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प्रसंगवश : बेलगाम नकली दवा के सौदागर, संकट में मरीज

राजस्थान में 20 हजार करोड़ रुपए का सालाना दवा कारोबार है। इसमें से करीब साढ़े पांच प्रतिशत दवाओं के नमूने फेल हुए हैं।

नई दिल्लीSep 28, 2021 / 08:29 am

Patrika Desk

प्रसंगवश : बेलगाम नकली दवा के सौदागर, संकट में मरीज

राजस्थान में घटिया, नकली और अमानक दवाइयों का कारोबार जिस तेजी से पनप रहा है, ऐसा लगता है कि निगरानी के लिए जिम्मेदार औषधि नियंत्रण संगठन आंखें मूंद कर बैठा है। प्रदेश में चिकित्सकीय संसाधन आबादी के अनुरूप पहले ही पर्याप्त नहीं हैं। फिर कोढ़ में खाज यह कि यहां सालाना एक हजार करोड़ रुपए से अधिक की घटिया और अमानक दवाएं बिक रही हैं। यह खुलासा भी फिलहाल जयपुर की प्रयोगशाला में जांच के लिए आए नमूनों से हुआ। राजस्थान में 20 हजार करोड़ रुपए का सालाना दवा कारोबार है। इसमें से करीब साढ़े पांच प्रतिशत दवाओं के नमूने फेल हुए हैं। यदि जोधपुर, उदयपुर और बीकानेर की प्रयोगशालाओं में भी नमूनों की जांच शुरू हो तो निश्चित ही आंकड़ा कहीं अधिक होगा। विडम्बना यह कि सरकार काबिल स्टाफ की कमी की आड़ लेकर इन प्रयोगशालाओं को शुरू ही नहीं करना चाहती।

कोरोना की दूसरी लहर के समय जब हर तरफ हाहाकार मचा था, तब भी ऐसे माफिया ने ‘डरÓ को जमकर भुनाया। नकली दवाएं-इंजेक्शन बेचकर खूब चांदी काटी गई। कुछ अर्से पहले पड़ोसी राज्य में खुलासा हुआ कि दवा कारोबारियों का एक गिरोह अवधिपार दवाएं नए सिरे से पैकिंग कर फिर बाजार में पहुंचा रहा है। यह कारोबार संगठित रूप से कई राज्यों में फैला हुआ है। मूल रसायन की मात्रा बहुत कम कर अथवा अवधिपार घटिया रसायन काम में लेकर तैयार की गई दवाइयां अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में खपा दी जाती हैं। हजारों मेडिकल स्टोर पूरे प्रदेश में फार्मासिस्ट के लाइसेंस के बिना चल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो परचून की दुकानों पर ही दवाइयां मिल जाती हैं। नकली दवाओं की खपत ऐसी दुकानों में आसानी से हो जाती है। इसके साथ ही प्रदेश के हजारों पेंशनर्स की भी व्यथा है कि उनकी डायरी में लिखी दवाइयां कई-कई दिन तक सहकारिता विभाग की दुकानों पर नहीं आतीं। इसके लिए उन्हें बार-बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। उनकी शिकायत है कि डायरी की बजाय अलग पर्ची पर दवाएं लिख दी जाती हैं, जिनकी सहकारिता की दुकानों से एनओसी नहीं बनाई जा सकती क्योंकि डायरी में उनका इंद्राज नहीं है। ऐसे में दवा विक्रेताओं की नियमित निगरानी की जरूरत है।

यह सब तभी संभव है जब प्रशासन, औषधि नियंत्रक संगठन और पुलिस मिलकर रणनीतिक रूप से अभियान चलाएं। अमानक दवाओं की जांच के लिए राज्य की अन्य तीनों प्रयोगशालाएं भी तत्काल शुरू होनी चाहिए। (र.श.)

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