कोरोना की दूसरी लहर के समय जब हर तरफ हाहाकार मचा था, तब भी ऐसे माफिया ने ‘डरÓ को जमकर भुनाया। नकली दवाएं-इंजेक्शन बेचकर खूब चांदी काटी गई। कुछ अर्से पहले पड़ोसी राज्य में खुलासा हुआ कि दवा कारोबारियों का एक गिरोह अवधिपार दवाएं नए सिरे से पैकिंग कर फिर बाजार में पहुंचा रहा है। यह कारोबार संगठित रूप से कई राज्यों में फैला हुआ है। मूल रसायन की मात्रा बहुत कम कर अथवा अवधिपार घटिया रसायन काम में लेकर तैयार की गई दवाइयां अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में खपा दी जाती हैं। हजारों मेडिकल स्टोर पूरे प्रदेश में फार्मासिस्ट के लाइसेंस के बिना चल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो परचून की दुकानों पर ही दवाइयां मिल जाती हैं। नकली दवाओं की खपत ऐसी दुकानों में आसानी से हो जाती है। इसके साथ ही प्रदेश के हजारों पेंशनर्स की भी व्यथा है कि उनकी डायरी में लिखी दवाइयां कई-कई दिन तक सहकारिता विभाग की दुकानों पर नहीं आतीं। इसके लिए उन्हें बार-बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। उनकी शिकायत है कि डायरी की बजाय अलग पर्ची पर दवाएं लिख दी जाती हैं, जिनकी सहकारिता की दुकानों से एनओसी नहीं बनाई जा सकती क्योंकि डायरी में उनका इंद्राज नहीं है। ऐसे में दवा विक्रेताओं की नियमित निगरानी की जरूरत है।
यह सब तभी संभव है जब प्रशासन, औषधि नियंत्रक संगठन और पुलिस मिलकर रणनीतिक रूप से अभियान चलाएं। अमानक दवाओं की जांच के लिए राज्य की अन्य तीनों प्रयोगशालाएं भी तत्काल शुरू होनी चाहिए। (र.श.)