इससे भी आगे बढ़कर अब तो किसी ऐतिहासिक स्थल, मजार, मस्जिद या पर्यटन स्थल में प्रवेश के नियम-कानूनों की धता बताते हुए जबरन प्रवेश की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। ताजा मामला आगरा के ताजमहल से जुड़ा है। यहां लोहे का धर्मदंड लेकर जा रहे अयोध्या की तपस्वी छावनी के महंत परमहंस को पुरातत्व विभाग के कर्मचारियों ने रोक दिया। हालांकि, विवाद बढऩे पर कर्मचारी ने माफी मांग ली। लेकिन, अब इस मामले को अनावश्यक तूल दिया जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण के नियमों की पालना की आड़ में एकाएक पूरे देश में लाउडस्पीकर मुद्दा बन गया है। इस पर संविधान और कानून की नहीं, बल्कि धार्मिक भावनाओं और आस्था की बात हो रही है। इन हालात के बीच सुप्रीम कोर्ट का हेट स्पीच पर निर्णय बहुत मायने रखता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि हेट स्पीच नहीं रुकी, तो मुख्य सचिव जिम्मेदार होंगे। आदेश सिर्फ उत्तराखंड के मुख्य सचिव पर ही लागू नहीं होता। देश भर में भी इसका असर दिखना चाहिए। दरअसल, शीर्ष अदालत को इस तरह का निर्देश इसलिए देना पड़ा कि नियम-कानूनों के होते हुए भी अफसरों की ढिलाई के कारण कानूनों की पालना नहीं हो पाती। नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2014 में देश में हेट स्पीच के 336 मामले दर्ज हुए थे, जो 2020 में 1,804 हो गए। ज्यादातर मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि इन तमाम मामलों में पुलिस अफसर सबूत जुटाने में नाकाम रहे।
हेट स्पीच से लोकतंत्र, बेजोड़ सामाजिक ताना-बाना और अहिंसा की विरासत दांव पर है। नफरत और समाज में दुराव पैदा होने से रोकना है, तो सरकार को हेट स्पीच के मामले में कड़े कानून बनाने ही होंगे। इसमें सभी पक्षों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करना जरूरी है। संसार को अहिंसा और सद्भाव का संदेश देने वाले देश में हेट स्पीच हर हालत में रुकनी चाहिए।