हम इतिहास के पन्नों को पलटें तो चीन का यह दोहरा बर्ताव कोई नया नहीं। इतिहास बताता है कि चीन को प्रवृत्ति पीठ पर वार करने की रही है। 1962 में चीन भारत का अभिन्न मित्र था। चीन के तत्कालीन शासक ने भारत की यात्रा की थी। हर तरफ़ हिंदी चीनी भाई भाई के नारे गूंज रहे थे। कोई सोच भी नहीं सकता था कि यही चीन कुछ समय बाद ही धोखे से पीठ पर वार करने वाला है। फिर आया 20 अक्टूबर 1962 जब चीन ने भारत पर युद्ध थोप दिया। हम युद्ध के लिये तैयार नहीं थे। चीन ने तब धोखा किया। चीनी सैनिक आगे बढ़ रहे थे और हमारे सैनिक पीछे हट रहे थे। 26 अक्टूबर1962 को भारत में आपात काल घोषित कर दिया गया था।
इसके बाद 1967 में जब इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री थींएचीन नेएसीमा पर खड़े हमारे सैनिकों के साथ दुर्व्यवहार किया। यह प्रारम्भिक झड़प युद्ध में बदल गई। चीन पूरी तैयारी से आक्रामक हुआ था इसलिये वह प्रारम्भ में कुछ समय के लिये हावी रहा बाद में उसे पीछे हटना पड़ा था।
हमारी फ़ौज ने चीन के 300 सैनिकों को मौत के घाट उतारा जबकि हमारे 80 सैनिक शहीद हुए। चीन को मुँह की खानी पड़ी थी। फिर आक्रामक होने की बारी हमारी थी। हमने 1975 में सिक्किम को भारत में मिला लिया। भारी विरोध करने के बावजूद चीन कुछ न कर सका। इसके बाद चीन ने फिर हलचल की। उस समय जनरल सुंदर जी आर्मी चीफ़ थे। उन्होंने ऑपरेशन फ़ाल्कन शुरू किया। तवाना के आगे सड़क नहीं थी। फ़ौज ने एमआई हेलिकॉप्टर की सहायता से फ़ौजी उतर दिये। लद्दाख़ की तरफ़ टी 72 टैंक खड़े कर दिये और बड़ी संख्या में हमारे सैनिकों ने मोर्चा सम्भाल लिया। चीन पीछे हट गया। यही वक्त था जब हमने अरुणाचल को पूर्ण राज़्य का दर्जा दे दिया। किसी ज़माने में हिंदी -चीनी भाई – भाई के नारे भी लगे पर इतिहास बताता है क़ि चीन की मित्रता फ़रेब ही है।