फ्रंटियर और सस्टेनेबल सिटी जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत सहित विकासशील देशों के 53 शहर भी दुनिया में बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। दुनिया भर के वायु प्रदूषण में चीन सबसे आगे है और अकेले 27.2 प्रतिशत जहरीली हवाओं का उत्सर्जन करता है। दूसरे नंबर पर अमरीका है, जिसकी हिस्सेदारी 14.6 प्रतिशत है। जबकि भारत 6.8 प्रतिशत, रूस 4.7 प्रतिशत और जापान 3.3 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहे हैं। विकास के नाम पर लगातार हो रहे औद्योगिकीकरण के चलते वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। कोविड से हुए लॉकडाउन में वायु प्रदूषण का स्तर काफी हद तक कम हुआ था और उसका असर यह हुआ कि हमारे आसपास का वातावरण काफी साफ हुआ। दृश्यता तेजी के साथ बढ़ी। हवा में कार्बन के स्तर में सुधार आया। लेकिन लॉकडाउन खत्म होने के बाद हालात वापस वैसे ही हो गए हैं, जैसे पहले थे। यानी हमने इससे कोई सबक सीखने का प्रयास नहीं किया।
दूसरी तरफ सरकारों के स्तर पर भी पर्यावरण में सुधार के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं दिखे। विकास की अंधी दौड़ में सबसे ज्यादा नुकसान पर्यावरण को ही हुआ है। हमने यह मान लिया है कि विकास ही हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। लेकिन, पर्यावरण को ताक पर रख कर किसी भी तरह के विकास को इजाजत नहीं दी जा सकती है। इसके लिए दुनियाभर को एकजुट होकर अपनी भूमिका निभाने की जरूरत है।
यह वक्त संभलने का है। एक बार फिर सोचने का है कि आखिर हम कैसे जहरीली हवाओं पर लगाम लगाएं। देशों से ज्यादा नागरिकों को इसके लिए गंभीर होना होगा। पर्यावरण के प्रति सजगता दिखानी होगी और जंगलों की वैध और अवैध, दोनों ही कटाई पर निगाहें ही नहीं रखनी होंगी बल्कि उसे रोकना भी होगा। शहरों और गांवों में पर्यावरण सुधार के लिए पौधरोपण को भी प्राथमिकता के आधार पर अभियान बनाना होगा। इसमें लोगों की भागीदारी के साथ जरूरत को भी समझना होगा और जागरूकता लानी होगी, तभी हम पर्यावरण को बचा पाएंगे।