scriptसदा से रही चीन के मन में खोट | Forever thinking lie China for India always | Patrika News
ओपिनियन

सदा से रही चीन के मन में खोट

चीन एक तरफ भारत से वार्ता और अपनी टुकड़ियों को पीछे करने का ढोंग कर रहा है और पीछे से नए मोर्चों पर अपने सेना का जमावड़ा। यह बताता है कि चीन की नीयत में खोट है।

Jun 26, 2020 / 05:42 pm

shailendra tiwari

modi and Xijinping

चीन ने भारत को द्विपक्षीय मुद्दों को याद दिलाई।

– शिव कुमार शर्मा, राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश

लद्दाख की गलवान घाटी में घुसपैठ व हमारी फौज पर कायराना हमला करने वाले चीन की पीठ पीछे वार करने की नीति नई नहीं है. चीन अब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर डेपसांग के रूप में मोर्चा खोल बैठा है। चीन की यह करतूत एलएसी में पश्चिम की और उसकी बढ़ती घुसपैठ का सबूत है। चीन एक तरफ वार्ता का ढोंग कर रहा है और पीछे से अपने सेना का जमावड़ा। यह बताता है कि चीन की नीयत में खोट है।

हम इतिहास के पन्नों को पलटें तो चीन का यह दोहरा बर्ताव कोई नया नहीं। इतिहास बताता है कि चीन को प्रवृत्ति पीठ पर वार करने की रही है। 1962 में चीन भारत का अभिन्न मित्र था। चीन के तत्कालीन शासक ने भारत की यात्रा की थी। हर तरफ़ हिंदी चीनी भाई भाई के नारे गूंज रहे थे। कोई सोच भी नहीं सकता था कि यही चीन कुछ समय बाद ही धोखे से पीठ पर वार करने वाला है। फिर आया 20 अक्टूबर 1962 जब चीन ने भारत पर युद्ध थोप दिया। हम युद्ध के लिये तैयार नहीं थे। चीन ने तब धोखा किया। चीनी सैनिक आगे बढ़ रहे थे और हमारे सैनिक पीछे हट रहे थे। 26 अक्टूबर1962 को भारत में आपात काल घोषित कर दिया गया था।
उधर सीमा पर युद्ध हो रहा था और इधर विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद का विशेष सत्र आहूत करने की माँग कर डाली। अटल बिहारी वाजपेयी के दल के संसद में कुल चार सदस्य थे जबकि प्रधानमंत्री नेहरू के दल का संसद में तीन चौथाई बहुमत था। पंडित नेहरू ने वाजपेयी की माँग स्वीकार करते हुए संसद का सत्र आहूत करने के लिये सहमति दे दी। संसद में चर्चा शुरू होने से पहले सांसद लक्ष्मी मल सिंघवी ने सुझाव दिया कि चर्चा चूँकि संवेदनशील विषय पर होने वाली है इसलिये संसद की कार्यवाही गोपनीय रखी जानी चाहिये। प्रधानमंत्री नेहरू ने असहमत होते हुए कहा था कि राष्ट्र से जुड़े मुद्दे की चर्चा गोपनीय नहीं बल्कि खुलेआम होगी। वाजपेयी ने लगभग एक घण्टे तक नेहरू की नीतियों की बखिया उधेड़ी। नेहरू पूरे समय सदन में उपस्थित रहे और सिर झुकाए हुए अपनी आलोचना सुनते रहे। वाजपेयी के भाषण के बीच में कोई व्यवधान किसी भी सदस्य द्वारा नहीं किया गया। तब लोकतांत्रिक मूल्यों पर कितनी आस्था थी। तीन चौथाई बहुमत होने के बावजूद चार सदस्यों के विपक्ष का पूरा सम्मान, सदन के नेता की सहिष्णुता जो बिना किसी प्रतिरोध के अपनी तीखी आलोचना सुनती रही।

इसके बाद 1967 में जब इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री थींएचीन नेएसीमा पर खड़े हमारे सैनिकों के साथ दुर्व्यवहार किया। यह प्रारम्भिक झड़प युद्ध में बदल गई। चीन पूरी तैयारी से आक्रामक हुआ था इसलिये वह प्रारम्भ में कुछ समय के लिये हावी रहा बाद में उसे पीछे हटना पड़ा था।

हमारी फ़ौज ने चीन के 300 सैनिकों को मौत के घाट उतारा जबकि हमारे 80 सैनिक शहीद हुए। चीन को मुँह की खानी पड़ी थी। फिर आक्रामक होने की बारी हमारी थी। हमने 1975 में सिक्किम को भारत में मिला लिया। भारी विरोध करने के बावजूद चीन कुछ न कर सका। इसके बाद चीन ने फिर हलचल की। उस समय जनरल सुंदर जी आर्मी चीफ़ थे। उन्होंने ऑपरेशन फ़ाल्कन शुरू किया। तवाना के आगे सड़क नहीं थी। फ़ौज ने एमआई हेलिकॉप्टर की सहायता से फ़ौजी उतर दिये। लद्दाख़ की तरफ़ टी 72 टैंक खड़े कर दिये और बड़ी संख्या में हमारे सैनिकों ने मोर्चा सम्भाल लिया। चीन पीछे हट गया। यही वक्त था जब हमने अरुणाचल को पूर्ण राज़्य का दर्जा दे दिया। किसी ज़माने में हिंदी -चीनी भाई – भाई के नारे भी लगे पर इतिहास बताता है क़ि चीन की मित्रता फ़रेब ही है।

Home / Prime / Opinion / सदा से रही चीन के मन में खोट

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो