'हग्गी वुगी' ही नहीं, ऐसे ढेरों ऑनलाइन कंटेंट, मनोरंजक सीरीज और प्लेटफॉर्म रोज सामने आ रहे हैं, जिनका फायदा कम और नुकसान ज्यादा है। लेकिन, यह उन्हें चलाने या बनाने वालों के लिए आय का जरिया होते हैं और उनकी कमाई का एक हिस्सा सरकारों को भी टैक्स के रूप में जाता है। यह रोजगार के मौके प्रदान कर रहा है, जिसे उपलब्ध कराना किसी भी सरकार के लिए चुनौती होती है। ऐसे में इसके नकारात्मक पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है। ज्यादा हुआ तो अलर्ट कर दिया गया। जैसे चोर को चोरी के काम में लगा दिया हो और पहरेदार को अलर्ट करते रहने की ड्यूटी पर। जब तक पानी सिर से ऊपर नहीं चला जाए सरकारें आंख मूंदे रहती हैं। उसके बाद भी संबंधित प्लेटफॉर्म को तो प्रतिबंधित कर दिया जाता है, पर उसके पीछे जो लोग होते हैं, उनके कर्म को अपराध की श्रेणी में नहीं लाया जाता। नतीजा यह होता है कि नाम बदलकर वे फिर उसी धंधे में लग जाते हैं।
आर्थिक जरूरतें हमेशा से 'अपराध' की परिभाषा तय करती रही हैं। कभी धन चुराना या छीनना भी अपराध नहीं माना जाता था। आज भी कई देशों में जुआ या सट्टा अपराध नहीं है। लॉटरी को तो अब भी ज्यादातर स्थानों पर अपराध नहीं माना जाता। ये सब ऐसे काम हैं जो दूसरों को नुकसान पहुंचाने के आधार पर ही किए जाते हैं। कानून की किताब में 'अपराध' का निर्धारण बाद में होता है, पहले समाज उसे नैतिकता के तराजू पर 'अपराध' मानता है। जरूरी है कि तकनीकी प्रगति के दौर में सामने आ रहे रोजगार के नए-नए मौकों को अपनाने से पहले उसे नैतिकता के तराजू पर तौला जाए।