सेंसेक्स धड़ाम हो गया। दुनिया भर के
बाजारों में गिरावट दर्ज की गई। माना जा रहा है कि चीन के अपनी मुद्रा का अवमूल्यन
करने से दुनिया भर के बाजारों में घबराहट की स्थिति उत्पन्न हुई है। भारतीय
परिदृश्य में भी इस गिरावट के तीन आयाम हैं निवेशक, सरकारी नीतियां और उद्योग।
निवेशक जल्दबाजी नहीं करें। देश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति मजबूत है। भारतीय
उद्योग जगत इन हालात को अवसरों में भी बदल सकता है। अल्पकालिक नुकसान के हालात
हमारे लिए दीर्घकालिक लाभ का सबब बन सकते हैं। बाजार की उठापटक के सकारात्मक पहलुओं
पर आज का स्पॉटलाइट…
इकोनॉमी का पैमाना शेयर बाजार ही नहीं
अश्विनी
महाजन आर्थिक विशेषज्ञ
सुबह से खबरें आ रही थीं कि शेयर बाजार ने गोता
लगाया है। ऎतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है। बरसों बाद ऎसा हुआ है। रूपया भी निचले
स्तर पर पहुंच गया है। लोगों को देखने-सुनने में लगता है कि अर्थव्यवस्था के हालात
गंभीर हैं। लेकिन आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में ये जरा भी घबराने वाली स्थिति
नहीं है। कम से कम भारतीय परिपेक्ष्य में तो कदापि नहीं है। सबसे पहले हमें ये बात
समझनी होगी कि शेयर बाजार यानी सेंसेक्स कभी भी इकोनॉमी की सेहत को दर्शाने का
एकमात्र मापदंड नहीं है। आज हम दिनभर बाजार के गोता लगाने की खबरें देखते हैं तो
अगले दिन हो सकता है कि सुबह बाजार खुलते ही संभलने की खबरें सामने आएं। पहले भी
ऎसा हो चुका है।
गिरावट के कई कारण
छोटे निवेशक बाजार में उठापटक वाली
स्थिति के चलते निवेश अथवा बेचान से बचें। बाजार की शक्तियों, दृश्य और अदृश्य
दोनों को अपना-अपना काम करने दें। बाजार की उठापटक के कई कारणों को आम निवेशक समझ
नहीं पाता। अक्सर बाजारों में गिरावट और दूसरी स्थिति में उठाव का एक बड़ा कारण
विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) होते हैं। यानी विदेशी निवेशकों का वह समूह जो कि
संबंधित देश के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और अन्य हालातों को ध्यान में रखकर निवेश
करता है। निवेश हालात प्रतिकूल होने पर वह अ न्य स्थानों पर निवेश को संचारित करता
है।
अल्पकालिक है असर
निवेशक वर्तमान हालात के मद्देनजर दीर्घकालीन निवेश पर
ध्यान केंद्रित करें। अल्पकालिक स्थितियां नुकसानदायक साबित हो सकती हैं। रही बात
चीन की बिगड़ती आर्थिक स्थिति की तो वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
चीन की विकास दर में गिरावट आने से ये स्वाभाविक है कि इससे जुड़ी बड़ी
अर्थव्यवस्थाओं पर भी अल्पकालिक असर पड़ सकता है। कभी 15 फीसदी तक की विकास दर से
वृद्धि करने वाली चीन की अर्थव्यवस्था अब 7 फीसदी पर आ टिकी है।
चीन ने अपनी मुद्रा
का अवमूल्यन करने का नुस्खा भी अपना लिया है। विदेशी मुद्रा भंडार को भी कम किया,
लेकिन असर नहीं दिखा। भारतीय परिदृश्य में देखें तो हमारी अर्थव्यवस्था काफी मजबूत
है। सोना और कच्चे तेल के दामों में गिरावट बनी हुई है। मुद्रास्फीति की दर भी थोक
और खुदरा बाजार में नियंत्रण में है। सबसे अहम बात है कि राजनीतिक स्थिरता के साथ
लोगों में उत्साह बरकरार है। साथ ही चीन के साथ भारतीय बाजारों के वैसे लिंकेज नहीं
है जैसे कि हमारे अमरीका के साथ हैं। इसलिए अमरीका में वर्ष 2007-08 में आए आर्थिक
संकट का असर हमें भी झेलना पड़ा था। चीन का भारत में बड़े पैमाने पर निवेश नहीं है।
निवेश अनुकूल वातावरण
अभी हालात ये हैं कि चीन ने मास प्रोडक्शन के अपने
फॉमूले के जरिए भारत को अपना माल खपाने के बाजार के रूप में तलाशा है। चीन की
अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट के जरिए हम अपनी इंडस्ट्रीज को और बड़े पैमाने पर
उत्पादन के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसके लिए सरकार के पास उद्यमियों के लिए निवेश
और उत्पादन अनुकूल वातावरण का वादा भी है। साथ ही हमारी सरकार की ओर से विदेशी
निर्माताओं और निवेशकों को “मेक इन इंडिया” के जरिए निवेश का आमंत्रण भी दिया जा
रहा है। आज हम मंगल ग्रह की कक्षा तक अपने उपग्रह को भेज सकते हैं वह भी बहुत कम
लागत में तो ये संकेत स्पष्ट हैं कि हम बाजार की उठापटक को भी अपने लिए अवसरों में
तब्दील कर सकते हैं।
इंतजार करने की रणनति ही मूलमंत्र
अशोक
पारीक कार्यकारी निदेशक एसआरईआई
चीन की अर्थव्यवस्था की डांवाडोल स्थिति
से दुनिया भर के बाजारों में गिरावट दर्ज की गई है। भारतीय बाजार ने लगता है कि कुछ
“ओवर रिएक्ट” किया है। ये तात्कालिक स्थितियां हैं। इससे हमारी अर्थव्यवस्था को
ज्यादा चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। लगता है कि गुरूवार को होने वाले मासिक
सैटलमेंट यानी कटान से पहले ही लोगों ने बेचान कर दिया। इससे शेयर बाजार में गिरावट
देखी गई है। बाजार की इस प्रवृत्ति को देखते हुए कैश केडिंग इफैक्ट के कारण
ब्रोकरों में दूसरे शेयरों को बेचने की परिपाटी सामने आई है। बाजार के इन हालातों
के मद्देनजर निवेशक को संभलकर कदम उठाने की जरूरत है। दूसरे शब्दों में अभी “वेट
एंड वॉच” करना चाहिए। निवेशक फिलहाल अच्छे स्टॉक का पोर्टफोलिया बनाएं। बाद में इस
पर सलाह कर ही कोई अगला कदम उठाएं। वर्तमान हालात को देखकर ऎसा नहीं लगता है कि
बाजार एक-दो दिन में बहुत ज्यादा रिकवरी कर पाएगा क्योंकि गुरूवार को मासिक कटान भी
होना है।
छोटे शेयरों में गिरावट
आज के ट्रेंड्स को देखने पर पता चलता है कि
बड़े शेयरों में 5 से 6 फीसदी की ही गिरावट दर्ज हुई है जबकि मझौले और छोटे शेयरों
में 10 फीसदी अथवा इससे अधिक की गिरावट सामने आई है। समूचे घटनाक्रम को देखने पर इस
निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि बाजार में आई गिरावट का भारतीय आर्थिक परिदृश्य
पर दीर्घकालिक असर देखने को नहीं मिलेगा। वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में दुनिया की
लगभग सभी अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। चीन द्वारा अपनी मुद्रा का दो
बार अवमूल्यन करने का असर हमारी अर्थव्यवस्था पर भी अधिक नहीं तो आंशिक रूप से पड़ा
है। लेकिन यहां हमें ये देखने की आवश्यकता है कि वर्ष 2015 के दौरान दुनिया भर की
सभी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में हमारे बाजार ही श्रेष्ठ हैं। हमारे यहां पर निवेश
करने वालों ने चीन, रूस, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील सरीखे देशों से आनुपातिक रूप से
ज्यादा मुनाफा कमाया है। ये हालात बयां करते हैं कि भारत में निवेश अनुकूल वातावरण
कायम है। हमारी सरकार की नीतियां भी इसे और अधिक मजबूत बना रही हैं।
जल्द
स्थिरता के आसार
रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन ने भी भरोसा दिलाया है कि
भारतीय अर्थव्यवस्था बाजार के ऎसे उतार-चढ़ावों को झेलने अथवा यूं कहें कि मुकाबला
करने को दुनिया के किसी भी दूसरे देश से ज्यादा तैयार है। जहां तक शेयर बाजार में
आज की गिरावट से होने वाले नुकसान के आंकड़ों की बात है तो ये एक नोशनल लॉस
(अनुमानित घाटा) है। इसके आंकड़ों से निवेशक घबराएं नहीं। उम्मीद है कि अगले महीने
की शुरूआत तक भारतीय बाजार में स्थिरता की स्थिति आ सकेगी। अब- तक गिरावट का क्रम
जारी रह सकता है। बाजार की गिरावट का अपने मुनाफे-घाटे के आधार पर विश्लेषण करना
चाहिए। वर्तमान स्थिति में निवेशकों को संभल कर निर्णय लेना होगा जिससे कि घाटे की
स्थिति से बचा जा सके।
देसी बाजार पर बाहरी दुनिया का साया
चीन की
मंदी
चीन में अर्थव्यवस्था की हालत दर्शाने वाले पीएमआई सूचकांक के निराशाजनक
रहनेे से वहां के शेयर बाजार में शुक्रवार को नौ फीसदी की गिरावट देखने को मिली।
ऎसी मंदी के समय में भी चीन ने 547 अरब डॉलर के पेंशन फंड को शेयर बाजार में लगाने
का बड़ा फैसला लिया। इसके बावजूद चीन के शेयर बाजार नहीं संभल सके। फिलहाल वहां और
भी गिरावट की आशंका व्यक्त की जा रही है।
हिले अमरीकी बाजार
चीन की पतली
अर्थव्यवस्था ने दुनिया के शेयर बाजारों को हिला दिया। अमरीकी शेयर बाजार डाउ जोंस
और नासडाक में भी जबर्दस्त गिरावट दर्ज की गई। ऎसे में विदेशी निवेशकों ने भारत
सहित उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के शेयर बाजारों से ेपैसा निकालना शुरू कर
दिया। भारतीय बाजार में जबर्दस्त बिकवाली देखने को मिली। विशेषज्ञों के मुताबिक
विदेशी निवेशकों ने 2000 करोड़ रूपए से अधिक की बिकवाली की।
गिरते क्रूड के
दाम
चीन की आर्थिक वृद्धि में धीमापन देखने को मिल रहा है और फैक्ट्री उत्पादन
में भी गिरावट के कारण, कच्चे तेल के दामों पर असर पड़ा है। इसके दाम घटकर 45 डॉलर
प्रति बैरल के स्तर पर आ गए हैं। ऎसे देश जिनकी अर्थव्यवस्था में कच्चे तेल का बड़ा
योगदान रहता है, वहां भारत से होने वाले आयात ऑर्डर सिमटने का डर भी बना है। इन्हीं
आशंकाओं के बीच निवेशकों ने बिकवाली के जरिए अपनी पूंजी समेटी।
ग्रीस संकट
का असर
ग्रीस आर्थिक संकट से घिरा हुआ है। नये बेल आउट पैकेज के बाद से उसकी
राजनीतिक स्थिति भी डावांडोल है। इसका असर अन्य यूरोपीय देशों पर पड़ना स्वाभाविक
है और जिन यूरोपीय देशों पर ग्रीस का असर पड़ेगा, वहां के निवेशक परोक्ष रूप से
भारतीय बाजार पर भी असर डाल रहे हैं। ग्रीस की कमजोर हालत का सीधे तौर पर भारत
परअसर हो न हो लेकिन अन्य यूरोपीय देशों की कमजोरी का असर जरूर पड़ता है।