मार्बल की माइंस के गहरे गड्ढों ने यहां की धरती और लोगों को गहरे जख्म दे दिए। अतिक्रमणकारियों ने यहां की धरती को उजाडऩे में कोई कमी नहीं रखी। गांव का जलस्तर चार सौ फीट के नीचे चला गया। पुरुष-स्त्री लैंगिक अनुपात बिगड़ गया, पलायन शुरू हो गया, चारागाह खत्म हो गया। तीन-चार दशक में कमजोर होते पहाड़ों ने गांव को कमजोर कर दिया। इस बीच 57 वर्षीय श्याम सुंदर पालीवाल शुरुआती दौर में पीपलांत्री की धरती पर हो रहे अतिक्रमणकारियों और अवैध खनन के खिलाफ अकेले ही डटे रहे। वर्ष 2005 में गांव का सरपंच बनने के बाद पालीवाल की राह आसान हो गई।
ग्राम पंचायत ने जहां गांवों की महिलाओं एवं युवाओं की सहभागिता को बढ़ाया है, वहीं माइंस के ठेकेदारों को इस तरह से तैयार किया है कि माइंस के कारण बर्बाद हो रहे पर्यावरण को उपचारित करने के लिए अब वे आगे आ रहे हैं। स्लरी के खड़े पहाड़ों को हरा-भरा करने के लिए उस पर मिट्टी बिछा कर पौधरोपण का जतन शुरू कर दिया गया है। ग्रामीण समुदाय ने अपने पहाड़ों को इतना हरा-भरा कर दिया है कि अतिक्रमणकारियों के हौसले अब पस्त हो गए हैं। बेटी, पानी, पेड़ों को आधार बनाकर किए गए कार्य दूसरों के लिए प्रेरणा का रास्ता बन रहे हैं। गांव को पानी और रोजगार के मामले में आत्मनिर्भर बनाना, बेटियों की सुरक्षा और उनको पढ़ाना, मवेशियों एवं वन्य जीव-जंतुओं का ध्यान रखना हर पंचायत का धर्म है। पंचायत ने अपना धर्म बखूबी निभाया है। अब अन्य पंचायतों के लिए पीपलांत्री मिसाल बन गया है। दक्षिणी राजस्थान में इसकी आहट सुनी जा सकती है। पीपलांत्री के पथ को अपनाकर दूसरे गांव भी खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं। पीपलांत्री देश की ग्राम सभाओं में चर्चा का विषय बने, ताकि पंचायतें अपनी भूमिका को ज्यादा प्रभावी बना सकें।
(लेखक नेहरू युवा केन्द्र संगठन राजस्थान के राज्य निदेशक हैं)