scriptचुनावी उपहार | Free Gifts to voters in election | Patrika News

चुनावी उपहार

Published: Sep 05, 2018 02:36:25 pm

चुनाव से पहले मुफ्त उपहार बांटकर या जीतने के बाद उपहार बांटने का वादा कर वोट लेना हमारे लोकतंत्र के लिए कोई अच्छी बात नहीं है।

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भारतीय लोकतंत्र में मतदाताओं को लुभाने के लिए उपहार देने की परंपरा न केवल जड़ें जमा चुकी है, बल्कि लगभग हर राजनीतिक दल इससे सहमत भी है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में लाखों मतदाता खुश हैं, क्योंकि उन्हें चुनाव से पहले कुछ न कुछ मुफ्त मिलने वाला है। राजस्थान में १ करोड़ ६० लाख परिवारों को मोबाइल, सिम और डाटा मिलने वाला है, तो छत्तीसगढ़ में ५० लाख से ज्यादा मोबाइल, सिम और डाटा बंटने हैं। मध्यप्रदेश में मोबाइल तो नहीं, लेकिन दूसरी अनेक चीजें बंट रही हैं। चूंकि वितरण चुनाव से ठीक पहले हो रहा है, इसलिए समझने में कोई परेशानी नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है। सरकारें आधिकारिक रूप से मोबाइल दो कारणों से बांट रही हैं। पहला कारण, गरीब-वंचितों को स्मार्ट बनाकर मुख्यधारा में लाना है, तो दूसरा कारण है द्ग सरकारी योजनाओं संबंधी जानकारी मोबाइल के माध्यम से गरीबों और वंचितों तक पहुंचाना।
सत्ता पक्ष जहां मुफ्त उपहार बांट रहा है, वहीं विपक्ष भी वादा करने में पीछे नहीं है द्ग मध्यप्रदेश में कांग्रेस यह वादा करने की तैयारी में है कि अगर वह सत्ता में आई, तो दस दिन में किसानों का कर्ज माफ कर देगी। ऐसी ही दूसरी घोषणाएं राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भी विपक्षी दल कर रहे हैं। फर्क इतना ही है कि जो सत्ता में है, वह उपहार अभी बांट रहा है और जो विपक्ष में है, वह सत्ता में आने के बाद बांटने का वादा कर रहा है।
भारतीय लोकतंत्र में ऐसे उपहार की परंपरा तमिलनाडु से शुरू हुई थी। वहां पहले मोबाइल, टीवी सेट, डिनर सेट, हैदराबादी मोती के सेट बंट चुके हैं। इसकी आलोचना जरूर हुई है, लेकिन इसे राजनीतिक चुनौती कभी नहीं मिली। यह परंपरा-सी बन गई है और जनता को आदत भी पड़ गई है द्ग वह खोजती है कि सरकार क्या बांटने वाली है, कौन-सी पार्टी ज्यादा अच्छा लुभावना वादा कर रही है? चुनाव से पहले कुछ मांगने के लिए हड़ताल की सरकारी परंपरा भी रही है, यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। चुनाव से ठीक पहले सरकार द्वारा या किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा कुछ सेवा-सामान उपहार देना अगर गलत है, तो किसी समुदाय या वर्ग द्वारा कुछ सेवा-सुविधा मांगना भी गलत है।
दुनिया के परिपक्व लोकतंत्रों में ऐसा नहीं होता। वहां कोई राजनीतिक पार्टी अगर ऐसा करे, तो लोग ही सवाल उठा देते हैं कि जनता के धन को ऐसे खर्च करने का अधिकार आपको किसने दिया। जनता के धन से शिक्षा मिले, सडक़ बने, बिजली मिले, परिवहन सुविधा मिले, रोजगार मिले, भूखों को रोटी मिले, लेकिन व्यवस्थागत तरीके से मिले, इसमें राजनीति न हो। ध्यान रहे, दुनिया भारत से लोकतंत्र सीखती है। ऐसे में, दुनिया में यह संदेश कतई नहीं जाना चाहिए कि भारत में सरकारें अपना काम ढंग से नहीं करतीं और चुनाव के ठीक पहले मुफ्त उपहार देकर वोट जुटाती हैं। राजनीति में मुफ्त की इस परिपाटी को लोकतंत्र की एक विफलता भी सिद्ध किया जा सकता है, अत: हमें सुधार करना होगा। बेशक, भारतीय लोकतंत्र को आदर्श बनाने के लिए भारत में सरकारों को ही नहीं, बल्कि हम भारत के लोगों को भी परिपक्व होना पड़ेगा।
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