भारत जैसे देशों में उपभोक्तावाद व्यापक गरीबी के बीच लग्जरी वस्तुओं की होड़ को बढ़ाता है। चूंकि इन वस्तुओं का उपार्जन प्रतिष्ठा का आधार है, अत: इन्हें पाने की लालसा ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है।
-अशोक ,जोधपुर
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उपभोक्तावादी संस्कृति से हमारे दैनिक जीवन में सुख और शांति का लोप हो रहा है। तृष्णा बढ़ती ही जा रही हैै। दिखावे के लिए जरूरत से ज्यादा उन वस्तुओं का उपभोग कर रहे हैं, जो पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा हैं। पर्यावरण के असंतुलन से पृथ्वी का तारतम्य पूरी तरह से बिगड़ गया है। अब हमें सावधान हो जाना चाहिए। उपभोक्तावादी संस्कृति को त्याग कर पर्यावरण को सुरक्षित और संरक्षित कैसे रखा जाए, इस पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
-मनीष कुमार सिन्हा, रायपुर, छत्तीसगढ़
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उपभोक्तावादी संस्कृति ने आज पर्यावरण संतुलन बिगाड़ दिया है। इससे ओजोन परत का क्षरण हो रहा है, जिससे पृथ्वी का अस्तित्व ही संकट में आ गया है।
-होमलाल साहू, खाती
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पर्यावरण संकट
सिंगल यूज प्लास्टिक से जहां जमीन और पानी प्रदूषित हो रहे हैं। डीजल-पेट्रोल के बेतहाशा उपभोग और एसी,फ्रिज से निकली सीएफसी से वायु प्रदूषण के कारण पर्यावरण प्रदूषण का संकट निरन्तर बढ़ रहा है।
-महेंद्र किरार पटवारी, गुना, मप्र
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वर्तमान समय में व्यक्ति ज्यादा ही उपभोगवादी हो गया है। उसके उपभोगों का सीधा संबंध पर्यावरण से है। उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण हो रहे पर्यावरणीय विनाश का सामना करना पड़ रहा है। समय रहते लोगों को जागरूक करने और उपभोग के इस विनाशकारी प्रभाव को समझाने की जरूरत है।
-उल्फत खान, अलवर
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उपभोक्तावाद और विकास के नाम पर पेड़ काटे जाते हैं। इंडस्ट्री खोली जाती हैं। विकास के साथ पर्यावरण को संरक्षित और संतुलित करना भी जरूरी है।
-रजनी गंधा, रायपुर
…………… पेड़ों को बचाएं
बढ़ती उपभोक्तावादी प्रवृत्ति के चलते पेड़ काटे जा रहे हैं। इससे हमारे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंच रहा हैं। पेड़ों को बचाना जरूरी है।
-प्रियव्रत चारण, जोधपुर