scriptआवश्यक वस्तु अधिनियम: किसानों-उपभोक्ताओं के हित में है संशोधन | Essential Commodities Act: Amendment is in the interest of farmers | Patrika News

आवश्यक वस्तु अधिनियम: किसानों-उपभोक्ताओं के हित में है संशोधन

locationनई दिल्लीPublished: Oct 14, 2020 03:41:56 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन इस बात का प्रमुख उदाहरण है कि कैसे अपने उद्देश्य से भटके बिना यथास्थिति और परिचालन परिवर्तन को चुनौती देने के लिए एक बारीक रणनीति विकसित की जा सकती है।

कोरोना संकट के बीच जरूरी वस्तुओं के दाम गिरे

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खाद्यान्न की कमी वाले देश से भारत अब खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने वाला देश बन गया है। बेशक यह यात्रा काफी लंबी रही है, लेकिन अब भारत कृषि क्षेत्र की वास्तविक क्षमता का पूर्ण उपयोग करने के लिए पूरी तरह तैयार है। हाल ही आवश्यक वस्तु अधिनियम में किए गए संशोधन से इस आत्मविश्वास को और बल मिला है। संशोधन का उद्देश्य यह है कि किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य मिले और इसके साथ ही सुदृढ़ आपूर्ति शृंखला प्रबंधन प्रणालियों के परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को भी किफायती कीमतों पर विभिन्न उत्पाद मिलें। यह संशोधन एक दूरगामी कदम है, जो निश्चित तौर पर सभी हितधारकों जैसे कि किसानों, कृषि क्षेत्र के निवेशकों और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करेगा। निरंतर बदलती जमीनी वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए अत्यंत प्रभावी नीतिगत बदलाव एवं एक बहुआयामी दृष्टिकोण की नितांत आवश्यकता थी और यही इस संशोधन का मुख्य पहलू है।

1955 से ही खाद्य सामग्री को रुक-रुक कर और कुछ मौकों पर लंबी अवधि के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत विनियमित किया गया है। पिछले दो दशकों के तथ्यों की एक जांच से पता चलता है कि 2006 से लेकर 2017 तक 10 से ज्यादा वर्षों के लिए दालों को विनियमित किया गया था और इसी तरह 2008 से 2018 तक खाद्य तेलों/ तिलहनों को विनियमित किया गया। चावल को 2008 से 2014 तक 5 से अधिक वर्षों के लिए विनियमित किया गया था। इन वर्षों में अपेक्षाकृत कम/ स्थिर कीमतों वाली अवधियां शामिल थीं। आवश्यक वस्तु अधिनियम को लंबी अवधियों के लिए लागू करने से अत्यधिक विनियामक हस्तक्षेप संबंधी और स्टॉक सीमा को मनमाने ढंग से थोपे जाने जैसी आशंकाएं पैदा हुई थीं।
असल में ये प्रावधान निवेश को हतोत्साहित करने वाले थे। ज्यादा उत्पादन-कम कीमतें और कम उत्पादन-ज्यादा कीमतें, इसके अलावा अधिक उत्पादन की स्थिति में फसल कटने के बाद होने वाले नुकसान के कारण किसानों और उपभोक्ताओं, दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। पर्याप्त प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ इस बर्बादी को कम किया जा सकता है, जिससे उत्पादकों को लाभकारी कीमतें मिलेंगी और उपभोक्ताओं को मजबूत आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी। आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन अब इन जिंसों में मूल्य शृंखला वाले प्रतिभागियों को जरूर बढ़ावा देगा।

आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रतिबंधात्मक प्रावधानों से कृषि-खाद्य वस्तुओं को छूट दिए जाने से संगठित क्षेत्र के कृषि व्यापार की ओर आकर्षित होने की उम्मीद है। एक मूल्य शृंखला प्रतिभागी की स्थापित क्षमता या एक निर्यातक द्वारा प्राप्त की गई आयात की मांग को स्टॉक सीमा लागू होने के बावजूद भी उससे छूट दी जाएगी। इस वजह से उत्पादन, भंडारण, आवाजाही, वितरण और आपूर्ति की आजादी से लागतों में बचत की जा सकेगी और अनाज, दलहन-तिलहन, आलू और प्याज के लिए भंडारण/परख/विपणन आदि सुविधाओं में निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा।

संशोधित आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 3(आइए)(ए) कहती है कि अनाज, दालें, आलू, प्याज, खाद्य तेल, बीज और तेल सहित खाने-पीने के सामान को सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही विनियमित किया जाएगा, जिनमें युद्ध, सूखा, कीमतों में असामान्य बढ़ोतरी और गंभीर प्राकृतिक आपदा शामिल हो सकती है।
धारा 3(आइए)(बी) के अनुसार, भंडारण सीमा लगाने से संबंधित कोई कदम एक सीमा तक मूल्य पहुंचने पर ही उठाया जाएगा, जैसे पिछले 12 माह में या पिछले साल के दौरान औसत कीमत में जो भी कम हो, की तुलना में बागवानी फसल के खुदरा मूल्य में 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी और खराब नहीं होने वाले (नॉन पेरिशेबल) खाने-पीने के सामान के खुदरा मूल्य में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी होना, इसमें किसी भी कृषि उत्पाद के निर्यातकों, प्रसंस्करणकर्ताओं, मूल्य शृंखला से जुड़े भागीदारों के साथ ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली को उपयुक्त छूट दी गई है। संशोधन में ऐसी सभी इकाइयों से जुड़े मूल्य शृंखला भागीदारों की एक परिभाषा शामिल है, जो उत्पादन से लेकर खपत तक हर चरण में मूल्य वर्धन करती हों।
सवाल उठता है कि नियामकीय शक्तियों के अभाव में सरकार मूल्य स्थिरीकरण के लिए प्रभावी दखल कैसे देगी। उपभोक्ता मामलों का विभाग 22 आवश्यक खाद्य वस्तुओं की खुदरा और थोक कीमत पर प्रतिदिन जानकारी लेने के लिए मूल्य निगरानी केंद्रों की स्थापना को राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है। देशभर में ऐसे 114 केंद्र पहले से परिचालन में हैं। डीओसीए द्वारा बनाए गए डैशबोर्ड के माध्यम से मूल्यों का हर दिन संकलन और विश्लेषण किया जाता है।
अंतर मंत्रालयी समिति साप्ताहिक आधार पर कीमतों के रुझान की समीक्षा करती है। एक आशंका है कि संशोधन से खाद्य पदार्थ पूरी तरह नियमन से बाहर हो जाएंगे, जो कि निराधार है। कीमतों के तेजी से बढऩे की स्थिति में, स्टॉक सीमा लागू करने का कोई भी निर्णय सभी तथ्यों और बाजार के मूल सिद्धांतों पर आधारित होगा। प्राइस ट्रिगर चरण से पहले भी उभरते मूल्य रुझान विभिन्नि नीति विकल्पों के संबंध में निर्णय प्रभावी होंगे यानी बफर स्टॉक से कमोडिटी की कैलिब्रेटेड रिलीज, आयातों पर मात्रात्मक प्रतिबंधों का उदारीकरण, निर्यात पर प्रतिबंध। उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाने के रूप में ही नीति हस्तक्षेप किया जाएगा।
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