मैंने कहा – निराश न हों, सरकार ने हाल ही फैक्टरिंग बिल factoring bill में संशोधन कर लोकसभा से पास करवा लिया है। लागू होते ही करीब साढ़े नौ हजार नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों non-banking financial companies को लघु और मध्यम व्यापारिक संस्थानों को फैक्टरिंग सेवाएं देने की अनुमति होगी। इसमें व्यवसायी के पास विकल्प होगा कि वह अपने विक्रय के बिल लेकर एनबीएफसी के पास जाएगा और एनबीएफसी से बिल का 80 प्रतिशत तक प्राप्त कर सकेगा। एनबीएफसी ही ग्राहकों से व्यवसायी की राशि संग्रहित करेगी और सारा भुगतान प्राप्त होने पर शेष 20 प्रतिशत भी व्यवसायी को दे देंगी।
खंडेलवाल जी की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने अगला प्रश्न दागा – यदि मेरे ग्राहक ने फैक्टरिंग एनबीएफसी को पैसे नहीं दिए तो? मेरा जवाब था – एनबीएफसी को कानूनी कार्यवाही का हक होगा, ऊपर से ग्राहक की क्रेडिट रेटिंग अलग खराब होगी। खंडेलवाल जी बोले – तब हम तो तनाव मुक्त ही हो जाएंगे। मैंने कहा – बिल्कुल सही, आपका ग्राहक भावनात्मक रूप से आपको टाल सकता है, लेकिन फैक्टरिंग सर्विस देने वाली कंपनियों के सामने उसकी एक न चलेगी। खंडेलवाल जी ने जिज्ञासापूर्वक पूछा – ये फैक्टरिंग सर्विस वाले लोग तो मनमाना ब्याज लेंगे? मैंने कहा – ये कंपनियां आरबीआइ के नियमों से बंधी हैं, वही शुल्क लेंगी जो आरबीआइ कहेगी। हालांकि जोखिम ज्यादा है तो ब्याज दर भी ज्यादा होना स्वाभाविक है। एक बात और, फैक्टरिंग दो तरह से हो सकती है – रीकोर्स फैक्टरिंग, यानी ग्राहक ने पैसे नहीं दिए तो आप देंगे; और नॉन-रीकोर्स फैक्टरिंग, यानी पैसा डूबा तो एनबीएफसी जाने। अब आप अपने ग्राहक की तासीर देख कर विकल्प चुनिए और डूबत खातों से मुक्ति पाइए।