेशी कंपनियां भी लाभ कमाने में लग जाती हैं। 
ऐसा ही एक उदाहरण अमरीका की एक संस्था ‘ग्लोबल एलाइंस फॉर इम्प्रूव्ड न्यूट्रिशियन’ (गेन) का है। यह संस्था कहने को तो दुनिया भर में भोजन में विटामिनों, खनिजों एवं अन्य आवश्यक तत्वों की भरपाई करने के लिए खाद्य पदार्थों में इनके मिश्रण की बात करती है। लेकिन, ऐसा लगता है कि उसके इन कार्यों में कहीं न कहीं बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों को आगे बढ़ाने की मंशा शामिल है। 
‘बिल मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ यानी बीएमजीएफ , डीएसएम, बीएएसएफ, यूएसऐड आदि संस्थाएं और कंपनियां और कई विदेशी सरकारें ‘गेन’ के इस काम में सहयोग कर रही हैं। यही नहीं कई विदेशी सरकारों, एजेंसियों और कंपनियों ने कई मुखौटे भी बनाए हुए हैं, जिनकी आड़ में इन कामों को अंजाम दिया जा रहा है। ‘वल्र्ड फूड प्रोग्राम’, ‘फ्रीडम फ्रॉम हंगर’ समेत कई ऐसी संस्थाएं हैं, जिनको ये विदेशी ताकतें धन उपलब्ध कराती हैं। 
नजदीक से देखने पर पता चलता है कि ये सभी संस्थाएं और कंपनियां इस काम से लाभान्वित होने वाली हैं। अभी तक अपना लॉबिंग द्वारा ये संस्थाएं अफ्रीका में अपने मंसूबों को अंजाम देने में काफी हद तक सफल हो गई हैं। हाल ही में ‘फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ (एफएसएसएआई) द्वारा प्रयास किया जा रहा है कि रिफाइंड खाद्य तेलों में विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ को अनिवार्य रूप से डाला जाए। 
तर्क यह दिया जा रहा है कि खाद्य तेलों को रिफाइंन (परिष्कृत) करने से उनमें विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ तत्व नष्ट हो जाते हैं, जो पौष्टिक भोजन के लिए नितांत जरूरी हैं। इस कार्य के लिए ‘आईसीएमआरÓ जैसे देश के शोध संस्थानों और संगठनों से कोई राय नहीं ली गई। 
यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी यह माना है कि विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ के मिश्रण (फोर्टिफिकेशन) के मानक लागू करवाना संभव नहीं है इसलिए भारत जैसे देश में इसे लागू करना सही नहीं होगा। वास्तविकता यह है कि विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ दुनिया में कुछ कंपनियां ही बनाती हैं, जिन्होंने कार्टेल बना रखा है। 
इस संबध में कार्टेल बनाकर ज्यादा कीमत वसूलने के खिलाफ यूरोपीय संघ ने इन पर जुर्माना भी लगाया था। हमें समझना होगा कि इन विटामिनों की जरूरत के आकलन के बिना कहीं हम इन कंपनियों के जाल में तो नहीं फंस रहे। खास तौर पर तब, जबकि ‘गेन’ और ‘बीएमजीएफ’ नाम की संस्थाएं जो इसके लिए लॉबिंग कर रही है, संचालकों के व्यवसायिक हित इन कंपनियों के साथ जुड़े हों। 
दूसरे, खाद्य पदार्थों में विदेशी कंपनियों की लाबिंग और षड्यंत्रों के बारे में हमें सजग रहने की जरूरत है। लगभग दो दशक पहले सरसों के तेल को इन कंपनियों के दबाव में मनुष्यों के खाने के लिए अनुपयुक्त घोषित कर दिया गया था कि इसमें ‘ड्रॉप्सी’ नामक जहर मिला हुआ है, जिसे बाद में आज के आधुनिक विज्ञान ने असत्य सिद्ध कर दिया है। 
आज भी विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ को तेलों में मिश्रण की अनिवार्यता से आयातित तेलों पर निर्भरता और देश में उत्पादन होने वाले खाद्य तेलों से विमुखता बढ़ेगी। आज देश लगभग 70 हजार करोड़ रुपए के खाद्य तेलों का आयात कर रहा है, जिसमें भारी मात्रा में घटिया आयातित डियोड्राइड सोया, कनोला भी हमारे खाद्य तेलों में मिलाया जा रहा है। 
इस प्रकार की मिलावट पर तो एफएसएसएआई ने कोई कदम नहीं उठाया। लेकिन, खाद्य तेलों में विटामिनों के मिश्रण पर वे तेजी से आगे बढऩे की कोशिश कर रहे हैं। इस विषय में छोटे तेल उत्पादकों के हितों को दरकिनार करते हुए, बड़ी कंपनियों के हित साधने का काम करने में एफएसएसएआई द्वारा दिखाई जाने वाली जल्दबाजी संदेह उत्पन्न करती है। 
हमें ध्यान रखना होगा कि इस बात को सुनिश्चित करने का कोई तरीका नहीं है कि विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ की खाद्य तेलों में अधिकता को कैसे रोका जाए? यह सिद्ध हो चुका है कि इनकी अधिकता से भारी नुकसान हो सकते है। 
हमें याद रखना होगा कि नमक में आयोडीन (वास्तव में आयोडेट) का जरूरत से ज्यादा मिश्रण होने से लोगों की सेहत पर भारी विपरीत असर पड़ा है। भारत में खाना बनाने की विधि में तेज आंच पर तेलों को पकाया जाता है, ऐसे में विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ की आपसी ‘प्रतिक्रिया’ क्या होगी, इसके बारे में सुनिश्चित करना अभी बाकी है।
(अर्थशास्त्री, दिल्ली विश्वविद्यालय में दो दशक से अधिक अध्यापन, स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक)

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