चुनावी बॉन्ड योजना के बावजूद राजनीतिक चंदे के मामले में पूर्ण पारदर्शिता का लक्ष्य फिलहाल दूर है। कुछ प्रावधानों को लेकर इस योजना पर सवाल उठते रहे हैं। चुनावी बॉन्ड एक हजार, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किए जाते हैं। किसी गुणक की अधिकतम सीमा तय नहीं है। एक नियम यह है कि 20 हजार रुपए से कम राशि वाले दाता की पहचान उजागर नहीं की जाएगी। जब बात पारदर्शिता की हो, वहां दाताओं की पहचान छिपाने को लेकर सवाल उठना लाजिमी है। दो गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) तथा कॉमन कॉज ने ऐसे ही कुछ और सवालों को लेकर चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिए थे कि वे बॉन्ड के जरिए मिले चंदे का ब्योरा चुनाव आयोग को दें। बॉन्ड पर तो नहीं, पर चंदा देने वालों के नामों में गोपनीयता बरतने पर चुनाव आयोग को भी आपत्ति है। अपना पक्ष वह सुप्रीम कोर्ट में रख चुका है।
चुनावी बॉन्ड योजना का एक मकसद चुनावों में काले धन के प्रवाह को रोकना भी था। यह भी पूरा नहीं हो सका है। पिछले महीने आयकर विभाग ने कई राज्यों में छापेमारी कर ऐसे छोटे राजनीतिक दलों का पर्दाफाश किया था, जो समूहों से चंदा लेकर बदले में उन्हें नकदी दे रहे थे। इनमें से कई दलों पर चुनाव आयोग रोक लगा चुका है। यह बात छिपी हुई नहीं है कि कई लोग काले धन को सफेद करने के लिए राजनीतिक दलों को चंदा देते हैं। ऐसे में चुनावी बॉन्ड योजना के प्रावधानों को और सख्त बनाने की जरूरत है, ताकि चंदे का सारा हिसाब-किताब साफ-साफ नजर आए।