जय जगत का सिद्धांत आचार्य विनोबा भावे ने प्रस्तुत किया था। इन सिद्धांतों को इक्कीसवीं शताब्दी के परिवेश से जोड़कर जय जगत चार मूल मुद्दों पर काम कर रहा है। ये हैं युद्ध और हिंसक मतभेदों को सुलझाना, सामाजिक बहिष्करण हटाना, गरीबी की समाप्ति और पर्यावरण आपदा को रोकना। जय जगत ने 2 अक्टूबर 2019 को एक अपूर्व चुनौती को स्वीकार किया। एक साल की पदयात्रा करने के लिए 12 देशों के 50 पदयात्री दिल्ली में साथ आए। यह यात्रा दिल्ली से स्विट्जरलैंड (जेनेवा) के लिए थी, जो करीब 11,000 किलोमीटर की दूरी है। जय जगत की यात्रा भारत में 2,100 किलोमीटर पूरी कर सेवाग्राम पहुंची, जहां सुब्बाराव ने शांति पथ पर चलने और अहिंसा के मूल्यों को लेकर युवा नेतृत्व बनाने के रास्ते को दर्शाया।
जय जगत यात्रा आर्मीनिया देश में चल रही थी, तब कोविड महामारी ने धावा बोल दिया। हर देश ने अपनी सीमाएं बंद करना शुरू कर दी। इस आपात परिस्थिति को देखते हुए दुखी मन से हम भारत वापस लौट आए, लेकिन आंदोलन को आगे ले जाने का प्रण लेकर हमने यहां भी काम शुरू कर दिया। 2020 में 36 से ज्यादा देशों के साथियों को हमने ऑनलाइन चर्चाओं में जोड़ा। जय जगत ने भारत में लॉकडाउन से प्रभावित ग्रामीण साथियों को भोजन, दवाई और कपड़े इत्यादि पहुंचाए। साथ ही कोरोना के बारे जागृति फैलाने के लिए अभियान चलाए। जय जगत ने इस वर्ष अपे्रल- मई में महामारी के प्रकोप के बीच गांव-गांव जाकर दवाई, एम्बुलेंस, डॉक्टर, मास्क, ऑक्सीजन और वैक्सीन पहुंचाने का काम किया। विश्व भर में हमारे साथियों ने आर्थिक मदद भी की और अपनी तरफ से आंदोलन भी किए। फ्रांस में शरणार्थियों की मदद करने के लिए आंदोलन किया और मैक्सिको में आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ी। भारत में पर्यावरण और न्याय को लेकर 120 पदयात्राएं हुईं। 2 अक्टूबर से गांधीवादी आंदोलनकर्ता पुष्पनाथ क्रिश्नमुर्थी, मैं और धीरा चक्रवर्ती (कलाकार) ने लंदन से ग्लासगो पदयात्रा शुरू की। संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (कॉप 26) में पहुंचकर आम जनता का मुद्दा उठाया जाएगा।