केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड पांच लाख रुपए से कम कर चोरी के 15 साल पुराने मामले वापस लेने जा रहा है। कर चोरी के मामले में सरकार नियमों को सरल बनाने जा रही है। दूसरी खबर में सरकार काला धन रखने वालों को चार माह में कर व जुर्माना अदा करने की चेतावनी दे रही है। चार माह में काला धन समर्पित नहीं किया तो कर व जुर्माने की राशि 90 फीसदी हो जाएगी और सात साल की सजा भी हो सकती है।
आजादी के बाद से आम आदमी के कान पक चुके हैं ये सुनते-सुनते कि काला धन रखने वालों, कर चोरी करने वालों और भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। समय-समय पर सरकारें कानून को सख्त बनाने के दावे भी करती हैं। लेकिन, हकीकत किसी से छिपी नहीं। कोई सरकार नहीं बता सकती कि उसने कितने कर चोरों को सलाखों के पीछे भेजा। कोई सरकार ये दावा नहीं कर सकती कि विदेशों में काला धन रखने वाले इतने लोगों को उसने कानून के शिकंजे में कसा। सजा की बात तो बहुत दूर, ऐसे लोग गिरफ्तार तक नहीं होते।
ऐसा नहीं होने का कारण भी बिल्कुल साफ है। विदेशी बैंकों में काला धन अगर है तो किसका? दो वक्त की रोटी और बच्चों की जिंदगी बनाने की जुगत में जुटे आम भारतीय का तो विदेशी बैंकों में काला धन नहीं हो सकता। ये धन होगा तो राजनेताओं, उद्योगपतियों अथवा आला अफसरों का। अब इन पर हाथ डाले तो कौन? आखिर जिन पर हाथ डालने की जिम्मेदारी है, शक की सुई भी उन पर ही घूमती है।
केन्द्र सरकार को सत्ता संभाले दो साल पूरे होने जा रहे हैं लेकिन कभी सुनने को नहीं मिला कि किसी भ्रष्टाचारी को पकड़ा गया हो। प्याज के दाम भले सौ के पार पहुंच गए हों लेकिन कितने जमाखोरों को पकड़ा गया? बड़े-बड़े उद्योगपति बैंकों से कर्जा उठा लेते हैं और फिर दिवालिया घोषित होकर साफ बच निकलते हैं। उनकी तरफ ध्यान देने वाला कौन है? बैंकों का पैसा कर्ज में डूब रहा है। आखिर ये पैसा जा कहां रहा है? आम आदमी तो दस हजार का कर्ज नहीं चुकाए तो घर के बाहर डुगडुगी पिटवा दी जाती है लेकिन करोड़ों रुपए डकारने वालों का बाल तक बांका नहीं होता। ये व्यवस्था बदले बिना कुछ होने वाला नहीं। हां, लुभावने नारे देकर, झूठे वादे करके अल्प समय के लिए जनता को धोखे में जरूर रखा जा सकता है।