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EVM पर बढ़ता अविश्वास: उठने लगी फिर मतपत्रों से चुनाव की मांग

Published: Apr 15, 2017 01:09:00 pm

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EVM से चुनाव के विरोध में प्रमुख राजनीतक दल एकजुट हो गए हैं और वे कागजी मतपत्रों से चुनाव कराए जाने की मांग कर रहे हैं। राजनीतिक दलों की ऐसी एकजुटता नोटबंदी और भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध के दौरान भी देखने को नहीं मिली थी। कैच न्यूज से…

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के बाद यह पहला मौका है जब किसी एक मुद्दे पर इतने अधिक विपक्षी दल एक साथ आ गए। यहां तक कि नोटबंदी पर भी इतने अधिक दल एक मंच पर नहीं आए थे जितने कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से छेड़छाड़ के मुद्दे पर आ गए हैं। 
हाल ही हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम आने पर सिर्फ बहुजन समाज पार्टी ने ही यह आरोप लगाया था। लेकिन जल्द ही समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी राग ईवीएम में शामिल हो गए। चुनाव आयोग में जिस तरह से 16 राजनीतिक दलों ने अपनी याचिका दाखिल की है, इसके बाद चुनाव आयोग का इस मुद्दे पर पूरी तरह से सजग होना आवश्यक हो गया है। 
याचिका में चुनाव आयोग से कहा गया है कि जब तक ईवीएम के दुरुपयोग और इस पर उठाए गए सवालों की पूरी तरह से जांच नहीं हो जाती, तब तक आगामी चुनावों में ईवीएम का प्रयोग नहीं किया जाए। 
साथ ही कहा गया है कि राजनीतिक दलों का ईवीएम पर भरोसा बहुत कम है और यह संदेह बहुत गहरा तथा व्यापक है। चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी में लोगों का भरोसा टूट गया है। जिस एक क्रियात्मक मुद्दे पर सभी दलों में सहमति है, वह यह है कि आने वाले चुनावों में ईवीएम के प्रयोग को रोककर कागजी मतपत्रों से मतदान कराया जाए। 
लोकतंत्र आम सहमति से चलता है और अगर पूरा विपक्ष ही किसी एक मुद्दे पर एकजुट हो जाए तो ऐसे मामले की धैर्यपूर्वक सुनवाई तो होनी ही चाहिए। सरकार को भी अब चुनाव आयोग से इन मुद्दों पर विचार का आग्रह करना चाहिए और चुनाव आयोग को ईवीएम की विश्वसनीयता स्थापित करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। 
हालांकि चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने सभी राजनीतिक दलों को ईवीएम को लेकर अपने आरोप साबित करने की चुनौती देते हुए मुद्दे पर एक सर्वदलीय मीटिंग बुलाने की मांग पर सहमति जताई है। देश का चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता के लिए जाना जाता रहा है और अगर पूरे विपक्ष का इससे भरोसा उठ जाता है तो वह दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक दिन होगा। 
ईवीएम में भरोसा और चुनाव आयोग की निष्पक्षता को पुन: बहाल किया जाना अत्यावश्यक है और यह जिम्मेदारी चुनाव आयोग की ही है कि वह इस दिशा में जितनी जल्दी हो सके सही कदम उठाए।
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