फेसबुक विवाद: अकेला न नजर आए ऑस्ट्रेलिया
- स्कॉट मॉरीसन इस विषय पर विश्व के अनेक नेताओं को अपने साथ लाने की कवायद में हैं। भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी से वह पहले ही बात कर चुके हैं ।

रिचर्ड ग्लोवर
ऑस्ट्रेलियाई सरकार और फेसबुक का टकराव अब अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में है। लोग और सरकारें आश्चर्य में हैं कि क्या विश्व ने अमरीका की दिग्गज इंटरनेट कंपनियों को इतना ताकतवर होने और दादागीरी करने की अनुमति दे दी है कि वे समाज और सरकारों की दिशा तय करें। अगर ये कंपनियां, लोकतांत्रिक तरीकों से निर्वाचित सरकारों के विरुद्ध इस ताकत का उपयोग करने लग जाएं तो क्या हो? इस हफ्ते यही हुआ। दरअसल, फेसबुक ऑस्ट्रेलिया के उस प्रस्तावित कानून से खफा है जिसके मुताबिक न्यूज कंटेंट शेयर करने पर उसे मीडिया कंपनियों को भुगतान करना होगा। फेसबुक ने उनके पेज से पूरा कंटेंट भी हटा दिया। इससे वैज्ञानिक संगठन और अस्पताल भी प्रभावित हुए। हालांकि, एक दिन बाद ही फेसबुक के एक अधिकारी ने माफी माफी मांगते हुए कहा कि यह अनजाने में हो गया था।
पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में आग और बाढ़ दोनों ही चिंता के विषय थे, पर आपातकालीन चेतावनी हटा दी गई थी। बेशक, यह चेतावनी हर कहीं उपलब्ध थी, पर समस्या यह है कि देश के कई नागरिक समाचार और सूचनाओं के लिए फेसबुक पर निर्भर रहने के आदी हो चुके हैं। शायद यह वेक-अप कॉल थी जिसकी हमें जरूरत थी - और दुनिया को भी। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन इस विषय पर विश्व के अनेक नेताओं को साथ लाने की कवायद में हैं। भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी से वह पहले ही बात कर चुके हैं। वित्त मंत्री जोश फ्रिडनबर्ग ने भी कनाडा की उप प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड से बात की है। मॉरीसन ने फेसबुक के इस कृत्य को अहंकारी और निराशाजनक बताते हुए लिखा कि वे केवल उन चिंताओं की पुष्टि कर रहे हैं जो इन दिग्गज इंटरनेट कंपनियों के बारे में अन्य देशों की हैं। ये कंपनियां सोचती हैं कि वे सरकारों से बड़ी हैं और उन पर कोई कानून लागू नहीं होते।
मुद्दा नए 'बारगेनिंग कोड' को लेकर है। गूगल ने, पहले तो ऑस्ट्रेलिया से अपने सर्च इंजन को हटाने की धमकी दी, पर बाद में कई सेवाप्रदाताओं के साथ समझौता करते हुए आत्मसमर्पण की मुद्रा में आ गया। कोई संदेह नहीं कि ऑस्ट्रेलिया के नए कानून को सभी देश अपना सकते हैं। सवाल यह है कि क्या फेसबुक की यह धमकी काम आएगी? संभवत: नहीं। जब ऐसी धमकियों के खिलाफ अडिग रहने की बात आती है तो ऑस्ट्रेलिया का अच्छा रेकॉर्ड है। चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। इसके बावजूद ऑस्ट्रेलियाई निर्यात पर प्रतिबंधों के मामले में चीन के साथ विवाद जारी है। चीन हो या टेक कंपनिया ं, दोनों मामलों में विपक्षी लेबर पार्टी ने सरकार का समर्थन किया है। जहां तक विनियमन से जुड़े मामले हैं, फेसबुक बहुत ताकतवर है, हर जगह पहुंच है और जुझारू भी, ऐसे तर्क देने वाले लोगों को जकरबर्ग ने सही साबित किया है।
अब समय आ गया है जबकि बड़ी टेक कंपनियों को मानवीय इच्छा के आगे झुकना होगा। हमें अच्छाई को अपनाने और बुराई को दफन करने की जरूरत है। हमें यह मांग करनी होगी कि ये कंपनियां अपने तौर-तरीके छोड़ें। पूरी दुनिया को भी तय करना होगा कि इस मुश्किल का सामना करता हुआ ऑस्ट्रेलिया अकेला न दिखाई दे।
(लेखक एबीसी रेडियो सिडनी के शो 'ड्राइव' के प्रस्तोता हैं)
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