किसान आंदोलन : समाधान की राह निकलने की उम्मीद !
- कृषि कानूनों में हुए संशोधन के विरोध में किसान कर रहे हैं आंदोलन ।
- सुप्रीम कोर्ट ने लगाई तीनों कानून पर अंतरिम रोक ।

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने तीन कृषि कानूनों के अमल पर फिलहाल अंतरिम रोक लगाते हुए इस मसले को सुलझाने के लिए कमेटी तक बना दी है। जाहिर है, केन्द्र सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत के कई दौर होने के बावजूद कोई रास्ता नहीं निकलने पर सुप्रीम कोर्ट ने यह राह दिखाई है। सुप्रीम कोर्ट से ऐसे ही फैसले की उम्मीद की भी जा रही थी, क्योंकि उसने सोमवार को ही चेता दिया था कि केंद्र सरकार या तो इन कृषि कानूनों पर अमल रोके, अन्यथा वह इन पर रोक लगा देगा।
यह बात भी साफ हो गई है जब इस तरह के आंदोलनों में दोनों पक्षों का अडिय़ल रुख नजर आता है, तो शीर्ष अदालत के दखल पर ही राह निकलती दिखती है। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शाहीनबाग में चले लंबे आंदोलन में भी सुप्रीम कोर्ट को ही हस्तक्षेप करना पड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने तो कमेटी बना दी है, लेकिन कमेटी का विरोध भी शुरू हो गया। यानी समाधान की राह आसान नहीं। अब, दोनों पक्षों को तय करना है कि वे अपने रुख में कितना लचीलापन ला पाते हैं, सरकार को भी और आंदोलनकारी किसान संगठनों को भी। किसान आंदोलन के पक्ष-विपक्ष और सरकार के रुख के पक्ष-विपक्ष में पिछले दिनों जितनी भी बातें सामने आईं, उनसे यह लगा कि न तो सरकार, आंदोलनकारियों तक अपनी बात ठीक से पहुंचा पाई और न ही किसान संगठनों ने बातचीत का माहौल बनाया। आम तौर से ऐसे आंदोलन के
समाधान की राह उस राजनीतिक प्रक्रिया से भी जुड़ी होती है, जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी ही नहीं, बल्कि विपक्षी दलों को भी सरकार तक बात पहुंचानी होती है। टकराव तब और बढ़ता दिखता है, जब जो राजनीतिक दल सत्ता में होते हैं, वे भी सरकार से इतर सुझाव देने की स्थिति में नहीं रहते। दूसरी तरफ विपक्ष भी सिर्फ विरोध के लिए ही विरोध करता दिखता है। किसानों की मांगों पर समाधान नहीं निकलने की बड़ी वजह यही रही कि सरकार इन कानूनों को लागू करने की बात कहती रही और किसान संगठन, कानून वापस लेने पर ही घर वापसी की अपनी पुरानी मांग पर कायम हैं।
विचारणीय तथ्य यह भी है कि आखिर अदालतों को हर बार दखल क्यों देना पड़ता है? अदालतें क्यों सरकारों को अपने काम करने का तरीका बदलने की नसीहत देती दिखती हैं? कोरोना ने पहले ही देश की अर्थव्यवस्था को काफी चोट पहुंचाई है। अब उम्मीद यह की भी जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की राय आने पर कोई न कोई रास्ता ऐसा निकाल ही लिया जाएगा, जिससे दोनों पक्ष सहमत होंगे।
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