मुश्किल यह है कि सोशल मीडिया के जरिए अप्रमाणित उपचार, गुमराह करने वाली और डर बढ़ाने वाली सनसनीखेज खबरें भी फैलाई जाती हैं, जो बड़ी समस्या का कारण बन गई हैं। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र से जुड़े एक उच्चाधिकारी ने इस स्थिति को भ्रामक सूचनाओं की महामारी तक कहा है और इसे ‘इन्फोडेमिक’ नाम दिया है। उन्होंने इसका मुकाबला करने का आह्वान भी किया। असल में इन्फोडेमिक शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, इनफार्मेशन और पेंडेमिक। इसका मतलब है कई तरह की जानकारियों की बाढ़ आ जाना। इसलिए जरूरत सिर्फ कोविड-19 से लडऩे की ही नहीं, वरन भ्रामक और भयानक सूचना बमबारी से निपटने की भी है। इस बीच इंस्टाग्राम ने नई पहल करते हुए घोषणा की कि वह कोविड-19 से संबंधित वही पोस्ट देगा, जो स्वास्थ्य संगठनों द्वारा प्रकाशित है या जारी की गई है।
समाज मेें मास्क, दो गज दूर और सैनिटाइजेशन के प्रति जागरूकता इन्हीं सोशल मीडिया माध्यमों के अभियानों की वजह से आई है। सोशल मीडिया ने नकारात्मक भावुक प्रतिक्रियाओं को कम किया और कोविड प्रोटोकॉल के प्रति गंभीरता बढ़ाई। हर नागरिक का दायित्व है कि वह अपने सोशल मीडिया अकाउंट से अफवाहों या असत्यापित सूचनाओं को न फैलाएं। खबरनवीसों की भी यह जिम्मेदारी है कि वे भी प्रामाणिक खबरों को ही दें। निश्चित रूप से लोगों में जागरूकता पैदा करने, उन तक सही जानकारी, उपलब्ध करवाने, रोग के उपचार व रोकथाम के मानकों का तेजी से प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया की वजह से ही संभव हो पाया है, लेकिन भ्रामक सूचनाओं से नुकसान भी हुआ है। इसलिए सोशल मीडिया पर जिम्मेदारी से सूचनाओं को डालें। इसे ‘इन्फोडेमिक’ का जरिया न बनाएं।