राज्य और जिला स्तर पर पुलिस अधिकारियों के संवेदीकरण के लिए कार्यशालाएं आयोजित की गईं। पुलिस अधिकारियों को केंद्रीय कानून और ट्रांसजेंडर के बारे में उच्चतम न्यायालय के निर्णय से अवगत कराया गया। कल्याण बोर्ड के ट्रांसजेंडर सदस्यों की मदद से पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों के लिए प्रशिक्षण कोर्स तैयार किया गया। विभाग में रिक्तियों की घोषणा के बाद पुलिस ने न केवल उन्हें अभ्यास के लिए अपने मैदान के उपयोग की अनुमति दी, बल्कि लिखित परीक्षा की तैयारी में भी उनकी मदद की। लेकिन, यह स्वयं ट्रांस लोगों की कड़ी मेहनत थी, जिससे उन्हें सफल होने में मदद मिली और उन्होंने पुलिस विभाग में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। हाल ही में ‘द ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट, 2019’ लागू किया गया। इस अधिनियम में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ‘जैविक परीक्षण’ की बजाय ‘मनोवैज्ञानिक परीक्षण’ के सिद्धांत के अनुसार स्वयं-कथित ***** पहचान का कानूनी अधिकार प्राप्त है। कानून के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रतिष्ठान द्वारा रोजगार से संबंधित किसी भी मामले में भेदभाव नहीं किया जा सकता है। कुछ कृत्यों को दो साल तक के कारावास के साथ दंडनीय भी बनाया गया है।
हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में एक ट्रांसवुमन को उसके स्व-दावित ***** पहचान के आधार पर राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) में प्रवेश देने की अनुमति दी है। न्यायालय ने माना कि एनसीसी अधिनियम के प्रावधान ट्रांसजेंडर अधिकार अधिनियम के संचालन को नहीं रोक सकते। वास्तव में सुरक्षात्मक केंद्रीय कानून ने ट्रांसजेंडरों के पूरे समुदाय को एक नया जीवन दिया है। वे अपने जीवन की नई पारी को शुरू करने के लिए उत्साहित हंै। इसके बावजूद इस समुदाय के प्रति लोगों की धारणा में बदलाव लाने के लिए अब भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। समतुल्य नागरिक के रूप में पहचान का दावा करने के लिए उन्हें कई साल लग गए हैं। इसलिए कानून को पूर्ण भावना से लागू करने की आवश्यकता है। समाज को अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त होने और विनम्रता के साथ ट्रांसजेंडर को समान मनुष्य के रूप में स्वीकार करने की आवश्यकता है। ट्रांस जेंडरों को समाज में अपना देय आदर मिलना चाहिए। यह मात्र एक शुरुआत है।