देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों में से एक कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी का यह आवास है। पत्रिका के फोटो एडिटर शैलेन्द्र पाण्डेय को साथ लेकर मैं उनका साक्षात्कार लेने पहुंचा था। हम दोनों को उस समय घोर निराशा हुई, जब साक्षात्कार से ठीक पहले हमारे मोबाइल और कैमरे स्वागत कक्ष में रखवा दिए गए। साढ़ेे तीन वर्ष पहले जयपुर में कुछ पत्रकारों के साथ राहुल गांधी से हुई छोटी-सी मुलाकात और सोशल मीडिया में उनको लेकर चलने वाले चुटकुलों में इतना विरोधाभास था कि साक्षात्कार से पहले राहुल के व्यक्तित्व के बारे में कोई स्पष्ट छवि मन में बन ही नहीं पा रही थी। नेहरू-गांधी वंश के प्रभावशाली वारिस के रूप में उभर रहे 48 वर्षीय राहुल से भेंट कैसी होगी, यही सोचते हुए हम एक कक्ष में दाखिल हुए, जिसमें साक्षात्कार होना था।
पांच मिनट के इंतजार के बाद राहुल कक्ष में आ गए। टी-शर्ट-जीन्स पहने। दाढ़ी हल्की-सी बढ़ी हुई। आते ही हाथ मिलाया और पूछा चाय पिओगे? फिर कहा-मैं तो पिऊंगा। आंध्र से किसी ने खास पत्ती भेजी है। फिर बिना जवाब की प्रतीक्षा किए हमारे लिए भी चाय मंगवा ली। परिचय के बाद सवाल-जवाबों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो 35 मिनट कब निकल गए, पता ही नहीं चला। वे सीधे आंखों में आंख डालकर बात कर रहे थे। समझ नहीं आ रहा था कि नजरें हटा कर डायरी में पॉइंट्स कैसे लिखूं! साक्षात्कार के अंतिम दौर में मैंने उनके व्यक्तित्व को समझने की दृष्टि से कुछ सवाल पूछे। जब मैंने पूछा कि-आप अक्सर मंदिरों में जाते हैं, खुद को शिवभक्त भी कहते हैं, पर भाजपाई इसका अक्सर मजाक उड़ाते हैं व तंज कसते हैं। आपका क्या विचार है? तो उन्होंने कहा-
”इसके दो पहलू हैं। एक ईश्वर की व्यक्तिगत अनुभूति और वह मेरे मन के अंदर की बात है। धर्म के प्रति मेरा नजरिया है और मैं मानता हूं कि वह समय के साथ और मजबूत होता जाएगा। मेरी इस व्यक्तिगत भावना को शायद मैं भविष्य में और विस्तार से बताऊं। दूसरा पहलू है, दूसरों की धार्मिक आस्था। मैं कांग्रेस का अध्यक्ष हूं। अगर कोई मुझे मंदिर में बुलाए, गुरुद्वारे में बुलाए, मस्जिद में बुलाए, तो मुझे उनकी भावना का आदर करना है। जब मैं पुष्कर गया, अजमेर शरीफ गया, मैं गुरुद्वारे में जाता हूं, तो मैं हर धर्म से सीखना चाहता हूं, चाहे वह मेरा धर्म हो या दूसरों का। भाजपा इसका मजाक बनाती है, क्योंकि उनके लिए हर वो हिंदुस्तानी खतरा है, जो हिंदुस्तान के धर्म को समझता है। कारण यह है कि भाजपाई इम्पोस्टर (ढोंगी) हैं, वे हमारे धर्म का राजनीति के लिए फायदा तो उठा सकते हैं, हमारे धर्म को समझते नहीं। अगर कोई राजनेता या पब्लिक फिगर धर्म के अर्थ व चिंतन को समझ ले, तो भाजपा के लिए बड़ी समस्या हो जाती है। इसका सबसे सही उदाहरण महात्मा गांधी थे। इस विचारधारा वाले लोग गांधी जी का मजाक भी उड़ाते थे और उनसे नफरत भी करते थे। अंत में इसी नफरत की विचारधारा ने महात्मा गांधी की हत्या की, क्योंकि वो इस बात को स्वीकार नहीं कर पाए कि महात्मा गांधी की धर्म के प्रति सोच व विचार ही असल में सही है। वो मेरा मजाक इसलिए उड़ाते हैं कि वो मुझे भी निरुत्साहित कर प्रताडऩा करना चाहते हैं। परंतु मैं न विचलित होऊंगा और न ही निरुत्साहित।’
कांग्रेस में भाजपा की तरह उग्रता क्यों नहीं? यह पूछने पर राहुल बोले-‘मैं जब राजस्थान के दौरे पर बार बार गया, तो गहलोत जी व सचिन जी के साथ बैठकर हमने एक बात नोट की। राजस्थान की जनता बहुत कोमल भावना से, प्यार से, उत्साह से कांग्रेस की रैलियों में आती है। राजस्थान की जनता का व्यवहार व बोली निर्मल व कोमल है। राजस्थान के स्वभाव की तुलना नफरत और क्रोध से नहीं हो सकती। यही कांग्रेस पार्टी भी है। कांग्रेस पार्टी गुस्से से, गलत शब्दों से न काम कर सकती है और न ही बढ़ सकती। दूसरी तरफ भाजपा के अंदर गुस्सा है, नफरत है और वो सोचते हैं कि पूरी दुनिया को इसी नफरत से दबाया जा सकता है और चलाया जा सकता है। हमारा चुनाव प्रचार किसी को अपमानित कर ही नहीं सकता। यही राजस्थान और देश का चरित्र भी है। मोदी जी का पूरा चुनाव प्रचार दूसरों को अपमानित करने पर टिका है। उनके शब्दों में घमंड भी झलकता है और दूसरों के लिए गलत शब्दों की शैली का इस्तेमाल भी। हमारी शालीनता हमारा आत्मविश्वास है, कमजोरी नहीं।
मेरा अगला सवाल-आप हमारे लिए राहुल गांधी को डिफाइन करें। अगर राहुल गांधी को परिभाषित करना हो, तो किन बिंदुओं के आधार पर करेंगे? वे बोले-राहुल गांधी एक व्यक्ति के साथ-साथ एक यात्रा भी है, सीखने की, जानने की, समझने की। मेरा मानना है कि अकेले मेरा नजरिया जरूरी नहीं। मेरा व आपका दोनों नजरिए ही जरूरी हैं। मेरी रुचि दूसरों को सुनने और समझने में भी है। किसी ने मुझसे यह सवाल पूछा कि जब बीजेपी के लोग आपको गाली देते हैं, तो आपको गुस्सा नहीं आता? मैं उनको एक जिज्ञासा से देखता हूं। वे मेरी सोच से इतने विचलित क्यों हैं? जो नफरत मेरे बारे में उनके दिल में है, उससे मैं गुस्सा नहीं होता। यह भी दुनिया देखने का नजरिया है। उन्हें अपनी सोच रखने का अधिकार है, तो मैं उनकी सोच से गुस्सा क्यों होऊं? मेरी तो एकमात्र रुचि यह है कि हमारा देश विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़े। हमारे युवाओं, किसानों, माताओं और बहनों का जो स्वाभाविक आत्मविश्वास है, वह मोदी सरकार के आगे न दबे और तरक्की के सफर में वो आगे बढ़ते जाएं।
आपने कहा कि राहुल गांधी क्या है? एक शब्द में मैं बताऊं, तो वह है विनम्रता या अंग्रेजी में ह्यूमिलिटी। जब मैं शिवजी की बात कहता हूं, तो मैं विनम्रता यानि ‘अहम’ को समाप्त करने की बात करता हूं। शिवजी कहते हैं कि तुम कुछ नहीं हो, दुनिया के सामने, संसार के सामने। पहले तुम इस बात को स्वीकार करो, फिर आगे बढ़ो। यह सिर्फ हिंदू धर्म की बात नहीं, यह अन्य धर्मों में भी है कि तुम जैसे-जैसे ‘अहमÓ की सीमा से बाहर आओगे, उतना ही सोच का विस्तार होता जाएगा। जब व्यक्ति का अहम समाप्त हो जाता है, तभी उसे जीवन का अर्थ व दुनिया के मायने समझ में आते हैं।
मैं 15 अगस्त को मोदी जी को भाषण देते हुए देख रहा था। उन्होंने कहा कि मेरे आने से पहले भारत का हाथी सो रहा था। मेरे दिमाग में सवाल उठा कि प्रधानमंत्री के शब्द हिंदू धर्म की मूलभूत सोच के अनुरूप हैं ही नहीं, क्योंकि हिंदू धर्म तो अहम व अहंकार को पूरी तरह समाप्त कर देने की नींव पर टिका है। शिव जी ने तो कहा कि पहले आप अपनी भूमिका समझो। हर हर महादेव, यानि सब कुछ शिव है। ‘मैं’ या ‘अहम’ कुछ नहीं। और यहां देश के प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि मैं देश को आगे ले जा रहा हूं, मुझसे पहले यहां कुछ नहीं था। देश व राजस्थान के युवाओं ने, माताओं ने कुछ नहीं किया। यही भाजपा की सोच का अंतर्विरोध है। हमारा डीएनए अहम और अहंकार को समाप्त करने का है। इनके और हमारे नेताओं में यही अंतर है। जब अहम खत्म होगा, तो प्यार निकलेगा। और जब घमंड होगा, तो नफरत निकलेगी। यही सच है।
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