मिलावट की महामारी ने आज देश को बुरी तरह से जकड़ रखा है । बीमारियों की आधी जड़ मिलावट है। प्राधिकरण को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। बात सिर्फ रेलवे की या पानी की बोतलों की ही नहीं है। रेलवे, बस स्टैण्ड अथवा सार्वजनिक स्थलों पर खाने-पीने के सामान के घटिया होने की शिकायतें आम बात है। रेलवे या बस यात्रियों के पास इतना समय नहीं होता कि यात्रा छोडक़र शिकायतें करें। देशभर में लाखों यात्री प्रतिदिन इसका शिकार होते हैं, लेकिन उनकी पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं। रेलवे की तरफ से उपलब्ध कराए जाने वाले भोजन में कीड़े-मकोड़े मिलने की खबरें आए दिन आती हैं। घटिया खाना खाकर यात्रियों के बीमार पडऩे की शिकायतें भी आम हैं।
ऐसे में खाद्य प्राधिकरण समेत दूसरी संस्थाओं की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। नागरिकों की सुरक्षा के लिए सैकड़ों संस्थाएं हैं, लेकिन सुरक्षा ढंग से मिल नहीं पाती। बात संस्थाओं तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। खाद्य मंत्रालय के मंत्री और अधिकारियों को भी इस मामले में सजग रहना चाहिए। रेलवे सुरक्षा बल ने पानी के खेल को पकड़ा, लेकिन एक अभियान से समस्या का हल निकलने वाला नहीं है। हर क्षेत्र में ऐसे संगठित गिरोह काम कर रहे हैं, जिन्हें ऊपरी संरक्षण भी मिला हो सकता है। जरूरत इस गठजोड़ की कमर तोडऩे की है। जरूरत उपभोक्ताओं के विश्वास को जीतने की भी है। पूरा पैसा देकर भी मिलावटी सामान मिले तो इसे अन्याय ही माना जाएगा। ऐसे मिलावटखोरों के खिलाफ कानून और सख्त बनाने की बात दशकों से चल रही है, लेकिन जमीनी हकीकत में होता हुआ कुछ नजर नहीं आ रहा है। कानून सख्त भी बनें और उन पर अमल भी उतनी ही सख्ती से हो। तभी सार्थक नतीजों की उम्मीद की जा सकती है।