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जेल जाने से बच गए एक नेता 

Published: Dec 09, 2015 10:30:00 pm

दयानिधि मारन 2004-07 तक दूरसंचार मंत्री रहे। मंत्री पद जाने के बाद 323 टेलीफोन लाइनें निजी इस्तेमाल के लिए लगवा लीं

Dayanidhi Maran

Dayanidhi Maran


एस. गुरूमूर्ति खोजी पत्रकार व कॉर्पोरेट सलाहकार

दयानिधि मारन 2004-07 तक दूरसंचार मंत्री रहे। मंत्री पद जाने के बाद 323 टेलीफोन लाइनें निजी इस्तेमाल के लिए लगवा लीं। उन्होंने चेन्नई टेलीफोंस के सीजीएम के नाम से गोपनीय नंबर लिए। नंबरों की पहचान गुप्त रखने की सुविधा हासिल की, जो कि केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व केंद्र सरकार स्तर पर मिलती है। पर राष्ट्रीय सुरक्षा को धता बताते हुए मारन और बीएसएनएल के अधिकारियों की मिलीभगत से यह सब हुआ। मारन को फंसने से बचाने के लिए बीएसएनएल के एजीएम ने कहा ‘300 लाइनों को दबा दो’ और वे दबा दी गईं। आखिर कैसे रची गई घोटाले की पूरी कहानी, इसी पर विशेष पड़ताल….


मीडिया रिपोट्र्स के अनुसार सीबीआई दयानिधि मारन से दूरसंचार घोटाले के बारे में कड़ाई से पूछताछ कर रही है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दयानिधि मारन ने अपने व्यक्तिगत कारण से सीबीआई को हिरासत में पूछताछ करने के बारे में मना कर दिया है। हिरासत में पूछताछ से बचने के लिए मारन ने जो दलील दी है, वह हैं :- एक, उन्होंने केवल एक लाइन का इस्तेमाल किया न तो 323 का और न ही 764 का। दूसरा, उनके पूर्ववर्ती अधिकारियों के पास भी समान सुविधाएं थीं और तीन सौ लाइनों का दावा झूठा है। तीसरा, सीबीआई सालों बाद जागी और हिरासत में पूछताछ संबंधी याचिका पर देरी कर दी; बदनीयति से कहा गया कारण है और चौथा, विभाग के कोष में सीबीआई के अनुसार, मात्र 1.78 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, मारन इसका भुगतान कर इसे ‘समायोजितÓ करने को राजी है। उक्त चारों दलीलें सफेद झूठ हैं।

बीएसएनएल के मुताबिक मारन झूठ बोल रहे हैं। अगर सीबीआई, कोर्ट के समक्ष केवल एक दस्तावेज, सिर्फ एक, ‘दिनांक 2007 के बीएसएनएल के नोट्सÓ पेश कर देती तो अब तक मारन सीबीआई हिरासत में होते। इस दस्तावेज के मूल में मारन का दो खास नम्बरों के प्रति विशेष लगाव जाहिर किया गया है, ये नम्बर हैं – 24371515 और 24371616 – मंत्री पद छिनने के बाद धोखाधड़ी की 323 लाइनों में से ये दो नम्बर मारन को विशेष रूप से प्रिय थे। मई 2007 में मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने इन दो नम्बरों का लगातार इस्तेमाल किया।

कैसे हुआ खुलासा
आइए देखते हैं, कैसे बीएसएनएल की फाइल ‘धोखाधड़ी की 300 लाइन’ का खुलासा करती है, स्वीकार करती है और बताती है कि इसे कैसे दबाया गया था। बीएसएनएल के नोट्स के अनुसार, 28 मई 2007 को तत्कालीन संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री (ए. राजा) के अतिरिक्त निजी सचिव का एक फैक्स मिला था, जिसमें कहा गया था कि पूर्व मंत्री मारन के लिए चालू उक्त दो नम्बर सांसद कोटे में परिवर्तित कर दिए जाएं। यह पत्र फाइल में दर्ज है। इसके अनुसार, जन शिकायत प्रकोष्ठ (पीजी सेल) के महाप्रबंधक (संचालन) ने इन दो नम्बरों को परिवर्तित करने के निर्देश दिए थे। परन्तु प्रकोष्ठ को पता चला कि ऐसे कोई नम्बर रिकॉर्ड में हैं ही नहीं! फाइल के मुताबिक इन नम्बरों के बारे में न तो पीजी सेल और न ही कम्प्यूटर सेल में कोई जानकारी उपलब्ध है।

गोपनीय 300 की तलाश
मारन के इन ‘खास नम्बरों’ का पता लगाने के लिए किसी ने अतिउत्साह में ‘माम्बलम ईडब्लूएसडी सेलÓ से सम्पर्क किया। ईडब्लूएसडी सेल से आशय है – इलेक्ट्रॉनिक वल्र्ड स्विच डिजिटल – यह इंटीग्रेटेड सर्विस डिजिटल नेटवर्क प्राइमरी रेट एक्सेस के अंतर्गत चालू टेलीफोन नम्बरों का विस्तृत विवरण देता है। आम आदमी की भाषा में यह एक बहुपयोगी दूरसंचार प्रणाली है, जिसमें साधारण नम्बरों के लिए कोई स्थान नहीं है। यह एक विशेष टेलीफोनिक प्रणाली है जो वॉइस कॉल के साथ-साथ इंटरनेट डेटा और टीवी कार्यक्रमों की भी सुविधा प्रदान करती है।

दूरसंचार मंत्रालय को लिखे सीबीआई के पहले पत्र (दिनांक 10 सितम्बर 2007), जिसमेें धोखाधड़ी का खुलासा किया गया था; में बताया गया है कि नम्बर 24371500 से लेकर 24371799 के बीच कुल 300 आईएसडीएन पीआरए लाइनें थीं। इस प्रकार का टेलीफोनिक सिस्टम घर या व्यक्तिगत उपयोग के लिए नहीं होता। यह बड़े कॉर्पोरेट्स में काम आता है, जहां बड़े पैमाने पर संचार की जरूरत होती है।

बाहरी लाइनों पर सम्पर्क के लिए यह निजी पीबीएक्स (प्राइवेट ब्रांच एक्सचेंज) द्वारा संचालित किया जाता है। तकनीकी रूप से इसे पब्लिक स्विच टेलीफोन नेटवर्क (पीएसटीएन) के नाम से जाना जाता है। सामान्य टेलीफोन लाइन को टालते हुए पीआरए उपभोक्ता बीएसएनएल की ईएसडब्लूडी लाइन पर ‘पकड़ा’ जाता है। इस तरह से मारन भी ईएसडब्लूडी सेल में पकड़े गए। सीबीआई के पत्र में ऐसी 23 और लाइनों का जिक्र किया गया है।

इस प्रकार ये गुप्त लाइनें कुल 323 हैं। बीएसएनएल के फाइल नोट्स से सीबीआई के इस पत्र के बिन्दुओं की पुष्टि होती है। पता है जांच में क्या मिला? बीएसएनएल के नोट के मुताबिक मारन ने जिन नम्बरों की मांग की थी, वे तीन सौ एक्सटेंशन के साथ जुड़े मुख्य नम्बर 24371500 के सहायक नम्बर हैं। सीबीआई ने तीन माह बाद ठीक यही कहा था। नोट्स में यह भी खुलासा हुआ है कि इन लाइनों का इंस्टॉलेशन चेन्नई टेलीफोन के मुख्य महाप्रबंधक के नाम पर किया गया है, लेकिन मारन के घर में! इस तथ्य से साफ है कि यह मारन की गोपनीय टेलीफोन लाइनें थीं।

निजी टेलीफोन एक्सचेंज
सीबीआई ने मंत्रालय को यह भी बताया है कि ये तीन सौ लाइने निरंतर चालू रहीं, जो अपने आप में एक निजी टेलीफोन एक्सचेंज बन गया और इसकी जानकारी बीएसएनएल के ‘अधिकृत स्टाफ’ को ही थी। इसलिए पीजी सेल को 2007 में इस ‘तलाश’ की जरूरत महसूस हुई।

बीएसएनएल ने इन तीन सौ लाइनों के बारे में एक और तथ्य उजागर किया है, जिसका जिक्र सीबीआई के पत्र में नहीं है। इन लाइनों पर कॉलर आई डी गुप्त रखने यानी कॉलर की पहचान प्रतिबंधित वाली सुविधा (सीएलआईआर-कॉलर लाइन आइडेंटिफिकेशन रेस्ट्रिक्शन) भी उपलब्ध थी। इसका मतलब इन नम्बरों से फोन करने पर सामने से फोन रिसीव करने वाले को यह पता नहीं लग सकता था कि कॉल किस नम्बर से आया है और गुप्त पहचान वाला यह कॉलर कौन है?

गुप्त पहचान के नंबर
नियमानुसार यह ‘गुप्त पहचान’ वाली सुविधा केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार के कर्मचारियों को ही उपलब्ध है। केंद्रीय गुप्तचर विभाग के अधिकारी और शीर्ष स्तरीय सरकारी अधिकारियों को ही इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध है, परन्तु चेन्नई टेलीफोन्स के सीजीएम इस श्रेणी में नहीं आते।

यह सुविधा प्राप्त करने के लिए उन्हें कड़ी प्रक्रिया से गुजरना होता। इसके लिए उन्हें अपना पता और पहचान पत्र सहित आवेदन करना होता और यह पहचान संबंधी साक्ष्य पुलिस महानिदेशक, तमिलनाडु या पुलिस गुप्चर विभाग के इंस्पेक्टर जनरल द्वारा अभिप्रमाणित होना चाहिए था, जिसे दूरसंचार विभाग का दूरसंचार प्रवर्तन संसाधन निगरानी प्रकोष्ठ (टर्म सेल) द्वारा अनुमोदित किया जाता। इस प्रकोष्ठ को पूर्व में सतर्कता दूरसंचार निगरानी प्रकोष्ठ (वीटीएम) के नाम से जाना जाता था। यह सारी व्यवस्था राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से की हुई है ताकि निगरानी रहित टेलीफोन लाइनें न बिछ सकें। चेन्नई टेलीफोन्स के सीजीएम अपने नाम पर अपना पहचान पत्र प्रस्तुत करके गोपनीय टेलीफोन लाइन डलवा सकते थे न कि मारन के घर पर। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय है। यहां राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सन टीवी मामले का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा।

बीएसएनएल के एजीएम कहते हैं- 300 लाइनों को ‘दबा दो’। अब यह है- बीएसएनएल नोट्स का सबसे धमाकेदार हिस्सा, जिसके हिसाब से मारन और बीएसएनएल में ‘उनके साथी’ जेल में होने चाहिए थे। एजीएम(जन शिकायत) फाइल में लिखते हैं- ‘मारन की उनके प्रिय नम्बरों; 300 एक्सटेंशन वाले आईएसडीएन पीआरए 24371500 के (24371515/1616) की दरख्वास्त को मानते हुए इन्हें ‘दबानाÓ पड़ेगा और 24371515 और 24371616 को सामान्य नम्बरों में परिवर्तित करते हुए एसटीडी सुविधा के साथ सांसद कोटे में देना होगा।


और ऐसा ही किया गया। बीएसएनएल के अधिकारियों ने उक्त गोपनीय तीन सौ लाइनों के दस्तावेज नष्ट कर दिए और मामले को ‘दबा’ दिया। एक नम्बर 24371515 मारन को आवंटित कर दिया, जैसा वे चाहते थे। बीएसएनएल ने अपने नोट्स में मारन के घर में और भी टेलीफोन लाइनें देना स्वीकार किया है।

इन नोट्स के अनुसार, आईएसडी और सीएलआईआर सुविधा से लैस सात ‘आईएसडीएन बीआरए(बेसिक रेट एक्सेस)’नम्बर तथा सामान्य नम्बर; ये सभी सीजीएम के नाम पर हैं और मारन के घर में ‘चल रहे हैं।Ó नोट्स के मुताबिक संलग्नक बी और सी में 323 नम्बरों का विस्तृत विवरण दिया गया है। क्षमता के लिहाज से बीआरए नम्बर, पीआरए नम्बर से कमतर हैं, यद्यपि ये पीआरए का ही काम करते हैं। इन नम्बरों के लिए भी बीएसएनएल ने नोट में कहा है-डीजीएम (पीजी) के अनुरोध पर विभाग द्वारा कार्रवाई की जानी है।

बीएसएनएल के नोट्स में और भी फर्जी लाइनों का जिक्र है। ये सभी फैन्सी लाइनें हैं (28119696, 28119697, 281122222, 28122400, 281822424, 28122444, 28122525, 28122555, 281222727 और 28122828 )। ये सभी ‘गोपालपुरम ऑफिस में लगी हैं।Ó परन्तु यह ऑफिस नहीं, मारन का घर है, जहां से वे पॉश इलाके बोट क्लब मेें शिफ्ट हो गए। पर ये लाइनें मई 2007 तक बन्द हुई पाई गईं।

बीएसएनएल का एक और धमाकेदार तथ्य यह कि एजीएम (पीजी) ने मारन के चाहे गए दो नम्बर डीजीएम (ओपी) के अनुमोदन से जारी करने के निर्देश दिए। इसके लिए मारन के बोट कलब स्थित घर पर लगी 300 लाइनों का दबाना आवश्यक था। साथ ही यह भी निर्देश थे कि बोट क्लब स्थित घर में लगी सात बीआरए लाइन व दो सामान्य लाइनों का क्या करना है। डीजीएम (ओपी) इसकी मंजूरी दे देते हैं। दखें, उन्होंने क्या कहा है-

23-6-2007 के अपने नोट में कहा कि मारन के घर लगे उक्त नम्बर प्रत्यक्ष दूरसंचार तंत्र (डीईएल) की लाइनें नहीं हैं मतलब वे ‘रिकॉर्डÓ में उल्लिखित नहीं हैं। वे यह मानते हैं कि जब तक आईएसडीएन पीआरए बंद नहीं कर दी जातीं, ये सीधी लाइन के तौर पर नहीं जोड़े जा सकते। मतलब कि इन तीन सौ पीआरए लाइनों को दबाना होगा। उन्होंने यह भी निर्देश दिए हैं कि संग्लनक सी में दर्शाए गए बोट क्लब में चालू नम्बरों की सूची (बीआरए नम्बर व सामान्य नम्बर) को ‘नियमित’ करने की जरूरत है। इसका ‘मतलब’ क्या है, ये तो वे ही बता सकते हैं। वे यह भी कहते हैं कि बीएसएनएल के एलओपी (लाइजन ऑफिसर फोन्स)ने मारन द्वारा मांगी गई दो में से सिर्फ एक ही लाइन (24371515) को निजी श्र्रेणी से बदल कर सांसद कोटा (फ्लैग डी) में करने की स्वीकृति दी है। इससे मारन के एक और झूठ का पर्दाफाश होता है कि मूल नम्बर सर्विस नम्बर था। फाइल के मुताबिक ये निजी नम्बर थे और वास्तव में इन्हें सरकारी नम्बरों में तब्दील किया जा रहा था।

अंतत: 29 जून 2007 को डीजीएम (ऑपरेशन), बीएसएनएल के निर्णयानुसार, आईएसडीएन पीआरए सुविधा के साथ मात्र एक लाइन 24371515 ही संसदीय श्रेणी में दी गई। मारन के पास इसके अतिरिक्त आईएसडीएन पीआरए सुविधा वाली 299 लाइने और थीं, जो ‘दबा दी गईं।’ सीबीआई, मारन को बीएसएनएल की ये फाइलें पढऩे को कहें और स्पष्ट करें कि आखिर यह सारा ‘माजरा’ क्या है?

बीएसएनएल त्न फाइल नोट पर एक नजर
जब एक समाचार पत्र ने घोटाला उजागर किया था तो 2 जून 2011 को दयानिधि मारन ने कहा था ‘मेरे पास केवल एक बीएसएनएल लाइन है, 24371500, इसके अलावा मेरे घर पर मेरे नाम पर और कनेक्शन नहीं है। एक अंग्रेजी समाचार-पत्र की 323 लाइनों वाली खबर झूठी है, वे बीएसएनल से सारी बातें पता लगा लें? ‘ समाचार पत्र के पास बीएसएनएल की यही फाइल है, जिसमें कहा गया है कि तीन सौ में से एक नम्बर मारन को देने के लिए तीन सौ लाइनों को ‘दबाना’ पड़ेगा।

आईएसडीएन-पीआरए?
दयानिधि मारन के मामले में सीबीआई के पहले पत्र (दिनांक 10 सितम्बर 2007), जिसमेें धोखाधड़ी का खुलासा किया गया था। इस पत्र में में बताया गया है कि फोन नंबर 24371500 से लेकर 24371799 के बीच कुल तीन सौ आईएसडीएन पीआरए लाइनें थीं। इस प्रकार का टेलीफोनिक सिस्टम घर या व्यक्तिगत उपयोग के लिए नहीं होता। यह बड़े कॉर्पोरेट्स कंपनियों के संचार के काम आता है।

जांच की जरूरत क्यों?
येतीन सौ लाइनें निरंतर चालू रहीं, जो अपने आप में एक निजी टेलीफोन एक्सचेंज बन गया और इसकी जानकारी बीएसएनएल के ‘अधिकृत स्टाफ’ को ही थी। इसलिए पीजी सेल को 2007 में इस ‘तलाशÓ की जरूरत महसूस हुई। बीएसएनएल ने इन लाइनों के बारे में एक और तथ्य उजागर किया है। इन लाइनों पर कॉलर आईडी गुप्त रखने वाली सुविधा भी उपलब्ध थी। मतलब इन नम्बरों से फोन करने पर फोन रिसीव करने वाले को यह पता नहीं लगता था कि कॉल किस नम्बर से आया है।

जांच में मिला क्या?
बीएसएनएल के नोट के मुताबिक मारन ने जिन नम्बरों की मांग की थी, वे तीन सौ एक्सटेंशन के साथ जुड़े मुख्य नम्बर 24371500 के सहायक नम्बर हैं। सीबीआई ने तीन माह बाद ठीक यही कहा था। नोट्स में यह भी खुलासा हुआ है कि इन लाइनों का इंस्टॉलेशन चेन्नई टेलीफोन के मुख्य महाप्रबंधक के नाम पर किया गया है, लेकिन मारन के घर में! सीजीएम के नाम पर कनेक्शन होना और लाइनों का मारन के घर मेें मिलना गोपनीयता को उजागर करती है।

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